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गंगा की धारा को घाट पर लाने वाले भगीरथ हुए गायब

गंगा, जमुना और सरस्वती का संगम यहां होने के कारण ऋषिकेश के इस स्थान को त्रिवेणी कहा गया है। मानसून काल को छोड़कर शेष माह यहां गंगा पक्के घाट को छोड़कर करीब सौ मीटर दूर बहती है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Fri, 16 Nov 2018 08:19 PM (IST)Updated: Fri, 16 Nov 2018 08:19 PM (IST)
गंगा की धारा को घाट पर लाने वाले भगीरथ हुए गायब
गंगा की धारा को घाट पर लाने वाले भगीरथ हुए गायब

ऋषिकेश, जेएनएन। ऋषि-मुनियों की तपस्थली ऋषिकेश में त्रिवेणी घाट को इसका हृदय कहा जाता है। पूरे निकाय क्षेत्र में एक मात्र यही स्थान ऐसा है, जो पर्यटकों और श्रद्धालुओं को आर्किषत करती रही है। पुरणों और शास्त्रों में इस स्थान का वर्णन मिलता है। गंगा, जमुना और सरस्वती का संगम यहां होने के कारण इस स्थान को त्रिवेणी कहा गया है। मानसून काल को छोड़कर शेष माह यहां गंगा पक्के घाट को छोड़कर करीब सौ मीटर दूर बहती है। जिस कारण यह स्थान अपना आकर्षण नहीं बढ़ा पा रहा है। त्रिवेणी घाट का विकास हर की पैड़ी की तर्ज पर करने के वायदे एक नहीं कई बार हुए। लोकसभा और विधानसभा और निकाय चुनाव में यह एक बड़ा मुद्दा रहा है, मगर चुनाव के बाद कुर्सी पाने वाले लोग इस मुद्दे से मुंह फेर लेते हैं।

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स्कंद पुराण के केदारखंड में त्रिवेणी घाट का स्पष्ट उल्लेख मिलता है। रैम्य ऋषि ने यहां तप किया, भगवान नारायण ने कुब्जाम्रक यानी पेड़ की झुकी हुई डाली के रूप में उन्हें दर्शन दिये और इस स्थान का नाम हृषिकेश रखा गया। बाद में इसे ऋषिकेश्श के नाम से पुकारा जाने लगा। यहां तीनों की नदियां धाराओं के रूप में साक्षात प्रकट होती हैं। पौराणिक महत्व वाले इस स्थान को विकसित करने के लिए किसी भी स्थल पर गंभीर प्रयास नहीं हुए हैं। त्रिवेणी घाट में गंगा की धारा पक्के घाट से दूर होकर बहती है। इस धारा को स्थाई रूप से घाट तक लाने के लिए कोई भी गंभीर नहीं रहा।

हां इतना जरूर है कि चुनावों में यह प्रत्याशियों का प्रमुख मुद्दा रहा है। सभी लोग हर की पैड़ी की तर्ज पर त्रिवेणी घाट को विकसित करने के दावे और वायदे करते हैं। चुनाव के बाद यह मुद्दा फिर से नेपत्थ्य पर चला जाता है। कभी सिंचाई विभाग तो कभी स्थानीय संस्थाएं गंगा उप धारा को पक्के घाट तक लाने का काम करती हैं, जिस कारण यहां नियमित आरती और सुरक्षित स्नान संभव हो पाता है। मानसून के बाद उप धारा और मुख्य धारा के बीच टापू बन जाता है और इसमें झाड़यिां उग आती हैं, जो इस स्थान की सुंदरता को बिगाडऩे का काम करती है। 

दो धारा के कारण बढ़ते हैं हादसे 

त्रिवेणी घाट में ग्रीष्मकाल और शीतकाल में जल स्तर घट जाता है, स्थानीय लोग उप धारा में स्नान करते हैं, मगर अन्य प्रांतों से आने वाले श्रद्धालु मुख्य धारा तक पहुंचने के लिए टापू तक पहुंच जाते हैं। दोपहर में टिहरी बांध से जब पानी छोड़ा जाता है तो मुख्य धारा और उप धारा का जलस्तर अचानक बढ़ जाता है। कई लोग डूबने की स्थिति में आ जाते हैं और कई लोग टापू में फंस जाते हैं। यहां तैनात जल पुलिस की टीम रेस्क्यू चलाकर कई लोगों को बचा चुकी है। 

डीपीआर को नहीं मिली वित्तीय स्वीकृति 

सिंचाई विभाग निर्माण खंड ऋषिकेश के द्वारा गंगा की धारा को स्थायी रूप से पक्के घाट तक लाने के लिए कई बार विभाग मुख्यालय और शासन को लिखा गया। तीन वर्ष पूर्व जल विज्ञान अनुसंधान केंद्र बहादराबाद ने इस पर सर्वे किया। जिसमें यहां एट्रेक्ट स्पर के जरिए गंगा में दीवार बनाए जाने की संभावनाएं तलाशी गई। इसका जो मॉडल बनाया गया, उसके सकारात्मक प्रयास भी सामने आए थे। सिंचाई विभाग मुख्यालय ने डीपीआर तैयार करने के लिए दिल्ली की पीकेएस इन्फ्रास्ट्रक्चर एजेंसी को अधिकृत किया था। डीपीआर बनाने में करीब 11 करोड़ रुपये की लागत बताई गई। संबंधित प्रस्ताव की फाइल पिछले एक वर्ष से सिंचाई विभाग के सर्किल ऑफिस देहरादून से आगे नहीं बढ़ पाई है। समझा जा सकता है कि जिम्मेदार लोग इसके प्रति कितने गंभीर हैं। 

सात पूर्व मुख्यमंत्री कर चुके हैं घोषणा 

त्रिवेणी घाट को हरकीपैड़ी की तर्ज पर विकसित करने को लेकर स्थानीय नेता ही नहीं बल्कि सूबे के कई मुखिया बड़े मंचों से सार्वजनिक घोषणाएं कर चुके हैं। उत्तराखंड के वर्तमान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को छोड़ दिया जाए तो प्रथम मुख्यमंत्री स्व. नित्यानंद स्वामी, भगत ङ्क्षसह कोश्यारी, स्व. नारायण दत्त तिवारी, भुवनचंद्र खंडूड़ी, रमेश पोखरियाल निशंक, विजय बहुगुणा और हरीश रावत एक नहीं बल्कि कई बार इस तरह की घोषणाएं कर चुके हैं। मगर, किसी भी पूर्व मुख्यमंत्री की घोषणा धरातल पर नहीं उतरी। 

बोले लोग

  • वीरेंद्र शर्मा, (पूर्व पालिकाध्यक्ष) का कहना है कि त्रिवेणी घाट का विषय अपने आप में बहुत अहम है। जनप्रतिनिधि चाहे वह निकाय के हों या कोई और, इस पर गंभीर नहीं रहे हैं। गंगा के दूसरे किनारे पर चैकडैम बनाकर गंगा की धारा को स्थायी रूप से पक्के घाट तक लाया जा सकता है। इसे सिर्फ चुनावी मुद्दा न बनाकर इस पर सभी को गंभीर होने की जरूरत है। 
  • शिखा शर्मा (गृहणी) का कहना है कि करोड़ों लोगों की आस्था से जुड़ी गंगा के तट पर बुनियादी सुविधाएं होना आवश्यक है। मानसून के दौरान पूरा घाट जल भराव के कारण मलबे से भर जाता है। शेष दिनों मे गंगा घाट से दूर चली जाती है। यहां के तीर्थाटन को बढ़ावा देने के लिए हर की पैड़ी की तर्ज पर त्रिवेणी घाट का विकास होना जरूरी है।
  • धीरेंद्र जोशी (प्रधानाचार्य, एसबीएम पब्लिक स्कूल) का कहना है कि जब तक शासन के स्तर पर कोई योजना स्वीकृत नहीं होती, तब तक विभाग को स्वयं ही गंगा की उप धारा को घाट तक लाने के लिए को काम करना चाहिए। मगर, श्री गंगा सभा माह में दो बार अपने खर्चे से जेसीबी लगाकर धारा के मलबे को हटाती है, जिस कारण लोग पक्के घाट पर पूजा-अर्चना और स्नान कर पाते हैं।
  • महेश सूद (पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष) का कहना है कि गंगा के मामले में वायदाखिलाफी करना ठीक नहीं है। इसे राजनीतिक मुद्दा बनाने वाले कभी इसका भला नहीं कर सकते। इस विषय पर गंगा से जुड़ आस्थावानों को स्वयं पहल करनी चाहिए। पिछले तीन दशक से इस मुद्दे पर बातें ज्यादा और काम कम हुआ है। सरकार को इस पर स्वत: संज्ञान लेना चाहिए। 

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