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नलकूपों पर सालाना 225 करोड़ बिजली का खर्च, सरकार की उड़ी नींद

उत्तराखंड में भूजल के अधिक दोहन से बिजली के खर्चे भी बढ़ रहे हैं। राज्य में प्रतिवर्ष नलकूपों पर सवा दो सौ करोड़ रुपये की बिजली खर्च हो रही है।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Tue, 26 Dec 2017 01:54 PM (IST)Updated: Tue, 26 Dec 2017 08:58 PM (IST)
नलकूपों पर सालाना 225 करोड़ बिजली का खर्च, सरकार की उड़ी नींद
नलकूपों पर सालाना 225 करोड़ बिजली का खर्च, सरकार की उड़ी नींद

देहरादून, [राज्य ब्यूरो]: आमजन को पेयजल मुहैया कराना सरकार की पहली प्राथमिकता है, लेकिन भूजल के लगातार दोहन के कारण इस पर आ रहे बिजली के खर्च ने नींद भी उड़ा दी है। राज्य में प्रतिवर्ष नलकूपों पर सवा दो सौ करोड़ रुपये की बिजली खर्च हो रही है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भी इससे चिंतित हैं और उन्होंने कहा कि सरकार ने अब ग्रेविटी आधारित पेयजल योजनाओं को तवज्जो देने का फैसला लिया है। 

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राज्यभर में नगरीय क्षेत्रों में हलक तर करने के लिए नलकूपों पर निर्भरता लगातार बढ़ रही है। एक के बाद एक नलकूप स्थापित किए जा रहे हैं। जाहिर है, इससे भूजल का स्तर भी नीचे जा रहा है तो नलकूपों को चलाने के लिए बिजली की खपत बढ़ने के साथ ही खर्च भी काफी अधिक आ रहा है। 

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने देहरादून और डोईवाला क्षेत्र में आयोजित कार्यक्रमों में यह चिंता भी जताई। उन्होंने कहा कि राज्य में हर साल नलकूपों पर सवा दो सौ करोड़ की बिजली खर्च होती है। इसमें अकेले देहरादून में 65 करोड़ रुपये का खर्च आता है। बता दें कि देहरादून में 70 से अधिक नलकूप हैं, जिनके जरिए जलापूर्ति की जाती है। 

मुख्यमंत्री ने कहा कि गिरते भूजल स्तर और बिजली खर्च पर अंकुश लगाने के लिए ग्रेविटी यानी स्रोत पर आधारित पेयजल योजनाओं को तवज्जो दी जाएगी। उन्होंने कहा कि देहरादून में भी अगले सात साल में ग्रेविटी योजनाओं से पानी की आपूर्ति की जाएगी। कहा कि इससे बिजली की बचत तो होगी ही, स्वच्छ जल मुहैया कराने में भी मदद मिलेगी। 

17 हजार मजरे भी चुनौती 

प्रदेश में आज भी 17864 मजरों को मानकों के अनुसार 40 लीटर प्रतिदिन पानी उपलब्ध नहीं हो पा रहा। तमाम स्थानों पर कारण ये बताए जा रहे वहां आसपास पेयजल स्रोत नहीं है। जाहिर है, इन मजरों के लिए पानी जुटाना भी कम बड़ी चुनौती नहीं है। 

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