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हिमालयी चोटियों पर छोड़े गए कचरे से बढ़ रहा प्रदूषण, पर्वतारोही बदलें नजरिया

एवरेस्ट सहित ऊंची हिमालयी चोटियों पर पर्वतारोहियों के छोड़े गए कचरे से पर्यावरण काफी प्रदूषित हो रहा है। होना यह चाहिए कि पर्वतारोही छोड़े गए कचरे को वापसी पर अपने साथ लाएं।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Sat, 29 Feb 2020 02:45 PM (IST)Updated: Sat, 29 Feb 2020 02:45 PM (IST)
हिमालयी चोटियों पर छोड़े गए कचरे से बढ़ रहा प्रदूषण, पर्वतारोही बदलें नजरिया
हिमालयी चोटियों पर छोड़े गए कचरे से बढ़ रहा प्रदूषण, पर्वतारोही बदलें नजरिया

मसूरी, सूरत सिंह रावत। पर्वतारोहण के दौरान एवरेस्ट सहित ऊंची हिमालयी चोटियों पर पर्वतारोहियों के छोड़े गए कचरे से पर्यावरण काफी प्रदूषित हो रहा है। होना यह चाहिए कि पर्वतारोही पर्वतारोहण अभियानों के दौरान छोड़े गए कचरे को वापसी पर अपने साथ लाएं, जिससे पर्यावरण को होने वाले नुकसान से बचाया जा सके। माउंट एवरेस्ट फतह करने वाली जुड़वा बहनें ताशी और नुंग्शी ने शुक्रवार को मसूरी पहुंचने पर दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में यह बात कही।   

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दोनों बहनों ने हिमालयी चोटियों पर फैल रहे कचरे को लेकर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड को प्रकृति ने अद्भुत सुंदरता प्रदान की है। यहां के हिमाच्छादित पहाड़ पर्वतारोहियों के लिए कठिन लक्ष्य है, लेकिन पहाड़ की सुंदरता के आगे यह लक्ष्य भी आसानी से पूरा हो जाता है। ताशी ने कहा कि पर्वतारोहियों को पर्वतारोहण अभियानों के दौरान फैल रहे कचरे के प्रति अपना नजरिया बदलना होगा। उन्हें पर्वतारोहण अभियानों के लिए सिखाए गए बेस मैनेजमेंट को याद रखना होगा। हमें भी पर्वतारोहण के दौरान उत्तरकाशी के पर्वतारोहण संस्थान निम में कचरा नहीं फैलाए जाने के लिए विशेष प्रशिक्षण दिया गया था। जिसका हमने बखूबी से पालन किया। 

पर्वतारोहण के प्रति बदल रही लोगों की सोच: नुंग्शी   

एक अच्छा पर्वतारोही बनने को लेकर नुंग्शी ने बताया कि अभी तक लोगों की यही सोच थी कि पर्वतारोहण सिर्फ सेना और आइटीबीपी के अभियानों का हिस्सा है, लेकिन आज इसके प्रति लोगों का नजरिया बदल रहा है। खुद का अनुभव साझा करते हुए नुंग्शी ने बताया कि हमारा पर्वतारोहण के प्रति लगाव है। देश में क्रिकेट और अन्य खेलों को अधिक महत्व दिया जाता है। ऐसे में लड़की होकर पर्वतारोहण अपनाना बहुत कठिन था।

पर किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए लगन और कड़ी मेहनत की जरूरत होती है, जिसे हम दोनों बहनों ने अपनाया और अपने लक्ष्य की ओर बढ़े। उन्होंने बताया कि अपने अनुभव के आधार पर अब हमारी कोशिश अधिक से अधिक बच्चों व युवाओं में पर्वतारोहण के प्रति रुचि पैदा करने की रहेगी। जिससे वह भविष्य में अच्छे पर्वतारोही बन सकें। 

पर्वतारोहण को स्पोर्ट्स श्रेणी का दर्जा दिलाने की कोशिश 

नुंग्शी ने बताया कि पर्वतारोहण को अभी भी देश में बतौर स्पोर्ट्स श्रेणी में मान्यता नहीं मिली है। अभी तक इसे पर्यटन में ही रखा गया है। कहा कि हमारी कोशिश केंद्र और राज्य सरकारों के साथ काम करके पर्वतारोहण को स्पोर्ट्स श्रेणी का दर्जा दिलाने की रहेगी। 

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स्कूलों में बने रॉक क्लाइंबिंग और पर्वतारोहण वाल 

ताशी ने कहा कि रॉक क्लाइंबिंग अब ओलंपिक का हिस्सा बन चुका है। ओलंपिक में इसके लिए तीन स्वर्ण पदक रखे गए हैं। उन्होंने बच्चों को प्रशिक्षित करने के लिए स्कूलों में अनिवार्य रूप से रॉक क्लाइंबिंग और पर्वतारोहण वाल बनाने की मांग की। कहा कि इससे बच्चे आने वाले समय के लिए तैयारी कर सकेंगे। उन्होंने कहा कि कई खेलों में बहुत भाग दौड़ के बाद भी खिलाड़ियों को महत्व नहीं दिया जाता है। प्रशिक्षण तो दूर उनकी डाइट और न्यूट्रीशिन का ख्याल तक नहीं रखा जाता है। इसके प्रति ध्यान दिया जाना चाहिए। 

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कुछ दिनों का आराम, फिर शुरू करेंगे तैयारी 

ताशी ने बताया कि देहरादून में उन्होंने बच्चों को प्रशिक्षित करने के लिए एक संस्थान खोला है। जहां क्लाइंबिंग वाल भी स्थापित की है। कहा कि हाल ही में हम दोनों बहनों ने फिजी में आयोजित दुनिया की सबसे मुश्किल रेस कौड़ी को चैलेंज में भाग लिया। जिसमें दस दिनों में 700 किलोमीटर दूरी तय करनी थी, जिसमें हमारा पांच से छह किलो वजन कम हुआ है। फिलहाल कुछ दिन आराम करने के बाद भविष्य की तैयारियों पर जोर रहेेगा। 

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