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लैंड फ्रॉड कमेटी से मंडलायुक्त और आइजी रजिस्ट्रेशन की दूरी

लैंड फ्रॉड कोर्डिनेशन कमेटी से मंडलायुक्त और आइजी रजिस्ट्रेशन ने शुरुआत से ही दूरी बना रखी है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Wed, 13 Feb 2019 05:03 PM (IST)Updated: Wed, 13 Feb 2019 05:03 PM (IST)
लैंड फ्रॉड कमेटी से मंडलायुक्त और आइजी रजिस्ट्रेशन की दूरी
लैंड फ्रॉड कमेटी से मंडलायुक्त और आइजी रजिस्ट्रेशन की दूरी

देहरादून, सुमन सेमवाल। भूमि व भवन संबंधी फर्जीवाड़ों को लेकर गठित की गई लैंड फ्रॉड कोर्डिनेशन कमेटी से मंडलायुक्त और आइजी रजिस्ट्रेशन ने शुरुआत से ही दूरी बना रखी है। जबकि इस तरह के मामलों में जांच करने का अधिकार इस आठ सदस्यीय कमेटी के पास है और इसी की संस्तुति पर मुकदमा दर्ज किए जाने का प्रावधान भी है। इस बात का खुलासा आरटीआइ में मांगी गई जानकारी में हुआ है। जबकि कमेटी की दूरी के चलते पुलिस उप महानिरीक्षक की अध्यक्षता में गठित एसआइटी (भूमि) अपने स्तर पर कार्रवाई कर रही है। जो कि शासनादेश के खिलाफ भी है।

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आरटीआइ में प्राप्त दस्तावेजों के अनुसार दो अगस्त 2014 को तत्कालीन गृह सचिव मंजुल कुमार जोशी के आदेश पर कमेटी का गठन किया गया था। जिसमें स्पष्ट किया गया है कि भूमि व भवन संबंधी फर्जीवाड़ों की विस्तृत जांच कमेटी करेगी और यदि इसमें मुकदमा दर्ज कराया जाना आवश्यक होगा तो प्रकरण को पुलिस उपमहानिरीक्षक को भेजा जाएगा। इसके लिए भी गढ़वाल व कुमाऊं मंडल में 21 सदस्यीय टीम का गठन किया गया है। जो उप महानिरीक्षक की अध्यक्षता में इस तरह के मामलों की जांच करेगी। वहीं, मौजूदा स्थिति देखी जाए तो कमेटी की निष्क्रियता के चलते पुलिस अपने स्तर पर कार्रवाई कर रही है और प्रकरणों की जांच भी 21 सदस्यीय कमेटी की जगह संबंधित थाने कर रहे हैं।

इसलिए एसआइटी को अधिकार नहीं

रजिस्ट्रेशन एक्ट की धारा 82 कहती है कि भूमि आदि की रजिस्ट्री के दौरान यदि कोई फर्जीवाड़ा किया गया है तो उसकी जांच का अधिकार निबंधन अधिकारियों को है और उनकी संस्तुति के बाद ही मुकदमा करने का निर्णय लिया जाएगा। इसी तरह उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश अधिनियम की धारा 334 के अनुसार राजस्व अधिकारियों के निर्णयों पर मंडलायुक्त स्तर पर भी कार्रवाई की जा सकती है। तकनीकी पेंच के चलते ही कमेटी में मंडलायुक्त व आइजी रजिस्ट्रेशन को प्रमुखता से शामिल किया गया। ताकि फर्जीवाड़े पर नियमों के अनुरूप प्रभावी कार्रवाई की जा सके।

यह है कमेटी का ढांचा

  • मंडलायुक्त गढ़वाल/कुमाऊं, अध्यक्ष
  • आइजी रजिस्ट्रेशन, सदस्य
  • परिक्षेत्रीय पुलिस उपमहानिरीक्षक, सदस्य  अपर आयुक्त, सदस्य
  • संबंधित वन संरक्षक, सदस्य
  • संबंधित उपाध्यक्ष, , विकास प्राधिकरण
  • नगर निकायों के संबंधित अधिकारी
  • पुलिस अधीक्षक, क्षेत्रीय अभिसूचना विभाग

...तो जानबूझकर कमजोर किए जा रहे केस

यदि नियमों के विपरीत जाकर एसआइटी (भूमि) अपने स्तर पर मुकदमे करती है तो आसानी से उन्हें कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। इससे प्रभावशाली वर्ग व भूमाफिया आसानी से बच सकते हैं। जबकि इस अनावश्यक कार्रवाई की आड़ में आमजन उत्पीडऩ का शिकार हो जाते हैं।

बीवीआरसी पुरुषोत्तम (मंडलायुक्त, गढ़वाल) का कहना है कि मैंने अभी कुछ दिन पहले ही चार्ज लिया है। कमेटी के बारे में जानकारी नहीं है। यदि शासन ने इसका गठन कर नियम बनाए हैं तो उसका अनुपालन कराना सुनिश्चित किया जाएगा। जिस तरह से जमीन फर्जीवाड़े बढ़ रहे हैं, उसे देखते हुए मुकदमा दर्ज करने से पहले उसकी मजबूत जांच जरूरी है। अन्यथा ऐसे में पुलिस की कार्रवाई सिर्फ उत्पीड़नात्मक साबित हो सकती है।

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