महान आलोचक नामवर सिंह का उत्तराखंड से था गहरा नाता, जनिए
हिंदी आलोचना के शिखर पुरुष नामवर सिंह का उत्तराखंड से गहरा नाता रहा है। जब-जब उन्हें समय मिला वह देहरादून समेत गढ़वाल और कुमाऊं मंडल के तमाम स्थानों पर भ्रमण करते रहे।
देहरादून, जेएनएन। हिंदी आलोचना के शिखर पुरुष नामवर सिंह का उत्तराखंड से गहरा नाता रहा है। जब-जब उन्हें समय मिला, वह देहरादून समेत गढ़वाल और कुमाऊं मंडल के तमाम स्थानों पर भ्रमण करते रहे। यहां उन्होंने साहित्य के तमाम कार्यक्रमों में शिरकत की और साहित्य की सभी विधाओं पर साहित्यकारों का मार्गदर्शन भी किया। उनके निधन से उत्तराखंड का साहित्य जगत भी खासा आहत है। इसे अपूर्णीय क्षति बताते हुए साहित्यकारों ने कहा कि अब उनके साथ नामवर सिंह की वह सीख है, जिसे वह धरोहर के रूप में छोड़ गए हैं।
प्रसिद्ध साहित्यकार पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी का कहना है कि उनकी अधिकतर कविताओं को नामवर सिंह ने अपनी पत्रिका 'आलोचना' में स्थान दिया। यह बात कहने में भी गुरेज नहीं है कि जब नामवर ने उनका चुनाव किया, तभी लोगों ने भी उन्हें चुना। साहित्यकार जगूड़ी ने बताया कि उनके आमंत्रण पर आधुनिक युग के महान आलोचक नामवर सिंह ने उत्तरकाशी के डिग्री कॉलेज व देहरादून में साहित्य के कार्यक्रमों पर अपना आशीष बनाया। नामवर सिंह को हिमालय के प्रति हमेशा ही अगाध स्नेह रहा है।
गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो. मंजुल राणा ने बताया कि साहित्य अकादमी की बैठक में अक्सर उनकी नामवर सिंह के साथ साहित्य के अलावा पहाड़ पर भी खासी चर्चा होती थी। साहित्य अकादमी की तरफ से वर्ष 2009 में देहरादून में बुलाई गई बैठक में भी नामवर सिंह पहुंचे थे। उनका चले जाना वास्तव में साहित्य जगत के लिए अपूर्णीय क्षति है। वहीं, रुड़की के चावमंडी निवासी कवि नरेश राजवंशी नामवर सिंह को याद करते हुए बताते हैं कि उनकी विभिन्न कार्यक्रमों में चार-पांच बार महान आलोचक से मुलाकात हुई। रचनाओं में हलकापन होने पर वह कान पकड़कर समझाते थे।
वह हमेशा युवा साहित्यकारों का प्रेरणास्रोत बने रहेंगे। आइआइटी रुड़की भी नामवर सिंह की यादों को समेटे है। 14 सितंबर 1998 को आइआइटी (तब विश्वविद्यालय) में आयोजित हिंदी दिवस समारोह में वह बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए थे। उन्होंने अपने वक्तव्य में ङ्क्षहदी दिवस को राष्ट्रीय पर्व की संज्ञा दी थी। उन्होंने कहा था कि हिंदी दिवस किसी अन्य भाषा के विरोध का दिवस नहीं है, बल्कि इसे भाषाओं के सौहार्द और उल्लास के रूप में मनाना चाहिए। इसके साथ ही भावी इंजीनियरों को संबोधित करते हुए स्वयं को शब्दों का इंजीनियर बताया था। कहा था कि एक साहित्यकार सदैव भाषाई अनुसंधान में व्यस्त रहता है।
राष्ट्रभाषा रही हिंदी, 14 सितंबर बनाता है राजभाषा
आइआइटी रुड़की के पूर्व हिंदी अधिकारी और वर्तमान में हिंदी भवन में राजभाषा अधिकारी पराग चतुर्वेदी के मुताबिक, नामवर सिंह हमेशा कहते रहे कि हिंदी सदैव राष्ट्र भाषा रही है। 14 सितंबर को तो उसे केवल राजभाषा बनाया गया है।
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