Move to Jagran APP

उत्‍तराखंड में आठवीं तक पाठ्यक्रम का हिस्‍सा बनेंगे मानव-वन्यजीव संघर्ष

मानव और वन्यजीव के सह अस्तित्व की भावना के मद्देनजर संघर्ष थामने को जनजागरण समेत अन्य उपाय करने के साथ आठवीं कक्षा तक पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने की तैयारी है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Sat, 12 Oct 2019 08:46 AM (IST)Updated: Sat, 12 Oct 2019 08:19 PM (IST)
उत्‍तराखंड में आठवीं तक पाठ्यक्रम का हिस्‍सा बनेंगे मानव-वन्यजीव संघर्ष
उत्‍तराखंड में आठवीं तक पाठ्यक्रम का हिस्‍सा बनेंगे मानव-वन्यजीव संघर्ष

देहरादून, केदार दत्त। विषम भूगोल और 71 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड में चिंताजनक स्थिति में पहुंच चुके मानव-वन्यजीव संघर्ष ने सरकार की पेशानी पर बल डाल दिए हैं। इस कड़ी में सह अस्तित्व की भावना के मद्देनजर संघर्ष थामने को जनजागरण समेत अन्य उपाय करने के साथ ही इस अहम मसले को आठवीं कक्षा तक पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने की तैयारी है। इस सिलसिले में शिक्षा विभाग प्रस्ताव तैयार करेगा। फिर कैबिनेट की मंजूरी के बाद इसे राज्यभर के स्कूलों में लागू कर दिया जाएगा। इससे जहां जनजागरण में मदद मिलेगी, वहीं लोगों को वन्यजीवों से बचाव के साथ ही इनके साथ रहने के तौर-तरीकों की जानकारी मिल सकेगी। 

loksabha election banner

यह किसी से छिपा नहीं है कि बाघ, हाथी समेत दूसरे वन्यजीवों के संरक्षण में उत्तराखंड अहम भूमिका निभा रहा है। वन्यजीवों की बढ़ती तादाद इसकी बानगी है। बावजूद इसके तस्वीर का दूसरा पहलू भी है। यही वन्यजीव यहां के निवासियों के लिए जान का सबब भी बन गए हैं। खासकर, गुलदारों के खौफ ने तो रातों की नींद और दिन का चैन छीना हुआ है। 

वन महकमे के आंकड़ों को ही देखें तो 2012-13 से लकर अगस्त 2019 के कालखंड में 350 लोग वन्यजीवों के हमले में मारे गए, जबकि 1886 घायल हुए हैं। इसके अलावा 32294 मवेशियों को जंगली जानवरों ने निवाला बनाया। फसल व भवन क्षति के मामले में भी कम नहीं हैं। इस संघर्ष में वन्यजीवों को भी जान गंवानी पड़ रही है। वर्ष 2001 से लेकर मार्च 2019 तक की अवधि में 1715 बाघ, हाथी व गुलदारों की मौत हुई। 

साफ है कि इस संघर्ष में मनुष्य और वन्यजीव दोनों को बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है। अब तो स्थिति अधिक विकट हो चली है। वन्यजीवों का खौफ गांवों से पलायन का एक बड़ा कारण भी है। ऐसे में ऐसे उपायों की दरकार है, जिससे मनुष्य भी महफूज रहे और वन्यजीव भी। इसी कड़ी में अब मानव वन्यजीव संघर्ष को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जा रहा है, ताकि बच्चे बाल्यकाल से ही वन्यजीवों से बचाव के गुर सीख सकें।

यह भी पढ़ें: विदेशी परिंदे बने उत्तराखंड के मेहमान, पहुंचे अपने इस पसंदीदा स्थान पर

डॉ. हरक सिंह रावत (वन एवं पर्यावरण मंत्री, उत्तराखंड) का कहना है कि समग्र आलोक में देखें तो जानवर तो अपना स्वभाव बदलेगा नहीं, लिहाजा मनुष्य को ही व्यवहार बदलना होगा। सह -अस्तित्व की भावना के तहत जीना सीखना होगा। इस कड़ी में जागरूकता कार्यक्रम पर जोर है। साथ ही मानव-वन्यजीव संघर्ष को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने के लिए शिक्षा विभाग को प्रस्ताव तैयार करने के निर्देश दिए जा रहे हैं। पहले चरण में आठवीं तक इसे पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने का विचार है।

यह भी पढ़ें: उत्तराखंड में कितनी है गुलदारों की संख्या, अब उठेगा इससे पर्दा


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.