कभी युवाओं के सिर चढ़कर बोलता था फुटबॉल का क्रेज, आज निकल रही हवा
राज्य में खेलों को बढ़ावा देने के लिए सरकारों ने भले ही बड़े-बड़े दावे किए हों लेकिन हकीकत इससे परे है। राज्य खेल फुटबॉल की तो दून में हवा निकलती दिखाई दे रही है।
देहरादून, जेएनएन। राज्य में खेलों को बढ़ावा देने के लिए सरकारों ने भले ही बड़े-बड़े दावे किए हों, लेकिन हकीकत इससे परे है। सरकार व एसोसिएशन की लचर कार्यशैली के चलते खेल के मैदान में हमारी नाव डगमगाती रही है। ऐसा ही कुछ राज्य खेल फुटबॉल में देखने को मिल रहा है।
60 के दशक में फुटबॉल का नशा देहरादून के युवाओं के सिर चढ़कर बोलता था। धीरे-धीरे यह क्रेज कम हुआ और आज फुटबॉल का गढ़ माने जाने वाले दून में ही फुटबॉल की हवा निकलती नजर आ रही है। प्रोत्साहन और बेहतर मंच न मिल पाने की वजह से युवा फुटबॉल से मुंह मोड़ने लगे और स्थिति बदतर होती चली गई। संसाधनों के अभाव में यह खेल दम तोड़ने लगा है। वैसे आपको याद दिला दें कि फुटबॉल हमारा राज्य खेल है।
आज राष्ट्रीय खेल दिवस के मौके पर देश में विभिन्न खेलों में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों को विभिन्न पुरस्कारों से नवाजा जा रहा है। अधिकांश राज्यों में राष्ट्रीय खेल दिवस पर राज्य खेल को प्रोत्साहित करने के लिए योजनाएं बनाई जाएंगी। वहीं, उत्तराखंड का राज्य खेल फुटबॉल अपनी अंतिम सांसे ले रहा है।
पहले जहां दून के दिग्गज क्लब जिला स्तर से लेकर ऑल इंडिया स्तर पर कई टूर्नामेंट आयोजित करते थे, वहीं अब इन आयोजनों के लिए फंड का रोना रोया जाता है। वर्तमान में देहरादून में 40 क्लब है। कई क्लब तो ऐसे हैं, जो टीमों में स्थानीय और बाहरी खिलाड़ियों को रखने के लिए अच्छी खासी रकम खर्च कर रहे हैं। जब बात आती है आयोजन की, तो सब हाथ खड़े कर देते हैं।
स्थिति यह है कि राज्य खेल का दर्जा होने के बावजूद फुटबॉल के विकास को सरकार भी गंभीर नहीं दिखती। दून में राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी श्याम थापा, स्व. अमर बहादुर गुरुंग, वीर बहादुर क्षेत्री, रामबहादुर क्षेत्री, भूपेंद्र रावत आदि कुछ ऐसे नाम हैं जिन्होंने देश के दिग्गज क्लबों के साथ ही भारतीय टीम में शामिल होकर अपने खेल का लोहा मनवाया।
राज्य बनने के बाद 2003-04 में नई फुटबॉल एसोसिएशन का गठन होने के साथ ही फुटबॉल के क्षेत्र में उठा-पटक शुरू हो गई। पुरानी एसोसिएशन के अलग रहने से दो-दो लीग का आयोजन हुआ। इसके बाद भी एसोसिएशन में पदाधिकारियों को लेकर भी खींचतान चलती रही। इस खींचतान में कभी फुटबॉल के विकास के बारे में सोचा ही नहीं गया। क्लब भी राजनीति में मशगूल रहे। फुटबॉल में हो रही राजनीति और आपसी गुटबाजी के चलते दून की फुटबॉल एसोसिएशन अर्श से फर्श पर पहुंच गई है।
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खिलाड़ियों को मनोबल हो रहा कमजोर
वरिष्ठ फुटबॉलर डीएम लखेड़ा के अनुसार, राज्य संघ राज्य के पूर्व अंतरराष्ट्रीय खिलाडिय़ों के अनुभव का इस्तेमाल नहीं कर रहा। पहाड़ के युवाओं में अनुभव की कमी नहीं है, लेकिन सही प्रशिक्षण व प्रोत्साहन नहीं मिलने से खिलाडिय़ों का मनोबल कमजोर हो रहा है। जिससे वह पलायन को मजबूर है।
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सरकार से हस्तक्षेप से सुधरेगा स्तर
डीएफएस के संस्थापक विरेंद्र रावत के अनुसार, सरकार फुटबॉल की सुध नहीं ले रही है, राज्य संघ भी राजनीति की रोटी सेक रहा है जिससे खिलाडिय़ों का भविष्य बर्बाद हो रहा है। राज्य सरकार के हस्तक्षेप से दून व राज्य फुटबॉल का गिरा स्तर सुधर सकता है।
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