अधिक एंटीबायोटिक से शेरों के शावकों में बढ़ रही विकलांगता, पढ़िए पूरी खबर
गुजरात के गिर नेशनल पार्क के शेर में जिंदा रहने के लिए नैसर्गिक क्षमताओं की जगह चिकित्सीय मदद के चलते उनकी संतति यह गुण खो रही है। इसके चलते शेरों के शावक जन्मांध या कमजोर हड्डियों के साथ पैदा हो रहे हैं। उनकी जीन की विविधता कम हो रही है।
देहरादून, सुमन सेमवाल। सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट (सबसे योग्य ही जिंदा रहता है)। जंगल के जीवन पर यह सिद्धांत सर्वाधिक सटीक बैठता है। हालांकि, वन और वन्यजीवों के प्रति बढ़ती संवेदनशीलता ने प्रकृति के इस सिद्धांत को काफी हद तक बदल दिया है। मरणासन्न हालात में पहुंच रहे जीवों को भी बेहतर इलाज से नया जीवन दिया जाने लगा है। इस बढ़ती देखभाल या दखल से वन्यजीव अपनी कुदरती क्षमता खोने लगे हैं। गुजरात के गिर नेशनल पार्क के शेर इसका ताजा उदाहरण हैं। जिंदा रहने के लिए नैसर्गिक क्षमताओं की जगह चिकित्सीय मदद के चलते उनकी संतति यह गुण खो रही है। इसके चलते शेरों के शावक जन्मांध या कमजोर हड्डियों के साथ पैदा हो रहे हैं। उनकी जीन की विविधता कम हो रही है।
गिर नेशनल पार्क के शेरों पर करीब 20 साल से अध्ययन कर रहे भारतीय वन्यजीव संस्थान के वरिष्ठ विज्ञानी डॉ वाईवी झाला ने बताया कि शेरों की अत्यधिक देखभाल के साथ उन्हें आवश्यकता से अधिक वैक्सीन या दवा दी जा रही है। इससे उनके शरीर में एंटीबायोटिक का प्रभाव बढ़ रहा है। फलस्वरूप उनमें रोगों से लड़ने की प्राकृतिक क्षमता घट रही है। इसका असर उनके जीन पर भी पड़ रहा है। आज से आठ-दस साल पहले की बात करें तो किसी भी शावक में जन्म के समय विकृतियां नहीं पाई जाती थीं। अब ऐसा नहीं है। एंटीबायोटिक के असर के चलते जीन प्रभावित होने से शेरों के भविष्य पर नए तरह का खतरा मंडराने लगा है। झाला के अनुसार बेहतर होगा कि शेरों को जंगल के भरोसे छोड़ दिया जाए। प्राकृतिक रूप से उनमें रोगों से लड़ने की क्षमता विकसित हो सकेगी और जीन की विविधता भी बढ़ेगी।
शावकों को जन्म देने वाले शेरों पर न करें प्रयोग
डॉ वाईवी झाला का कहना है कि जो शेरनियां शावक पैदा करने की क्षमता रखती हैंं, उनमें दवा का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। सामान्य तौर पर भी बेहद जरूरी होने पर ही शेरों को वैक्सीन दी जाए। यही एकमात्र विकल्प है, जिससे शेरों के भविष्य सुरक्षित रखा जा सकता है।
बाघों के साथ भी इसी अनदेखी की आशंका
डॉ झाला का कहना है कि तमाम संरक्षित क्षेत्रों में बाघों के साथ भी इलाज या देखभाल के नाम पर दखल बढ़ गया है। अभी बाघों को लेकर किसी तरह का अध्ययन नहीं किया गया है, मगर इस आशंका को खारिज नहीं किया जा सकता। उन्होंने सुझाव दिया कि बाघों की देखभाल में भी प्रकृति के नियमों का ख्याल रखा जाए।
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