जन हस्तक्षेप संगठन ने वन कानून के खिलाफ खोला मोर्चा, हस्ताक्षर अभियान शुरू Dehradun News
जन हस्तक्षेप संगठन ने राज्य सरकार की ओर से भारतीय वन कानून में संशोधन प्रस्ताव के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।
देहरादून, जेएनएन। जन हस्तक्षेप संगठन ने राज्य सरकार की ओर से भारतीय वन कानून में संशोधन प्रस्ताव के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। इसके लिए संगठन की ओर से देहरादून और पहाड़ी इलाकों में हस्ताक्षर अभियान शुरू किया जा रहा है। इस अभियान के बाद दिसंबर में प्रदर्शन रैली और व्यापक आंदोलन की चेतावनी भी दी है।
सोमवार को प्रेस क्लब में वार्ता के दौरान सीपीआइ के प्रदेश सचिव समर भंडारी ने बताया कि देश के विभिन्न राज्यों में केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों को भारतीय वन कानून में संशोधन के प्रस्ताव दिए हैं, इसका विरोध किया जा रहा है। क्योंकि सरकार इस प्रस्ताव के माध्यम से वन विभाग को अधिकार देना चाह रही थी कि वह वन रक्षा के नाम पर गोली चला सकते हैं और अगर वह स्पष्ट करते हैं कि गोली कानून के अनुसार चलाई गई है, तो उनके ऊपर न्यायिक जांच के बिना मुकदमा दर्ज नहीं हो सकता है।
बता दें जन हस्तक्षेप में विभिन्न संगठनों के सदस्य शामिल हैं। उनके अनुसार अगर संशोधित कानून पास हो जाएगा तो वन विभाग के कर्मचारी गांव के किसी भी व्यक्ति को पैसे दे कर खत्म कर सकेंगे। बिना वारंट गिरफ्तार या छापे मार सकेंगे। जन चेतना आंदोलन के शंकर गोपाल ने कहा कि लोगों को उनके अधिकारों से वंचित किया जा रहा है, जबकि वन अधिकार अधिनियम 2006 को ही पूर्ण रूप से लागू किया जाना चाहिए था। ऐसा नहीं होने पर दस करोड़ से ज्यादा जंगल में रहने वाले खासतौर पर उत्तराखंड वासियों के परंपरागत हक खतरे में आ गए हैं।
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वहीं, कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने कहा कि वन अधिकार मामलों में लापरवाही कतई नहीं होनी चाहिए। सीपीआइ के समर भंडारी ने कहा कि विगत 13 फरवरी को कोर्ट ने लाखों परिवारों को बेदखल करने का आदेश दिया था। उत्तराखंड में भी सैकड़ों परिवार बेदखली के खतरे में थे, बावजूद इसके सरकार ने न्यायपीठ के उक्त आदेश वापस लेने की मांग तक नहीं की। मात्र आदेश को कुछ समय के लिए स्थगित करने की बात कही।
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