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मेरे दीदार को पहुंचते हैं सात समंदर पार के लोग, पर इस तरह हो रही मैं बेनूर

मसूरी में कूड़े के ढेर मुसीबत का सबब बने हैं। ये मसूरी के सौंदर्य पर दाग लगाने के साथ ही दुर्गंध का भी कारण बने हैं।

By Edited By: Published: Tue, 16 Apr 2019 03:01 AM (IST)Updated: Tue, 16 Apr 2019 08:40 PM (IST)
मेरे दीदार को पहुंचते हैं सात समंदर पार के लोग, पर इस तरह हो रही मैं बेनूर
मेरे दीदार को पहुंचते हैं सात समंदर पार के लोग, पर इस तरह हो रही मैं बेनूर

मसूरी, सूरत सिंह रावत। मैं पहाड़ों की रानी मसूरी हूं। मेरे दीदार को भारत ही नहीं, सात समंदर पार से लोग यहां पहुंचते हैं। सालभर का हिसाब दूं तो 30 लाख से अधिक सैलानियों की आमद यहां होती है। मंसूर के पौधों से मेरा मसूरी नाम जरूर पड़ा, पर मेरा वजूद तो इन खूबसूरत पहाड़ियों से ही है। जिन पर आज कंकरीट का जंगल लहलहा रहा है और मेरे आंचल में खड़ा गंदगी का पहाड़ मुझे बेनूर कर रहा है।

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मेरा इतिहास महज 194 वर्ष पुराना है। वर्ष 1825 में एक ब्रितानी मिलिट्री ऑफीसर कैप्टन यंग ने अपनी टीम के साथ मुझे खोजा था। कर्नल एवरेस्ट ने भी मेरे आंचल में अपना घर बनाया। तब से लोग मेरी सुंदर वादियों में आते रहे और आनंदित होकर लौटते रहे। पर, शहरों से लाई गंदगी को वापस ले जाना उन्होंने जरूरी नहीं समझा। मेरी खैरख्वाह नगर पालिका ने इस कूड़े को एकत्र तो किया, लेकिन निस्तारण करने के बजाय उसे गाड़ीखाना के पास डालते रहे। जहां आज कूड़े का पहाड़ खड़ा हो गया है।

आज सैलानी जब मेरे दीदार को यहां पहुंचते हैं तो कैम्पटी फॉल और कंपनी गॉर्डन जाना नहीं भूलते। लेकिन, उन्हें देख मैं तब शर्म से पानी-पानी हो जाती हूं, जब वे गांधीचौक जीरो प्वाइंट से गाड़ीखाना होते हुए मुंह पर रुमाल रखकर गुजरते हैं। इस कूड़े के पहाड़ की दुर्गंध गाड़ीखाना के पास होटल, रेस्तरां, आवासीय घरो, लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी के इंद्रभवन कॉम्प्लेक्स और वैवरली कॉन्वेंट स्कूल और सेंट लॉरेंस हाईस्कूल तक पहुंचती है। कूड़े के इस पहाड़ के तले पर मेरे इलाके में पेयजल सप्लाई करने वाले भिलाडू पं¨पग स्टेशन का जलस्त्रोत भी है। बरसात में तो यहां से गंदगी सीधे जलस्त्रोत तक पहुंच जाती है और इसी पानी को यहां के बाशिदे पीते हैं।

मेरे दामन के इस बदनुमा दाग को दूर करने के लिए आज तक किसी भी नुमाइंदे ने शिद्दत के साथ प्रयास नहीं किया। आज भी ऑफ सीजन में प्रतिदिन औसतन 10 से 12 टन और सीजन में 22 से 24 टन कूड़ा एकत्रित होता है। इसमें से इन दिनों चार टन कूड़ा ही देहरादून के शीशमबाड़ा भेजा जा रहा है। बाकी बचा कूड़ा-कचरा तो गाड़ीखाना में ही जमा होता है। मेरे खैरख्वाह पालिकाध्यक्ष अनुज गुप्ता से जब इस बारे में सवाल करते हैं तो उनका जवाब होता है, 'मेरी प्राथमिकता मसूरी से प्रतिदिन एकत्रित पूरे कूड़े को शीशमबाड़ा देहरादून भेजना है। ताकि गाड़ीखाना में कूड़े का ढेर और न बढ़े।' आप ही बताइए! क्या उनकी बात सच साबित हो पाएगी। अब तक के अनुभवों से मेरा तो इन दावों-वादों पर से विश्वास उठ चुका है।

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