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भीख मांग गुजारा करने को मजबूर हंसी के आगे नहीं चली भाई की जिद, उनके साथ जाने से किया इनकार

हंसी प्रहरी के भाई आनंद राम अनुराग देर शाम दिल्ली से हरिद्वार पहुंचे। उन्होंने बहन से मुलाकात की और साथ चलने की जिद भी की लेकिन हंसी ने उनकी एक न सुनी और उनके इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Tue, 20 Oct 2020 09:45 PM (IST)Updated: Tue, 20 Oct 2020 09:45 PM (IST)
भीख मांग गुजारा करने को मजबूर हंसी के आगे नहीं चली भाई की जिद, उनके साथ जाने से किया इनकार
भीख मांग गुजारा कर रहीं हंसी के आगे नहीं चली भाई की जिद।

हरिद्वार, जेएनएन। हंसी प्रहरी के भाई आनंद राम अनुराग देर शाम दिल्ली से हरिद्वार पहुंचे। उन्होंने बहन से मुलाकात की और साथ चलने की जिद भी की, लेकिन हंसी ने उनकी एक न सुनी और उनके इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। आपको बता दें कि अल्मोड़ा में रह रहे परिजनों से जानकारी लेकर हंसी के भाई हरिद्वार पहुंचे। उनका कनहा है कि उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था कि हंसी हरिद्वार में किस हालत में रह रही हैं।  इससे पहले राज्य मंत्री रेखा आर्य हंसी से मिलने पहुंची और उनका हालचाल जाना। उन्होंने हंसी के सामने सरकारी नौकरी और आवास का भी प्रस्ताव रखा। 

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बता दें हंसी वो महिला है, जो अपने छात्र जीवन में न केवल कुशल वक्ता रही, बल्कि छात्र राजनीति में सक्रिय रहते हुए कुमाऊं विश्वविद्यालय के अल्मोड़ा परिसर में छात्रसंघ उपाध्यक्ष भी चुनी गई। पर इसे नियति का खेल ही कहेंगे कि अंग्रेजी और राजनीति शास्त्र में एमए डिग्रीधारी ये महिला आज हरिद्वार की सड़कों पर भीख मांग अपना और बच्चे का गुजारा करने को मजबूर हैं। पर हौसले अब भी मजबूत हैं। वो अपने बच्चे को पढ़ा भी रही हैं और अफसर बनाने के सपने बुन रही हैं। 

अल्मोड़ा जिले के हवालबाग ब्लॉक स्थित ग्राम रणखिला गांव की रहने वाली इस महिला का नाम है हंसी प्रहरी। पांच भाई-बहनों में सबसे छोटी हंसी की इंटर तक की शिक्षा गांव में ही हुई और फिर उसने कुमाऊं विश्वविद्यालय के अल्मोड़ा परिसर में प्रवेश ले लिया। पढ़ाई के साथ-साथ वह विवि की तमाम शैक्षणिक गतिविधियों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती थी। बकौल हंसी, 'वर्ष 2000 में मैं छात्रसंघ में उपाध्यक्ष चुनी गई और फिर विवि की ही सेंट्रल लाइब्रेरी में चार साल तक नौकरी की।'

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सड़क किनारे पढ़ा रही थी बच्चे को 

हरिद्वार में हंसी की ओर मीडिया का ध्यान रविवार को तब गया, जब वह सड़क किनारे अपने छह साल के बेटे को पढ़ा रही थी। उसकी फर्राटेदार अंग्रेजी हर राहगुजर को हतप्रभ कर देने वाली थी। हंसी बताती है कि ससुराल की कलह से परेशान होकर वर्ष 2008 में वह लखनऊ से हरिद्वार चली आई। यहां शारीरिक रूप से कमजोर होने के कारण वह नौकरी नहीं कर पाई और रेलवे स्टेशन, बस अड्डा आदि स्थानों पर भीख मांगने लगी। इस हाल में भी हंसी की हिम्मत डिगी नहीं है, वह बेटे को पढ़ा रही है और चाहती है कि वह प्रशासनिक अधिकारी बने। 

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