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बदला खेती का ट्रेंड, किसानों को भा रही हर्ब्स की खेती, पढ़िए पूरी खबर

देहरादून जिले के डोईवाला ब्लॉक के किसानों ने अब पारंपरिक कृषि के बजाय तुरंत नकदी व मुनाफे वाली फसलें उगानी शुरू कर दी हैं। इनमें उनकी सबसे पसंदीदा बनी है हर्ब्स की खेती।

By Sunil NegiEdited By: Published: Thu, 18 Apr 2019 09:11 AM (IST)Updated: Thu, 18 Apr 2019 08:38 PM (IST)
बदला खेती का ट्रेंड, किसानों को भा रही हर्ब्स की खेती, पढ़िए पूरी खबर
बदला खेती का ट्रेंड, किसानों को भा रही हर्ब्स की खेती, पढ़िए पूरी खबर

रायवाला, दीपक जोशी। एक तरफ जहां कृषि में नई तकनीकी का समावेश हो रहा है, वहीं किसान भी अब खेती के ट्रेंड में बदलाव कर रहे हैं। देहरादून जिले के डोईवाला ब्लॉक के किसानों ने अब पारंपरिक कृषि के बजाय तुरंत नकदी व मुनाफे वाली फसलें उगानी शुरू कर दी हैं। इनमें उनकी सबसे पसंदीदा बनी है हर्ब्स की खेती। यहां उगाए जा रहे विभिन्न हर्ब्स का उपयोग मसाले बनाने में किया जाता है। पूरी तरह से जैविक विधि से होने वाली यह खेती किसान और पर्यावरण, दोनों के लिए फायदेमंद साबित हो रही है।

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वर्तमान में देहरादून जिले के डोईवाला ब्लॉक के छिद्दरवाला, चकजोगीवाला, साहबनगर, जोगीवालामाफी, शेरगढ़, माजरी आदि गांवों में बड़े पैमाने पर हर्ब्स की खेती हो रही है। छिद्दरवाला गांव के किसान तेजेंद्र सिंह बताते हैं कि वह काफी समय से हर्ब्स की खेती कर रहे हैं। पारंपरिक फसलों के मुकाबले यह अधिक फायदेमंद है। धान-गेहूं उगाने से तो उसकी लागत भी नहीं मिल पाती। वह बताते हैं कि तीन से चार महीने में तैयार होने वाली इस फसल से किसानों को नकद मुनाफा होता है।

किसान देवेंद्र सिंह नेगी भी तेजेंद्र सिंह से सहमत हैं। कहते हैं, वह बीते पांच साल से हर्ब्स उगा रहे हैं। अन्य फसलों के मुकाबले हर्ब्स उत्पादन में मुनाफा तो अधिक है ही, सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसे जंगली जानवर नुकसान नहीं पहुंचाते। खास बात यह कि इसके लिए बाजार नहीं तलाशना पड़ता, बल्कि इससे जुड़ी फ्लैक्स फूड कंपनी खुद ही खेतों से तैयार फसल ले जाती है। यह कंपनी हर्ब्स से मसाले तैयार कर विदेशों में सप्लाई करती है।

पर्यावरण के अनुकूल है खेती

फ्लैक्स फूड लिमिटेड के सहायक महाप्रबंधक विष्णु दत्त त्यागी के अनुसार हर्ब्स का उत्पादन पूरी तरह जैविक विधि से किया जाता है। बीज बोने से पहले छह माह तक खेत का उपचार होता है। मृदा परीक्षण के बाद ही खेती की जाती है। खाद के रूप में हरी खाद व गोबर का ही प्रयोग होता है। जबकि, कीटनाशक के रूप में गोमूत्र अर्क का छिड़काव किया जाता है। यानी हर्ब्स का उत्पादन पूरी तरह प्रकृति के अनुरूप किया जाता है। त्यागी कहते हैं कि देहरादून, हरिद्वार और टिहरी में बड़े पैमाने पर हर्ब्स की खेती हो रही है। जाहिर है कि किसानों को फायदा हो रहा है, तभी वे हमसे जुड़ रहे हैं। इसके अलावा कंपनी आस-पास के गांवों के महिला समूहों को मशरूम उत्पादन का निश्शुल्क प्रशिक्षण भी दे रही है।

जंगल से सटे गांवों में फायदेमंद है खेती

खेतों में जंगली जानवरों के उत्पात से परेशान किसानों के लिए हर्ब्स उत्पादन फायदेमंद साबित हो रहा है। दरअसल हर्ब्स को जंगली जानवर भी नुकसान नहीं पहुंचाते। जबकि, धान, गेहूं, गन्ना आदि को जानवर चट कर जाते हैं। ऐसे में राजाजी टाइगर रिजर्व से सटे गांवों में यह खेती लाभदायक मानी जा सकती है।

हर साल जुड़ रहे नए किसान

फायदे को देखते हुए किसान इसे तेजी से अपना रहे हैं। हालांकि, इसके लिए सिंचाई व लेबर की अधिक आवश्यकता होती है, लेकिन अधिक फायदे को देखते हुए किसान इसकी ओर आकर्षित हो रहे हैं। देवेंद्र सिंह नेगी, बलराज सिंह, जगीर सिंह, हरजीत सिंह, हरकिशन सिंह, अशोक चौधरी, तेजेंद्र सिंह आदि किसान लंबे समय से हर्ब्स उत्पादन से जुड़े हैं।

यह हैं हर्ब्स

थाइम, पार्सले, माजरुरोम, पुदीना, सोया व तुलसी। चार से पांच महीने अवधि की एक फसल की तीन से चार कटिंग होती है। एक कटिंग में प्रति हेक्टेयर औसतन 250 क्विंटल तक उत्पादन मिल जाता है। कंपनी इसे आठ से दस रुपये प्रति किलो के भाव से खरीद रही है।

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