ठंडे बस्ते में : उत्तराखंड में हेली एंबुलेंस को नहीं लगे पंख
प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में आपदा और दुर्घटना में समय से इलाज न मिलने के कारण हर साल कई व्यक्ति अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं। इसे देखते हुए प्रदेश सरकार ने बेहतर स्वास्थ्य सुविधा की तस्वीर खींची।
विकास गुसाईं, देहरादून। प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में आपदा और दुर्घटना में समय से इलाज न मिलने के कारण हर साल कई व्यक्ति अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं। इसे देखते हुए प्रदेश सरकार ने बेहतर स्वास्थ्य सुविधा की तस्वीर खींची। स्थानीय स्तर पर स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने के साथ ही हेली एंबुलेंस संचालित करने का निर्णय लिया गया। वर्ष 2016 में इस दिशा में पत्रावली बनानी शुरू की गई। दो साल पत्रावली को बनाने में लग गए। वर्ष 2018 में हेली एंबुलेंस संचालित करने का प्रस्ताव केंद्र को भेजा गया। दिसंबर 2018 में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन से इसके लिए आर्थिक मदद मिली। जनवरी 2019 से एंबुलेंस सेवा के शुरू होने की उम्मीद जताई गई। इसके लिए कई हेली कंपनियों ने प्रस्तुतिकरण भी दिए। तमाम कारणों से किसी भी कंपनी से आज तक सरकार का करार नहीं हो सका। नतीजतन, हेली सेवा का संचालन अभी भी शुरू नहीं हो पाया है।
तलाश एक अदद आउटसोर्सिंग एजेंसी की
सरकार हर साल बेरोजगारों को रोजगार दिलाने के नाम पर लंबे-चौड़े वादे करती है, लेकिन इसके लिए धरातल पर अभी तक पुख्ता काम नहीं हो पाया है। बीते पांच वर्षों से सरकार एक अदद आउटसोर्सिंग एजेंसी का चयन नहीं कर पाई है। दरअसल, प्रदेश में पांच वर्ष पूर्व उत्तराखंड पूर्व सैनिक कल्याण निगम लिमिटेड (उपनल) आउटसोर्सिंग एजेंसी के रूप में कार्य कर रहा था। वर्ष 2016 में सरकार के मंत्रियों के बीच आपसी खींचतान के चलते उपनल के जरिये केवल पूर्व सैनिकों और उनके आश्रितों को ही रोजगार देने का निर्णय लिया गया। कहा गया कि शेष प्रदेशवासियों के लिए अलग आउटसोर्सिंग एजेंसी का चयन किया जाएगा। इसके लिए युवा कल्याण विभाग को जिम्मा देने पर विचार किया गया। यह मसला मंत्रिमंडल के समक्ष आया, लेकिन सहमति नहीं बन पाई। स्थिति यह कि अब तक युवाओं को रोजगार देने के लिए किसी नई एजेंसी का चयन नहीं हो पाया है।
ग्रीन कार्ड पर कोरोना का पहरा
प्रदेश में चारधाम यात्रा के दौरान आने वाले वाहनों को आनलाइन ग्रीन कार्ड जारी करने की योजना दूसरे साल भी शुरू नहीं हो पाई है। कारण, कोरोना की वजह से बीते वर्ष से यात्रा सुचारू नहीं चल पाई। इस वर्ष एक बार फिर कोरोना के कारण यात्रा स्थगित कर दी गई है। दरअसल, प्रदेश में चारधाम यात्रा के दौरान व्यावसायिक वाहनों के लिए परिवहन विभाग ग्रीन कार्ड जारी करता है। यात्रा के लिए 20 हजार से अधिक ग्रीन कार्ड जारी किए जाते हैं। ग्रीन कार्ड का अर्थ होता है कि वाहन पर्वतीय मार्गों पर चलने के लिए पूरी तरह फिट है। प्रदेश में हर साल ग्रीन कार्ड जारी करने के समय कार्यालयों में वाहनों की कतार लग जाती है। इसे देखते हुए आनलाइन ग्रीन कार्ड जारी करने का निर्णय लिया गया। इसके लिए साफ्टवेयर भी तैयार कर दिया गया। अफसोस, कोरोना के कारण विभागीय कवायद परवान नहीं चढ़ पाई है।
फिर अटकी पुलिस की नई रेंज
प्रदेश में बेहतर कानून-व्यवस्था के लिए राज्य गठन के बाद से ही पुलिस रेंज, यानी परिक्षेत्र की संख्या बढ़ाने पर विचार चल रहा है। तमाम प्रयासों के बाद बीते वर्ष सरकार के गैरसैंण को मंडल बनाने की घोषणा के बाद उम्मीदें परवान चढ़ी थीं क्योंकि मंडल की घोषणा के साथ ही सरकार ने यहां पुलिस की तीसरी रेंज बनाने की बात कही। कहा गया कि यहां डीआइजी स्तर का अधिकारी बैठेगा। इससे पर्वतीय क्षेत्रों में कानून-व्यवस्था के बेहतर होने की उम्मीद जगी। अफसोस, प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन के बाद नए मंडल के साथ ही पुलिस परिक्षेत्र की घोषणा भी कागजों में बंद हो गई। पुलिस की नई रेंज बनाने की कवायद वर्ष 2013 से शुरू हुई। इस दौरान अल्मोड़ा और हरिद्वार में दो नई रेंज का प्रस्ताव शासन को भेजा गया। तभी प्रदेश में आपदा आई और नेतृत्व परिवर्तन के बाद नई रेंज फाइलों में ही कैद होकर रह गई।
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