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गंगा-यमुना के उद्गम स्थल के पावन धाम हैं गंगोत्री और यमुनोत्री, खास है इनका पूजा का विधान

उत्तरकाशी में गंगोत्री और यमुनोत्री धाम हैं। गंगोत्री धाम गंगा के उद्गम स्थल से 19 किमी पहले स्थित है जबकि यमुनोत्री यमुना के उद्गम स्थल कालिंदी ग्लेशियर से आठ किमी पहले है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Mon, 07 Sep 2020 12:42 PM (IST)Updated: Mon, 07 Sep 2020 10:55 PM (IST)
गंगा-यमुना के उद्गम स्थल के पावन धाम हैं गंगोत्री और यमुनोत्री, खास है इनका पूजा का विधान
गंगा-यमुना के उद्गम स्थल के पावन धाम हैं गंगोत्री और यमुनोत्री, खास है इनका पूजा का विधान

उत्तरकाशी, शैलेंद्र गोदियाल। हिमालय की गोद में बसे उत्तरकाशी जनपद में गंगोत्री और यमुनोत्री धाम हैं। इन धामों की खास महत्वता है। गंगोत्री धाम गंगा के उद्गम स्थल से 19 किलोमीटर पहले स्थित है, जबकि यमुनोत्री धाम यमुना के उद्गम स्थल कालिंदी ग्लेशियर से आठ किलोमीटर पहले है। यह हर वर्ष देश विदेश से लाखों श्रद्धालु दर्शन को आते हैं, लेकिन इस बार कोरोना संक्रमण के कारण यात्रा खासी प्रभावित है। भले ही दोनों धामों के कपाट खोलने के शुभ मुहूर्त में कोई भी बदलाव नहीं किया गया। 

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लॉकडाउन के बीच दोनों धामों के कपाट अक्षय तृतीय पर 26 अप्रैल को खोले गए। यात्रा को बढ़ावा देने के लिए दोनों धामों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम से पहली पूजा आयोजित की गई। परंपरा के अनुसार गंगोत्री धाम की डोली अक्ष्य तृतीय के एक दिन पहले शीतकालीन प्रवास स्थल मुखवा से रवाना होती है। फिर भैरव घाटी के भैरव मंदिर में विश्राम करती है। अगले दिन डोली को पैदल यात्रा कर गंगोत्री धाम पहुंचा जाता है, जबकि यमुनोत्री धाम की डोली अक्षय तृतीय के दिन ही सुबह शीतकालीन प्रवास स्थल खरसाली से रवाना होती है।

यात्रा पर कोरोना का पड़ा है असर  

कोरोना संक्रमण के कारण इस बार यात्रा पूरी तरह से प्रभावित है। अप्रैल 2020 से लेकर अभी तक गंगोत्री धाम के दर्शन करने के लिए 3950 यात्री गए, जबकि यमुनोत्री धाम में केवल 566 यात्री ही जा सके हैं। जो यात्री धामों में जा रहे हैं, वे भी मंदिर के दर्शन और पूजा अर्चना भी नहीं कर पा रहे हैं। कोरोना संक्रमण के चलते मंदिर में यात्रियों का प्रवेश वर्जित है।

खास है पूजा का विधान 

गंगा की डोली गंगोत्री धाम पहुंचने के बाद हवन-पूजन होता है। वैदिक मंत्रोचारण के साथ मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोले जाते हैं। गंगा मां की उत्सव मूर्ति को मंदिर में स्थापित किया जाता है। हर दिन गंगा लहरी और गंगसहस्रनाम पाठ भी होता है, जबकि यमुना की डोली शनि महाराज की अगुआई में यमुनोत्री धाम पहुंचती है। 

 जहां विधिवत रूप से हवन पूजन होता है तथा यमुना मां के जयघोष व मंत्रोचारण के साथ कपाट खोले जाते हैं। जिसके बाद यमुना की मूर्ति को मंदिर स्थापित किया जाता है। सूर्य पुत्री यमुना को शनि महाराज की बहन माना जाता है।

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