Famous Temples In Uttarkashi: क्या आप जानते हैं, उत्तराखंड में भी है काशी विश्वनाथ, यहां दक्षिण की ओर झुका हुआ है शिवलिंग
Famous Temples In Uttarkashi उत्तराखंड के उत्तरकाशी जनपद में भी काशी विश्वनाथ मंदिर हैं। मान्यता है कि भगवान विश्वनाथ अनादि काल से इस मंदिर में विराजमान हैं। कहते हैं कि इस मंदिर की स्थापना भगवान परशुराम ने थी। यहां शिवलिंग दक्षिण की ओर झुका हुआ है।

शैलेंद्र गोदियाल उत्तरकाशी: भागीरथी के किनारे उत्तरकाशी (बाड़ाहाट) में विश्वनाथ मंदिर का प्राचीन मंदिर है। इसी कारण यहां का नाम उत्तर की काशी पड़ा है। स्कन्द पुराण में उल्लेख है कि 'यदा पापस्य बाहुल्यं यवनाक्रान्तभुतलम् । भविष्यति तदा विप्रा निवासं हिमवद्गिरो ।। काश्या सह करिष्यामि सर्वतीर्थ: समन्वित:। अनदिसिद्धं मे स्थानं वत्तते सर्वदेय हि।।'
अर्थात 'जब पाप का बाहुल्य होगा तथा पृथ्वी यवनों से अक्रान्त हो जायेगी, तब मेरा निवास हिमालय पर्वत में होगा। अनादिसिद्ध हिमालय सर्वदा ही मेरा स्थान रहा है। मैं उसको इस समय यानी कलयुग में काशी के सहित समस्त तीर्थों को उत्तर की काशी में युक्त कर दूंगा।'
स्कन्दपुराण के केदारखंड में भगवान आशुतोष ने उत्तरकाशी को कलियुग की काशी के नाम से संबोधित किया है। साथ ही उन्होंने व्यक्त किया है कि वे अपने परिवार, समस्त तीर्थ स्थानों एवम् काशी सहित कलियुग में उस स्थान पर वास करेंगे। जहां पर एक अलौकिक स्वयंभू लिंग, जो कि द्वादश जयोतिर्लिगों में से एक है, स्थित है। अर्थात, उत्तरकाशी में वास करेंगे।
उत्तरकाशी में भगवान विश्वनाथ अनादि काल से चिर समाधि में लीन होकर मंदिर में विराजमान हैं। भगवान आशुतोष यहां सदियों से संसार के समस्त प्राणियों का अपने शुभाशीष से कल्याण करते आ रहे हैं।
परशुराम ने की थी मंदिर की स्थापना
विश्वनाथ मंदिर को लेकर मान्यता है कि इस मंदिर की स्थापना परशुराम द्वारा की गई थी। यहां पाषाण शिवलिंग 56 सेंटिमीटर ऊंचा एवम् दक्षिण कि ओर झुका हुआ है। गर्भगृह में भगवान गजानन् एवम् माता पार्वती शिवलिंग के सम्मुख विराजमान है।
वाह्य गृह में नंदी प्रतीक्षारत हैं। वर्तमान मंदिर का पूर्णोद्धार सन 1857 में टिहरी गढ़वाल कि रानी खनेटी देवी पत्नी तत्कालीन राजा सुदर्शन शाह ने करवाया था। मंदिर का निर्माण कत्यूरी शैली में पाषाण के आधार पर किया गया है। मंदिर के निर्माण में पत्थर का प्रयोग किया गया है।
परिसर में विद्यमान है 1500 वर्ष पुराना त्रिशूल
विश्वनाथ मंदिर परिसर में कई अन्य मंदिर भी स्थिति हैं। इन में सबसे महत्वपूर्ण है शक्ति मंदिर जो विश्वनाथ मंदिर के सामने स्थित है। यहां देवी एक विशाल त्रिशूल के रूप में विराजमान हैं। यह त्रिशूल 16.5 फीट ऊंचा है और लगभग 1500 वर्ष पुराना है।
यह उत्तराखंड के प्राचीनतम धार्मिक चिह्नों में से एक है। इस त्रिशूल पर तिब्बती भाषा के आलेख अंकित हैं जो कि भारत और तिब्बत के सांस्कृतिक आदान-प्रदान का ध्योतक हैं। त्रिशूल पर नाग वंश की वंशावली भी अंकित है।
सिंह द्वार के दोनों ओर विभिन्न छोटे मंदिरों में भगवान गणेश की प्राचीन मूर्तियां स्थापित हैं। मंदिर परिसर में साक्षी गोपाल और मार्कंडेय ऋषि के मंदिर भी स्थापित हैं। किंवदन्ती के अनुसार ऋषि मार्कंडेय अल्पायु से शापित थे।
वह विश्वनाथ मंदिर में ही तपस्यारत थे। जब मृत्यु के देवता यमराज उनके प्राण लेने के लिए आये तो ऋषि विश्वनाथ से जाकर लिपट गये। उनका प्रेम एवम् भक्ति देख कर भगवान अत्यंत प्रसन्न हुये और उन्होंने यमराज को खाली हाथ वापस भेज दिया। मार्कंडेय की अल्पायू पूर्णायु में परिवर्तित हो गई। इसी कारण विश्वनाथ मंदिर में शिवलिंग दक्षिण की ओर झुका हुआ है।
चारधाम यात्रा के दौरान उमड़ती है भीड़
गंगोत्री और यमुनोत्री धाम की यात्रा खासकर विश्वनाथ मंदिर की यात्रा के बिना अर्थहीन है। इसकी कारण प्रत्येक वर्ष हजारों तीर्थयात्री दर्शन के लिए पहुंचते हैं।
माना जाता है कि गंगोत्री की तीर्थयात्रा तब तक पूरी नहीं मानी जाती है जब तक उत्तरकाशी के विश्वनाथ मंदिर, वाराणसी के काशी विश्वनाथ और रामेश्वरम धाम में पूजा अर्चना न की जाए। श्रवण मास में विश्वनाथ मंदिर में श्रद्धालुओं और कांवड़ियों की खासी भीड़ रहती है। विश्वनाथ मंदिर परिसर में कांवड़ियों के रुकने की भी व्यवस्था हैं।
जयेंद्र पुरी (महंत, विश्वनाथ मंदिर उत्तरकाशी) ने बताया कि भगवान आशुतोष काशी विश्वनाथ उत्तरकाशी के स्थान देवता भी हैं। कलयुग में उत्तरकाशी का खास महत्व है। यहां पर स्वयंभू ज्योर्तिलिंग के रूप में दर्शन दे रहे। भगवान का रूप 56 सेमी ऊंचा दक्षिण की ओर झुका हुआ तथा प्राचीन शिवलिंग है। यहां आने वाले हर भक्त की मनोकामना पूर्ण होती है।
उत्तरकाशी का पौराणिक नाम है बाड़ाहाट
उत्तरकाशी नगर का प्राचीन नाम बाडाहाट है। बाड़ाहाट का अर्थ हुआ बड़ा बाजार। कालान्तर में यहां भारत और तिब्बत के व्यापारियों का बाजार लगता था। तिब्बती व्यापारी नमक, खाद्य सामाग्री के लिये रत्नों का विनिमय करते थे।
अब केवल इस बाजार की याद में यहां हर वर्ष बाडाहाट कु थौलू आयोजित होता है। हिमालय की गोद में बसा उत्तरकाशी एक छोटा किन्तु रमणीक शहर है। जो अनादी काल से ऋषि मुनियों कि तपस्थली रहा है।
ऐसे पहुंचे उत्तरकाशी
ऋषिकेश से सड़क मार्ग होते हुए 160 किलोमीटर चलकर उत्तरकाशी पहुंचा जा सकता है। देहरादून से सड़क मार्ग की दूरी वाय मसूरी होते हुए 140 किलोमीटर है। जबकि देहरादून से चिन्यालीसौड़ तक हैली सेवा की सुविधा भी है। चिन्यालीसौड़ से उत्तरकाशी 30 किलोमीटर है।
उत्तरकाशी बस स्टैंड से तीन सौ मीटर दूर विश्वनाथ मंदिर स्थिति है। मंदिर के पास में एक शक्ति मंदिर व हनुमान मंदिर भी स्थित है। उत्तरकाशी से होकर गंगोत्री धाम को जाने का मार्ग है। गंगोत्री धाम के दर्शन करने के बाद तीर्थयात्रियों को केदारनाथ जाने के लिए वापस उत्तरकाशी आना पड़ता है। उत्तरकाशी से केदारनाथ के लिए दो मार्ग हैं।
Edited By Sunil Negi