उत्तराखंड में आयुर्वेद के प्रति बढ़ा विश्वास और स्वीकार्यता
उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय में कोरोना महामारी के पश्चात जीवनचर्या विषय पर एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता विवि के कुलपति प्रो. सुनील जोशी ने की। उन्होंने कहा कि कोरोना को नियंत्रित करने में आयुर्वेद ने अग्रणी भूमिका निभाई है। ।
जागरण संवाददाता, देहरादून। उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय में 'कोरोना महामारी के पश्चात जीवनचर्या' विषय पर एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता विवि के कुलपति प्रो. सुनील जोशी ने की। उन्होंने कहा कि कोरोना को नियंत्रित करने में आयुर्वेद ने अग्रणी भूमिका निभाई है। हाल ही में केंद्र ने आयुर्वेद की शल्य चिकित्सा को भी मान्यता दे दी है। ऐसे में आने वाले वक्त में आयुर्वेद के प्रति विश्वास और इसकी स्वीकार्यता और बढ़ेगी। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के द्रव्यगुण विभाग से आए प्रो. केएन ने विभिन्न जड़ी बूटियों के प्रयोग एवं उनसे होने वाले प्रभावों के बारे में बताया। बीएचयू के पूर्व प्राचार्य प्रो. बाबू राम त्रिपाठी ने आयुर्वेद को अपनी दिनचर्या में शामिल करने पर जोर दिया। उन्होंने आयुर्वेद में आधुनिक विज्ञान की मदद से और अधिक शोध करने किए जाने की बात कही। उत्तर प्रदेश के पूर्व आयुर्वेद निदेशक प्रो. केक ठकराल ने बताया गया कि जो व्यक्ति आयुर्वेद के अनुसार अपनी दिनचर्या, ऋतुचर्या, आहार विहार आदि का पालन करता है वो रोगों से दूर रहता है। उन्होंने आयुर्वेद के ज्ञान से बीमारी की पहचान एवं उनका इलाज करने से संबंधित कई तकनीकी जानकारी दी।
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परिसर निदेशक प्रो. आरबी सती ने बताया कि आयुर्वेद में कोरोना जैसी महामारियों को रोकने की क्षमता है। इससे कोरोना से ठीक हुए रोगियों में उत्पन्न विकारों को भी ठीक किया जा सकता है। विवि के कुलसचिव प्रो सुरेश चौबे ने सभी वक्ताओं का आभार व्यक्त किया। इस दौरान उप कुलसचिव डॉ. पीके गुप्ता, डॉ. शैलेंद्र प्रधान, डॉ. शशिकांत तिवारी, डॉ. नवीन जोशी, डॉ. डीके सेमवाल, डॉ. आशुतोष चौहान, डॉ. इला तन्ना, डॉ. अनुराग वत्स आदि उपस्थित रहे।
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