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जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए जल संस्थान का अभिनव प्रयोग, सीवरेज से तैयार कर रहे खाद; मिल रही मुफ्त

हरिद्वार जिले में एक अभिनव प्रयोग किया गया है। जलसंस्थान सीवरेज के शोधन के बाद बचने वाले सॉलिड-वेस्ट(गाद) से जैविक खाद तैयार कर रहा है। इससे पर्यावरण की रक्षा रासायनिक खाद और रासायनिक खेती को कम करने के साथ ही जिले में जैविक खेती को बढ़ावा मिल रहा है।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Tue, 20 Oct 2020 05:59 PM (IST)Updated: Tue, 20 Oct 2020 05:59 PM (IST)
जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए जल संस्थान का अभिनव प्रयोग, सीवरेज से तैयार कर रहे खाद; मिल रही मुफ्त
जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए जल संस्थान का अभिनव प्रयोग। जागरण

हरिद्वार, अनूप कुमार। उत्तराखंड के हरिद्वार जिले में एक अभिनव प्रयोग किया गया है। जलसंस्थान सीवरेज के शोधन के बाद बचने वाले 'सॉलिड-वेस्ट'(गाद) से जैविक खाद तैयार कर रहा है। इससे पर्यावरण की रक्षा, रासायनिक खाद और रासायनिक खेती को कम करने के साथ ही जिले में जैविक खेती को बढ़ावा मिल रहा है। खास बात ये है कि रासायनिक तत्वों से मुक्त इस खाद से किसान दोगुनी उपज का लाभ उठा सकेंगे। वहीं, जलसंस्थान इसे किसानों को नि:शुल्क मुहैया करवा रहा है। बता दें कि पहले गाद को खुले में फेंक दिया जाता है। इससे बदबू के साथ-साथ गंदगी फैलती थी, लेकिन जलसंस्थान के इस प्रयोग इससे निजात मिल गई है।

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रोजाना निकलता है 132 एमएलडी सीवरेज

सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार हरिद्वार में रोजाना 132 एमएलडी सीवरेज निकलता है। इसे सराय और जगजीतपुर स्थित क्रमश: 18, 14 और 68, 27 और 18 एमएलडी की क्षमता वाली एसटीपी में शोधन के लिए भेजा जाता है। अभी 68 एमएलडी की एसटीपी से शोधन के बाद गाद निकलने की तकनीक न हो पाने के कारण 77 एमएलडी सीवरेज से ही गाद निकलती है। जलसंस्थान के अधिशासी अभियंता अजय कुमार के अनुसार एक एमएलडी से करीब 300 किलो गाद निकलती है। इस गाद से ही जैविक खाद बनाई जाती है। अजय कुमार के अनुसार इस हिसाब से रोजाना करीब 23 हजार किलो गाद निकलती है। इसे शोधन के बाद जैविक खाद में तब्दील कर दिया जाता है। 

रसायनिक खाद से ज्यादा उपयोगी, साइड इफेक्ट भी नहीं

मानव मल-मूत्र मिश्रित सीवरेज जल के शोधन के बाद बचने वाली गाद के शोधन से तैयार जैविक खाद बाजार में बिक रही किसी भी रसायनिक खाद से न सिर्फ कहीं ज्यादा उपयोगी है। बल्कि उपज भी अधिक देती है। खास यह कि इस खाद के उपयोग से उगने वाली फसल में मानव शरीर के लिए कोई भी हानिकारक तत्व नहीं होते हैं और यह पूरी तरह से जैविक होती है। 

किसानों को दी जाती है नि:शुल्क, आधार कार्ड और पंजीकरण जरूरी

जलसंस्थान के अधिशासी अभियंता अजय कुमार ने बताया कि जैविक खाद के लिए किसानों को अपने खेत की भूमि के दस्तावेज की फोटो कॉपी के साथ ही आधार कार्ड और जलसंस्थान में पंजीकरण कराना अनिवार्य है। इसके बाद किसान को उनकी जरूरत के मुताबिक खाद नि:शुल्क दे दी जाती है। जिले में अबतक एक हजार से अधिक किसान इसके लिए पंजीकरण करवा चुके हैं। 

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जलसंस्थान के अधिशासी अभियंता अजय कुमार ने बताया कि जलसंस्थान ने सीवरेज जल के शोधन से बचने वाली गाद से जैविक खाद बनाई है। फिलवक्त रोजाना 20 क्यूबिक मीटर जैविक खाद बनाई जा रही है। इसे जलसंस्थान के नियमों के मुताबिक किसानों को नि:शुल्क उपलब्ध कराया जा रहा है। रसायनिक तत्वों के मुक्त इस जैविक का खाद के इस्तेमाल से किसान दोगुनी उपज प्राप्त कर सकते हैं। 

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