देश में पहली बार मिली हिरण की ये प्रजाति, इस राज्य में है मौजूद
देश में पहली बार हॉग डियर की उप प्रजाति अन्ना मिटिकस पार्इ गर्इ है। ये प्रजाति अति संकटाग्रस्त प्रजातियों में शामिल है।
देहरादून, [सुमन सेमवाल]: भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआइआइ) के वैज्ञानिकों ने देश में पहली बार उस हॉग डियर की उप प्रजाति 'अन्ना-मिटिकस' की खोज की है, जिसकी संख्या पूरे विश्व में महज 300 के करीब है। इनमें से करीब 100 अन्ना-मिटिकस की पहचान मणिपुर के केइबुल लमजाओ नेशनल पार्क (केएलएनपी) में की गई है। जबकि अब तक इन्हें सामान्य हॉग डियर 'एक्सिस पोरसिनस' के रूप में ही गिना जाता था। अन्ना-मिटिकस की पहचान के बाद इस अति संकटग्रस्त प्रजाति के संरक्षण के प्रयास हो सकेंगे।
भारतीय वन्यजीव संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एसके गुप्ता के अनुसार मणिपुर के केइबुल लमजाओ नेशनल पार्क से हॉग डियर के मल व मृत डियर के मांस के 14 सैंपल लिए थे। इनकी डीएनए जांच से पता चला कि ये आनुवांशिक रूप से सामान्य हॉग डियर से अलग हैं और ये अति संकटग्रस्त अन्ना-मिटिकस हैं। जो कि हॉग डियर की ही एक उप प्रजाति है। ये हॉग डियर अब तक सिर्फ कंबोडिया में रिकॉर्ड गए हैं, जहां इनकी संख्या 200 के आसपास है।
हालांकि नई खोज के बाद अब अन्ना-मिटिकस के प्राकृतिक वासस्थलों में मणिपुर का भी नाम जुड़ गया है। सामान्य हॉग डियर को संकटग्रस्त प्रजातियों की रेड कैटेगरी के शेड्यूल एक में रखा गया है। जबकि मणिपुर में पाए गए अन्ना मिटिकस को अब अति संकटग्रस्त प्रजाजतियों की श्रेणी में शामिल किया जा सकेगा। इससे इनके संरक्षण की दिशा में नए विशेष प्रयास किए जा सकेंगे।
आनुवांशिक विविधता कम
भारतीय वन्यजीव संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एसके गुप्ता ने बताया कि मणिपुर में पाए गए हॉग डियर अन्ना-मिटिकस की आनुवांशिक विविधता (जेनेटिक्स डॉयवर्सिटी) बेहद कम है। इसकी तुलना कार्बेट टाइगर रिजर्व व काजीरंगा नेशनल पार्क के सामान्य हॉग डियर की आनुवांशिक विविधता से की गई थी। अध्ययन में पता चला कि ये न सिर्फ अति संकटग्रस्त श्रेणी में हैं, बल्कि संरक्षण के अभाव में ये विलुप्ति की तरफ भी बढ़ रहे हैं। किसी जीव की आनुवांशिक विविधता जितनी अधिक होती है, उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी उतनी ही बेहतर होती है।
सामान्य की अपेक्षा उप प्रजाति का आकार बड़ा
भारतीय वन्यजीव संस्थान के वैज्ञानिकों के अनुसार अन्ना-मिटिकस का आकर सामान्य हॉग डियर से थोड़ा बड़ा पाया गया है। हालांकि इसके अलावा देखने में इनमें अंतर पता नहीं चल पाता है। सिर्फ डीएनए जांच के बाद ही इनके बीच के अंतर को स्पष्ट किया जा सकता है।
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