राजाजी में अब गजराज को थामेंगे घास के नए मैदान, पढ़िए पूरी खबर
हरिद्वार के आबादी वाले क्षेत्रों में हाथियों की धमक से परेशान वन महकमे ने गजराज को जंगल में ही थामे रखने की दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं।
देहरादून, केदार दत्त। राजाजी टाइगर रिजर्व से लगे हरिद्वार के आबादी वाले क्षेत्रों में हाथियों की धमक से परेशान वन महकमे ने गजराज को जंगल में ही थामे रखने की दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं। इसके तहत रिजर्व को लैंटाना (कुर्री) से मुक्त करने की कवायद शुरू कर दी गई है। यहां लैंटाना ने 50 फीसद हिस्से में कब्जा जमाया हुआ है और इसके कारण न सिर्फ घास के मैदान (चौड़) संकुचित हो रहे, बल्कि अन्य वनस्पतियों के लिए भी खतरे की घंटी बज चुकी है। जंगल को लैंटानामुक्त कर पुराने चौड़ पुनर्जीवित करने के साथ ही घास के नए मैदान विकसित किए जाएंगे। इससे हाथियों को पर्याप्त मात्रा में चारा उपलब्ध होने से वह जंगल की देहरी नहीं लांघेंगे। इसके अलावा वन्यजीवों के लिए जलकुंड तैयार करने की भी मुहिम शुरू की जा रही है।
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व की भांति राजाजी रिजर्व में भी पर्यावरण के लिए खतरनाक मानी जाने वाली लैंटाना कमारा (कुर्री) नामक झाड़ीनुमा वनस्पति ने कब्जा जमाया हुआ है। अपने इर्द-गिर्द दूसरी वनस्पतियों को न पनपने देने और वर्षभर खिलने के कारण निरंतर फैलाव के गुण के कारण लैंटाना ने राजाजी के लिए भी खतरे की घंटी बजा दी है। अब तो इसने घास के मैदानों में भी बसेरा कर लिया है। घास के मैदान हाथियों के पसंदीदा स्थल होने के साथ ही ये बाघ के लिए शिकार के मुफीद अड्डे भी होते हैं।
लैंटाना के फैलाव के कारण घास के मैदान संकुचित हो रहे हैं, जिनकी संख्या यहां पहले ही कम है। ऐसे में हाथी समेत दूसरे वन्यजीव जंगल की देहरी लांघ मनुष्य के लिए खतरा भी बन रहे हैं। अब इस समस्या के समाधान के मद्देनजर राजाजी को लैंटानामुक्त किया जा रहा है। प्रमुख वन संरक्षक वन्यजीव राजीव भरतरी के अनुसार राजाजी में लैंटाना मैनेजमेंट एंड ग्रासलैंड डेवलपमेंट की मुहिम शुरू की गई है। इसमें सीआर बाबू तकनीक से लैंटाना उन्मूलन किया जाएगा और फिर पुराने घास के मैदानों को हरा-भरा करने के साथ ही घास के नए मैदान विकसित किए जाएंगे।
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यही नहीं, पूरे रिजर्व में जलकुंड भी बनाए जा रहे हैं। इस मुहिम से हाथी समेत दूसरे वन्यजीवों के लिए चारे और पानी की पर्याप्त उपलब्धता रहेगी। ऐसे में वे जंगल से बाहर नहीं निकलेंगे और मनुष्य के साथ टकराव भी नहीं होगा। सीआर बाबू तकनीक है कारगर दिल्ली विवि के प्रो. सीआर बाबू ने वर्ष 2006-07 में कॉर्बेट में लैंटाना उन्मूलन की तकनीक ईजाद की थी। इसके तहत लैंटाना के पौधे को जमीन से छह-आठ इंच नीचे जड़ से काटकर उल्टा कर दिया जाता है। फिर यह जड़ से पैदा नहीं होता। इसके बाद संबंधित क्षेत्र की लगातार मॉनीटरिंग होती है, जिससे वहां गिरे बीज से लैंटाना के अन्य पौधे न पनपने पाएं। इसे ही सीआर बाबू तकनीक कहा जाता है।
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