Eco Tourism: दो दशक बाद भी इको टूरिज्म की बाट जोह रहे हैं 14 गांव, इनका हुआ था चयन
अदनाला और मैदावन रेंज के चौदह गांवों के बाशिंदे पिछले दो दशक से उस घड़ी का इंतजार कर रहे हैं जब उनके गांवों में इको टूरिज्म विकास के लिए सरकार की कोई टीम पहुंचे। तो चलिए आपको बताते हैं कि कौन-कौन से गांव शामिल हैं।
अजय खंतवाल, कोटद्वार। Eco Tourism कालागढ़ टाइगर रिजर्व फारेस्ट की अदनाला और मैदावन रेंज के चौदह गांवों के बाशिंदे पिछले दो दशक से उस घड़ी का इंतजार कर रहे हैं, जब उनके गांवों में इको टूरिज्म विकास के लिए सरकार की कोई टीम पहुंचे। दरअसल, 1999 में कार्बेट टाइगर रिजर्व से सटे इन गांवों को इका-टूरिज्म के रुप में विकसित करने के लिए ढाई-ढाई लाख की धनराशि स्वीकृत हुई थी। दो दशक बीत गए, लेकिन आज तक न तो धनराशि का पता है और न ही योजना की सुध ली जा रही।
वन कानूनों की कसमसाहट में जीवन बसर कर रहे कार्बेट टाइगर रिजर्व के अंतर्गत पड़ने वाले कालागढ़ टाइगर रिजर्व फारेस्ट की अदनाला व मैदावन रेंज के 14 गांवों को इको-टूरिज्म के रूप में विकसित करने की बात शुरू हुई तो ग्रामीणों में अपने गांवों के विकास को एक नई उम्मीद जगी। उन्हें लगा कि अब उनके गांवों को नई पहचान मिलेगी।
योजना में वन और वन्य जीव संरक्षण के साथ ही गांवों का विकास भी करना था। इस कार्य के लिए गांवों में इको विकास समितियों का भी गठन किया गया व गांवों के विकास को ढाई-ढाई लाख की धनराशि भी अवमुक्त की गई। आज न समितियां है और न ही अवमुक्त धनराशि का। विभागीय अधिकारियों ने कभी इन गांवों की सुध नहीं ली।
गांव जो हुए थे चयनित
मैदावन रेंज: तैड़िया, खदरासी, लूठिया, कांडा, पांड, नौदानू, उपगांव
अदनाला रेंज: बगेड़ा, बरई, डाबरु, चांदपुर, तिमलसैण, मेरुड़ा, रामीसेरा, ढ़िकोलिया, चपड़ेत
यह है वर्तमान स्थिति
जिन गांवों को इको टूरिज्म डेवलपमेंट के नाम पर विकसित किया जाना था, उन गांवों में आज भी न सिर्फ जंगली जानवरों की दहशत है, बल्कि विकास की किरणें आज भी इन गांवों से कोसों दूर हैं। वर्ष 2008 में भी कार्बेट टाइगर रिजर्व की ओर से मंदाल घाटी के गांवों को इको-टूरिज्म की तर्ज पर विकसित करने की बात कही गई, लेकिन आज भी गांवों के वाशिंदों को विकास की किरणों का इंतजार है।
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