उत्तराखंड में मुरझा गईं राजीव गांधी नवोदय विद्यालय की उम्मीदें
उत्तराखंड में राजीव गांधी नवोदय विद्यालय खोले गए। हर सरकारी योजना में जिस तरह सबसे पहले निर्माण कार्यों पर जोर होता है इन नवोदय विद्यालयों के साथ यही हुआ।
देहरादून, रविंद्र बड़थ्वाल। उत्तराखंड राज्य बनने के बाद बड़ी उम्मीदें संजोकर सभी 13 जिलों में राजीव गांधी नवोदय विद्यालय खोले गए। हर सरकारी योजना में जिस तरह सबसे पहले निर्माण कार्यों पर जोर होता है, इन नवोदय विद्यालयों के साथ यही हुआ।
सरकार जिसकी भी रही, निर्माण कार्यों के ठेके की सनातनी परंपरा खूब फूली-फली। भवन तो किसी भी तरह बजट व्यवस्था कर बनवा लिए गए, लेकिन सबसे जरूरी संसाधनों को लेकर सरकार के हाथ तंग हो गए। प्रदेश का भविष्य संवारने को भवनों पर बड़ी धनराशि बहाकर खोले गए विद्यालयों में शिक्षकों के 40 फीसद से ज्यादा पद रिक्त हैं। इनमें अलग से शिक्षकों की नियुक्ति नहीं की गई, प्रतिनियुक्ति से काम चलाया जा रहा है। काम का तामझाम केंद्रीय विद्यालयों सरीखा होने की वजह से सरकारी विद्यालयों में राजशाही के अभ्यस्त शिक्षक नवोदय विद्यालय का रुख नहीं करते। लिहाजा इन विद्यालयों के बनने से उपजीं उम्मीद की कोंपलें अब मुरझा चुकी हैं।
हकीकत बनने को घिसटता ख्वाब
करीब डेढ़ दशक पहले एक बेहद अहम ख्वाब देखा गया कि सरकारी डिग्री कॉलेजों को एडुसेट के माध्यम से सेटेलाइट इंटरेक्टिव टर्मिनल से जोड़ा जाएगा। इसके बाद आनन-फानन में उच्च शिक्षा महकमे ने कई दर्जन कई दर्जन उपकरण खरीद डाले। यह जानने की कोशिश नहीं की गई कि इन उपकरणों को लगाने के लिए जरूरी व्यवस्था है या नहीं। इसी ऊहापोह में दिन या महीने नहीं, बल्कि कई साल गुजर गए। एसआइटी नहीं लग पाए। यदि इन्हें लगा दिया जाता तो वर्ष 2013 की भीषण आपदा के बाद अब कोरोना महामारी में भी प्रदेश को बड़ी राहत मिलती। 20 वर्ष के होने जा रहे उत्तराखंड राज्य में सरकारी डिग्री कॉलेजों की संख्या तकरीबन दोगुना बढ़कर 105 हो गई है। एडुसेट के उपयोग को लेकर ढिलाई की हालत ये है कि अभी तक 52 सरकारी डिग्री कॉलेजों को इससे जोड़ा गया है, इनमें भी पूरी तरह सक्रिय 47 कॉलेज ही हैं।
ख्वाब हैं, ख्वाबों का क्या
स्कूली शिक्षा में देश-विदेश में पहचान रखने वाले उत्तराखंड में एक भी राज्य विश्वविद्यालय विश्वस्तरीय तो दूर की बात राष्ट्रीय स्तर का नहीं है। उच्च शिक्षा राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ धन सिंह रावत चाहते हैं कि दून विश्वविद्यालय देश के उत्कृष्ट विश्वविद्यालयों में शामिल हो। कुलपति और उच्च शिक्षा महकमे के अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि नेशनल इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क की रैंकिंग में विश्वविद्यालय को लाने के लिए पुरजोर तैयारी की जाए, ताकि एक साल के भीतर लक्ष्य हासिल किया जा सके। विश्वविद्यालय में अभी शिक्षकों के 40 फीसद रिक्त हैं। अस्थायी शिक्षकों के भरोसे संकायों को चलाया जा रहा है। शिक्षणेत्तर कर्मचारियों के पद भी बड़ी संख्या में रिक्त हैं। पूर्व सीएम एनडी तिवारी ने दून विश्वविद्यालय की नींव रखते हुए इसे जेएनयू की तर्ज पर विकसित करने की कल्पना की थी। यह ख्वाब अधूरा है। अब ख्वाब देखने की बारी डॉ धन सिंह रावत की है।
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सामान्य हो गए आदर्श दर्जाधारी
पिछली कांग्रेस सरकार ने राज्य के हर ब्लॉक में आदर्श दर्जाधारी 475 विद्यालय स्थापित किए थे। विद्यालयों को इन तेवरों के साथ खोला गया कि निजी अंग्रेजी माध्यम स्कूलों को टक्कर देंगे। बजट पोटली में से झाड़-पोंछकर निकाली गई धनराशि से ब्लॉक में दो प्राथमिक, एक उच्च प्राथमिक, एक हाईस्कूल और एक इंटर कॉलेज को साफ-सुथरा बनाने को पुताई कराई गई। फर्नीचर की व्यवस्था की गई। अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई कराने को तय किया गया कि पहले से कार्यरत सरकारी शिक्षकों को लिखित परीक्षा के जरिये प्रतिनियुक्ति पर लिया जाएगा। लिखित परीक्षा में पासिंग माक्र्स 60 फीसद रखे गए। जानकर अजीब लगेगा, लेकिन हर ब्लॉक में कमोबेश अच्छी जगह खोले गए इन विद्यालयों में एंट्री के लिए कतार में खड़े होने वाले गुरुजन पासिंग माक्र्स के लिए तरस गए। इसके बाद जैसे-तैसे कर शिक्षक जुटा तो लिए गए, लेकिन ये आदर्श विद्यालय फिर सामान्य दर्जे में शुमार हो गए हैं।
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