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भूकंप के लिहाज से संवेदनशील उत्तराखंड के कुमाऊं में है बड़े भूकंप का इतिहास

ऐतिहासिक बड़े भूकंप (सात-आठ रिक्टर स्केल) की बात करें तो कुमाऊं मंडल में वर्ष 1334 व 1505 में बड़ा भूकंप आ चुका है। अब तब वहां बड़ा भूकंप नहीं आने से फिर बड़े भूकंप की आशंका बनी है।

By Edited By: Published: Mon, 12 Nov 2018 03:00 AM (IST)Updated: Tue, 13 Nov 2018 08:55 AM (IST)
भूकंप के लिहाज से संवेदनशील उत्तराखंड के कुमाऊं में है बड़े भूकंप का इतिहास
भूकंप के लिहाज से संवेदनशील उत्तराखंड के कुमाऊं में है बड़े भूकंप का इतिहास

देहरादून, [सुमन सेमवाल]: भूकंप के लिहाज से समूचा उत्तराखंड बेहद संवेदनशील है और पिथौरागढ़ में रविवार को आए भूकंप ने यह संकेत दे दिए हैं कि भविष्य में बड़े भूकंप की आशंका लगातार बनी है। ऐतिहासिक बड़े भूकंप (सात-आठ रिक्टर स्केल) की बात करें तो कुमाऊं मंडल में वर्ष 1334 व 1505 में बड़ा भूकंप आ चुका है। जिसमें एक भूकंप का व्यापक असर हरिद्वार के लालढांग तक व दूसरे का पंजाब तक महसूस किया गया।

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वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. आरजे पेरूमल का कहना है कि कुमाऊं क्षेत्र में बड़ा भूकंप रामनगर में 1334 व 1505 में आ चुका है। तब से लेकर अब तक कोई बड़ा भूकंप नहीं आया है, जबकि भूगर्भ में तनाव की स्थिति लगातार बनी है। ऐसे में कहा जा सकता है कि यहां कभी भी बड़ा भूकंप आ सकता है। 

यह ऐतिहासिक भूकंप हिमालयन फ्रंटल थ्रस्ट में आए थे, जबकि रविवार को पिथौरागढ़ में भूकंप मेन सेंट्रल थ्रस्ट में आया। दोनों के बीच सीधा संबंध भले ही न हो, लेकिन धरती के भीतर दोनों थ्रस्ट पर ऊर्जा जमा हो रही है।

उन्होंने कहा कि छोटे भूकंप इस बात का भी संकेत होते हैं कि भूगर्भीय प्लेटों में तनाव की स्थिति है। 250 किलोमीटर भाग बना लॉक्ड जोन देहरादून से टनकपुर के बीच करीब 250 किलोमीटर क्षेत्रफल भूकंप का लॉक्ड जोन बन गया है। इस क्षेत्र की भूमि लगातार सिकुड़ती जा रही है और धरती के सिकुड़ने की यह दर सालाना 18 मिलीमीटर प्रति वर्ष है। यानी इस पूरे भूभाग में भूकंपीय ऊर्जा संचित हो रही है, लेकिन ऊर्जा बाहर नहीं निकल पा रही। 

यह बात वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के साथ ही नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी के अध्ययन में भी सामने आ चुकी है। अध्ययन में पता चला कि यह पूरा भूभाग 18 मिलीमीटर की दर से सिकुड़ रहा है। जबकि पूर्वी क्षेत्र में यह दर महज 14 मिलीमीटर प्रति वर्ष पाई गई। इस सिकुड़न से धरती के भीतर ऊर्जा का भंडार बन रहा है, जो कभी भी इस पूरे क्षेत्र में सात-आठ रिक्टर स्केल के भूकंप के रूप में सामने आ सकती है। 

क्योंकि इस पूरे क्षेत्र में सैकड़ों सालों में कोई शक्तिशाली भूकंप नहीं आया है। एक समय ऐसा आएगा जब धरती की सिकुड़न अंतिम स्तर पर होगी और कहीं पर भी भूकंप के रूप में ऊर्जा बाहर निकल आएगी। 

नेपाल में इसी कारण आया था बड़ा भूकंप 

नेपाल में धरती के सिकुड़ने की दर इससे कुछ अधिक 21 मिलीमीटर प्रति वर्ष पाई गई। यही वजह है कि वर्ष 1934 में बेहद शक्तिशाली आठ रिक्टर स्केल का नेपाल-बिहार भूकंप आने के बाद वर्ष 2015 में भी 7.8 रिक्टर स्केल का बड़ा भूकंप आ चुका है।

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