चालक और परिचालकों को वर्दी पहनना अनिवार्य, मिली कभी नहीं
उत्तराखंड रोडवेज के सेवा नियमावली में डयूटी के वक्त वर्दी अनिवार्य होने के बावजूद इन्हें वर्दी पहनने से गुरेज है। चालक-परिचालक तर्क दे रहे कि वेतन ही नहीं मिल रहा तो वे वर्दी कहां से लाएं वहीं रोडवेज प्रबंधन हर बार घाटे का रोना रो देता है।
अंकुर अग्रवाल, देहरादून। वर्दी की अहमियत क्या होती है, शायद उत्तराखंड रोडवेज के चालक व परिचालकों को नहीं मालूम। सेवा नियमावली में डयूटी के वक्त वर्दी अनिवार्य होने के बावजूद इन्हें वर्दी पहनने से गुरेज है। चालक-परिचालक तर्क दे रहे कि वेतन ही नहीं मिल रहा तो वे वर्दी कहां से लाएं, वहीं रोडवेज प्रबंधन हर बार घाटे का रोना रो देता है। हालात यह हैं कि वर्ष 2003 में उत्तर प्रदेश से अलग होने एवं उत्तराखंड परिवहन निगम बनने के बाद अब तक एक बार भी रोडवेज मुख्यालय ने कर्मचारियों को वर्दी नहीं दी। दो वर्ष पहले हाईकोर्ट ने भी इसका संज्ञान लेकर रोडवेज प्रबंधन को चालक-परिचालक के लिए वर्दी की अनिवार्यता संबंधी आदेश दिए थे, मगर प्रबंधन इसका अनुपालन नहीं कर सका।
सेवा नियमावली में वर्दी के साथ छाती पर नाम पट्टिका लगाना भी अनिवार्य शर्त है, लेकिन निगम में न वर्दी का उपयोग हो रहा, न ही नाम पट्टिका कहीं दिखाई देती। जिस कारण यात्रियों को न केवल परेशानी होती है, बल्कि यात्रा में असुविधा होने पर चालक-परिचालक की पहचान भी नहीं हो पाती। दरअसल, उत्तराखंड परिवहन निगम की ओर से चालक व परिचालकों के लिए वर्दी का पहनना अनिवार्य तो किया गया है, मगर वर्दी मिलती नहीं। नियमानुसार निगम द्वारा हर वर्ष दो जोड़ी वर्दी का कपड़ा तथा हर तीसरे वर्ष में गरम वर्दी का कपड़ा दिया जाना चाहिए लेकिन करोड़ों के वित्तीय घाटे से जूझ रहे रोडवेज प्रबंधन की ओर से वर्दी देना बंद कर दिया गया है। उत्तराखंड राज्य परिवहन निगम बने हुए 17 वर्ष बीत चुके हैं और इस अवधि में चालक-परिचालकों को एक मर्तबा भी वर्दी के लिए कपड़ा नहीं दिया गया।
इनके लिए हैं वर्दी अनिवार्य
ड्यूटी के दौरान रोडवेज बस के चालक परिचालकों के लिए वर्दी पहनना अनिवार्य है। यातायात निरीक्षक, सहायक निरीक्षक व कार्यशाला के तकनीकी कर्मचारियों को भी वर्दी पहनना आवश्यक है, लेकिन हकीकत यह है कि अधिकतर कर्मचारी बिना वर्दी में ही नजर आते हैं।
ना जुर्माना, ना कार्रवाई
ड्यूटी के दौरान वर्दी नहीं पहनने पर जुर्माने का प्रावधान है, लेकिन इसका कोई असर नहीं। नियमों के मुताबिक ड्यूटी के दौरान वर्दी नहीं पहनने पर पहली बार सौ रुपए जुर्माना एवं दूसरी गलती पर सौ रुपए व चेतावनी का नियम है। तीसरी गलती पर वर्दी भत्ता बंद करने का प्रावधान है, लेकिन जब प्रबंधन भत्ता ही नहीं देता तो कार्रवाई से भी मुंह फेर लेता है।
यात्रियों को होती है परेशानी
बस में चालक-परिचालक बिना वर्दी व नाम पट्टिका के होने से यात्रियों को टिकट नहीं देने, बदसलूकी संबंधी शिकायत आदि के लिए कार्मिक की पहचान करना यात्रियों के लिए परेशानी का सबब बनता है। गुजरे वर्षों में ऐसे कई उदाहरण हैं। परिचालक के विरुद्ध युवतियों से छेड़छाड़ के मामले आए तो चालकों पर शराब पीकर बदसलूकी के आरोप लगे। सभी मामलों में शिकायतकर्ता को शिकायत करने के लिए मशक्कत करनी पड़ी।
दीपक जैन (महाप्रबंधक, उत्तराखंड परिवहन निगम) ने कहा कि वित्तीय घाटे की वजह से परिवहन निगम चालक और परिचालकों को वर्दी नहीं दे पा रहा है। एक सितंबर 2018 से वर्दी पहनना अनिवार्य किया गया था और वर्दी भत्ता भी दिया जा रहा था, लेकिन कोरोना के दौरान बसों का संचालन न होने से मौजूदा वक्त में वेतन दे पाना भी मुश्किल हो रहा। प्रबंधन पर पांच माह का वेतन लंबित हो चुका है। हालात ठीक होने पर वर्दी पहनने के नियम को पूरी तरह लागू कराया जाएगा।
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