नीम के क्लोन की मदद से यूरिया की होगी कोटिंग, जानिए इसके बारे में और किस तरह मिलेगा लाभ
आइसीएफआरई के वन अनुसंधान संस्थान समेत चार संस्थानों के अथक प्रयास से इन प्रजातियों के क्लोन तैयार किए गए हैं। ये क्लोन सामान्य प्रजाति के मुकाबले अधिक तेजी से बढ़ने वाले हैं जिससे मांग के अनुरूप पर्याप्त उत्पाद तैयार किए जा सकेंगे।
जागरण संवाददाता, देहरादून। नीम, यूकेलिप्टस, पापलर और शीशम की उन्नत प्रजाति के क्लोन कृषि वानिकी व इमारती लकड़ी के क्षेत्र में बड़ी क्रांति लाते दिख रहे हैं। भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद (आइसीएफआरई) के वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआइ) समेत चार संस्थानों के अथक प्रयास से इन प्रजातियों के क्लोन तैयार किए गए हैं। ये क्लोन सामान्य प्रजाति के मुकाबले अधिक तेजी से बढ़ने वाले हैं, जिससे मांग के अनुरूप पर्याप्त उत्पाद तैयार किए जा सकेंगे।
आइसीएफआरई के अधीन कार्य करने वाले संस्थानों के प्रयास से कुल 22 क्लोन तैयार किए गए हैं। इन्हें देश के महानिदेशक वन व विशेष सचिव सुभाष चंद्रा की अध्यक्षता वाली वैराइटी रिलीजिंग कमेटी की बैठक में भी मंजूरी दे दी गई है। आइसीएफआरई के महानिदेशक एएस रावत के मुताबिक क्लोन तैयार करने से पहले नीम, पापलर, यूकेलिप्टस व शीशम की देशभर में उन्नत प्रजातियों/पेड़ों की पहचान की गई। फिर इन्हें संस्थान की प्रयोगशालाओं में उगाया गया, जिस पेड़ की प्रगति सबसे तेज रही उसके क्लोन तैयार किए गए। नीम में यह देखा गया कि किसके बीज में तेल की मात्रा अधिक है।
उन्होंने बताया कि पंजाब जैसे राज्यों में खेती में यूरिया के अधिकाधिक प्रयोग के चलते मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ रही है। अब नीम के तेल से यूरिया की कोटिंग की जाएगी, ताकि उसके हानिकारक प्रभाव को थामा जा सके। नीम की पैदावार बढ़ने के चलते भविष्य में नाइट्रोजन की कोटिंग में तेजी आ पाएगी। इसी तरह पालपर व यूकेलिप्टस के क्लोन के माध्यम से कम समय में पेड़ तैयार हो जाएंगे। कृषि वानिकी के क्षेत्र में इससे क्रांति लाई जा सकती है। इसी तरह शीशम की उन्नत प्रजाति के क्लोन के माध्यम से इमारती लकड़ी की कमी दूर की जा सकेगी।
इस तरह मिलेगा लाभ
नीम क्लो: नीम के क्लोन से जो पेड़ तैयार होंगे, उनसे छह वर्ष बाद प्रति पेड़ छह किलो बीज/फल मिल सकेंगे। सामान्य पेड़ के मुकाबले इनकी क्षमता 10 से 20 फीसद अधिक है।
शीशम क्लोन: क्लोन के माध्यम से शीशम के पेड़ से 25 साल बाद प्रति हेक्टेयर 284 घनमीटर लकड़ी मिल सकेगी, जिससे 29.40 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर आय प्राप्त होगी।
पापलर क्लोन: क्लोन की उत्पादकता 36.72 से 43.11 घनमीटर प्रति हेक्टेयर प्रतिवर्ष है, जो प्रति हेक्टेयर प्रतिवर्ष 3.21 से 3.77 लाख रुपये की आय देने में सक्षम हैं।
यूकेलिप्टस क्लोन: क्लोन से तैयार उपज की उत्पादकता सामान्य प्रजाति से 10 फीसद अधिक पाई गई है।
क्लोनिंग में इन संस्थानों की भी अहम भूमिका
वन अनुवांशिकी और वृज प्रजनन संस्थान कोयंबटूर, वन उत्पादकता संस्थान रांची और शुष्क वन अनुसंधान संस्थान जोधपुर।
यह भी पढ़ें- IIP के बायोजेट फ्यूल को वायु सेना के लिए मंजूरी, इससे उड़ सकेंगे फाइटर जेट; 10 साल में विकसित हुई तकनीक