कुकिंग ऑयल से डीजल बनाने को आइआइपी ने मिलाया हाथ, एक ही तेल बार-बार इस्तेमाल करना घातक
आइआइपी ने जैव ईंधन की दिशा में एक और कदम बढ़ाया है। वेस्ट कुकिंग ऑयल से बायोडीजल बनाने की तकनीक ईजाद करने के बाद संस्थान ने बड़े स्तर पर उत्पादन करने का निर्णय लिया।
देहरादून, जेएनएन। विश्व जैव ईंधन दिवस पर भारतीय पेट्रोलियम संस्थान (आइआइपी) ने जैव ईंधन (बायोफ्यूल) की दिशा में एक और कदम बढ़ाया है। वेस्ट कुकिंग ऑयल से बायोडीजल बनाने की तकनीक ईजाद करने के बाद संस्थान ने बड़े स्तर पर इसका उत्पादन करने का निर्णय लिया है। वेस्ट कुकिंग ऑयल को एकत्र करने के लिए संस्थान ने सोशल डेवलपमेंट फॉर कम्युनिटीज संस्था के साथ हाथ मिलाया है। माना जा रहा है कि प्रारंभिक चरण वेस्ट ऑयल से प्रतिमाह 10 हजार लीटर तक बायोडीजल बनाया जा सकता है।
सोमवार को आइआइपी के निदेशक डॉ. अंजन रे और सोशल डेवलपमेंट फॉर कम्युनिटीज के संस्थापक अनूप नौटियाल ने वेस्ट कुकिंग ऑयल एकत्र करने के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए। संस्थान के निदेशक डॉ. अंजन ने बताया कि भोजन पकाने के बाद बचे तेल का संग्रह करने के लिए रीपरपज यूज्ड कुकिंग ऑयल (रुको) योजना शुरू की गई थी। अब इसे वृहद रूप दिया जा रहा है। सहयोगी संस्था प्रदेश के विभिन्न होटल, रेस्तरां आदि में प्रयुक्त तेल का संग्रह कर संस्थान के प्लांट में पहुंचाएगी। कुकिंग ऑयल को एकत्र करने के लिए व्यापारिक प्रतिष्ठानों को उनकी खपत के हिसाब से श्रेणी बनाई जा रही है।
एक ही तेल बार-बार इस्तेमाल करना घातक
बार-बार गर्म करने के कारण तेल का टोटल पोलर कंपाउड (टीपीसी) 25 फीसद से कहीं अधिक हो जाता है, जो इसे जहरीला बना देता है। खासतौर से मांसाहारी भोजन बनाने के बाद बचे तेल में हेक्टोसाइक्लिक अमीन की मात्रा बहुत अधिक हो जाती है। इसके अलावा बार-बार फ्राई करने के बाद बचे तेल में पॉलीसाइक्लिक एरोमेटिक हाइड्रोकार्बन (पीएएच) की मात्र भी बढ़ जाती है, जो कैंसर का मुख्य कारक माना जाता है।
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तीन श्रेणियों में चिह्नित होंगे प्रतिष्ठान
- रोजाना 50 लीटर से अधिक तेल का इस्तेमाल करने वाले।
- 25 से 50 लीटर के बीच खाद्य तेल का इस्तेमाल करने वाले।
- 25 लीटर से कम तेल का इस्तेमाल करने वाले।
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