Move to Jagran APP

हिमालय दिवस: दरकते हिमालय की समझनी होगी फरियाद, पढ़िए पूरी खबर

हिमालय के दर्द को समझने की जरूरत है कि आखिर वह चाहता क्या है। जाहिर सी बात है कि उसे संरक्षण की दरकार है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Mon, 09 Sep 2019 12:18 PM (IST)Updated: Mon, 09 Sep 2019 09:05 PM (IST)
हिमालय दिवस: दरकते हिमालय की समझनी होगी फरियाद, पढ़िए पूरी खबर
हिमालय दिवस: दरकते हिमालय की समझनी होगी फरियाद, पढ़िए पूरी खबर

देहरादून, केदार दत्त। बदली परिस्थितियों में हिमालय तमाम झंझावातों से जूझ रहा है। कराहते हिमालय के दर्द को वहां लगातार आ रही आपदाओं के तौर पर समझा जा सकता है। उत्तराखंड भी इससे अछूता नहीं है। ऐेसे में हिमालय के दर्द को समझने की जरूरत है कि आखिर वह चाहता क्या है। जाहिर सी बात है कि उसे संरक्षण की दरकार है। हिमालय के संरक्षण को सिर्फ सरकारी स्तर से काम नहीं चलेगा, इसके लिए जनसामान्य को भी पूरी शिद्दत के साथ आगे आना होगा।

loksabha election banner

देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल के 16.3 फीसद क्षेत्र में विस्तार लिए जम्मू-कश्मीर से लेकर पूर्वाेत्तर राज्यों तक फैले हिमालयी क्षेत्र की सेहत निरंतर नासाज हो रही है। स्थिति ये हो चली है कि जिस बरसात के शुरू होते ही मन मयूर नृत्य करने लगता था, अब वही हिमालयी क्षेत्र के बाशिंदों को आपदाओं से भयभीत करने लगी है। उत्तराखंड भी इससे अछूता नहीं है।

जरा याद कीजिए 2013 में केदारनाथ में आई जल प्रलय को, जिसने बड़े पैमाने पर जन-धन को भारी क्षति पहुंचाई। इसके बाद से भी आपदाओं का सिलसिला थमा नहीं है। हर साल इस हिमालयी क्षेत्र में बादल फटना, भूस्खलन, हिमस्खन, नदियों का बढ़ता वेग जैसी आपदाओं से राज्यवासी दो चार हो रहे हैं। ऐसी ही स्थिति जम्मू-कश्मीर से लेकर पूर्वोत्तर राज्यों तक की भी है। वे भी निरंतर आपदा का दंश झेल रहे हैं।

यह भी पढ़ें: पारिस्थितिकी को केंद्र में रख बने हिमालयी विकास का रोडमैप, पढ़िए पूरी खबर

साफ है कि हिमालयी क्षेत्रों में लगातार आ रही आपदाओं के बाद भी इनसे सबक लेने की जरूरत सरकारों के साथ ही जनसामान्य ने नहीं समझी है। जिस तरह से मानसून के आगमन और विदाई के वक्त आपदाएं अधिक आ रही हैं, उन्हें हिमालय की पीड़ा के रूप में समझते हुए इनके निदान को कदम उठाने होंगे। कहने का आशय से कि हिमालय की मनोदशा को समझने की आवश्यकता है कि वह क्या चाहता है। इसके आधार पर ही उसके संरक्षण के लिए कदम उठाने की दरकार है। यह ठीक है कि आपदाओं के लिए मानवजनित कारण अधिक हैं, लेकिन इन्हें थामने को ऐसे प्रयासों की जरूरत है, जिससे हिमालय भी महफूज रहे और यहां के बाशिंदे भी।

यह भी पढ़ें: उत्‍तराखंड में मानसून की बारिश सामान्य से 23 फीसद कम, पढ़ि‍ए पूरी खबर 

मानसून की शुरुआत व विदाई के वक्त 90 फीसद आपदाएं 

वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान की ओर से वर्ष 1970 से 2015 के मध्य हिमालयी क्षेत्र में आई बड़ी आपदाओं का अध्ययन किया गया। इसमें बात सामने आई कि हिमालयी क्षेत्र में 90 फीसद आपदाएं मानसून की शुरुआत यानी जूल-जुलाई और विदाई के समय अगस्त मध्य से सितंबर के दौरान हुई। यह सिलसिला वर्तमान में भी देखने में सामने आ रहा है। 

यह भी पढ़ें: उत्तराखंड में फिर जुटेंगे हिमालयी राज्य, 10-11 अक्टूबर को होगी क्षेत्रीय कार्यशाला


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.