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हाईकोर्ट के आदेश से बढ़ी रिस्पना और बिंदाल नदी को संवारने की उम्मीद

हाईकोर्ट के आदेश से एक बार फिर रिस्पना नदी के पुनर्जीवित होने की उम्मीदें बढ़ गई हैं। यहां नदी को घेरकर बसी 90 से ज्यादा बस्ती पर कार्रवाई हुई तो नदी पुराने स्वरूप में आ सकती है।

By BhanuEdited By: Published: Wed, 15 May 2019 01:13 PM (IST)Updated: Wed, 15 May 2019 01:13 PM (IST)
हाईकोर्ट के आदेश से बढ़ी रिस्पना और बिंदाल नदी को संवारने की उम्मीद
हाईकोर्ट के आदेश से बढ़ी रिस्पना और बिंदाल नदी को संवारने की उम्मीद

देहरादून, जेएनएन। हाईकोर्ट के आदेश से एक बार फिर रिस्पना नदी के पुनर्जीवित होने की उम्मीदें बढ़ गई हैं। यहां नदी को घेरकर बसी 90 से ज्यादा बस्ती और 100 छोटे-बड़े नालों पर हुए अतिक्रमण पर यदि कार्रवाई हुई तो निश्चित ही नदी अपने पौराणिक स्वरूप में आ सकती है। खासकर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी रिस्पना के पुनर्जीवन को अपने ड्रीम प्रोजेक्ट में शामिल किया है। ऐसे में उम्मीद की जा रही कि सरकार वोट बैंक की गणित को छोड़ हाईकोर्ट के आदेश का पालन कर रिस्पना की बिगड़ी सूरत को संवारने का काम कर सकती है। 

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देहरादून की रिस्पना नदी के किनारे दोनों तरफ करीब 90 छोटी-बड़ी बस्ती बसी हैं। मसूरी के कैरवाणगांव, शिखरफॉल से मोथरोवाला दौड़वाला तक नदी करीब 19 किमी क्षेत्र में शहर के राजपुर, रायपुर, डालनवाला, नेहरू कॉलोनी आदि इलाकों को जोड़ती है। 

पिछली बार हाईकोर्ट के आदेश पर यहां प्रशासन ने अतिक्रमण के चिह्नीकरण की कार्रवाई की तो छोटे-बड़े पांच हजार से ज्यादा अतिक्रमण पर लाल निशान लगाए थे। हालांकि बाद में सरकार ने यहां बसी बस्ती को सुरक्षित रखने के लिए अध्यादेश लाते हुए यह कार्रवाई रोक दी थी। इससे यहां अतिक्रमण पर लगाम लगने की बजाय दोगुनी रफ्तार से बढ़ गया। 

हालत यह है कि नदी के तटों के साथ अब अतिक्रमण नदी के बीच तक जा पहुंच गया है। राजपुर क्षेत्र में तो बड़ी संख्या में नदी को घेरकर प्लाटिंग कराई जा रही है। इसी तरह, रायपुर से रिस्पना के बीच नदी के दोनों तरफ बस्ती आलीशान घरों में तब्दील हो रही है। 

यही नहीं, आर्यनगर, अधोईवाला, मयूरी विहार, रिस्पना नगर, दीपनगर में रिस्पना नाले के रूप में नजर आ रही है। यहां सीवर से लेकर घर और बस्ती का गंदा पानी नदी में प्रवाहित हो रहा है। नगर निगम के अनुसार रिस्पना के तट पर बसी बस्ती की आबादी करीब दो लाख पार हो गई है। इससे यहां अतिक्रमण भी इसी गति से बढ़ा है। 

अब हाईकोर्ट ने यहां एक बार फिर अतिक्रमण पर सरकार, एमडीडीए, नगर निगम, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड जैसे महत्वपूर्ण विभागों से तीन सप्ताह में रिपोर्ट मांगी है। इससे उम्मीद की जा रही कि रिस्पना की सूरत में कुछ हद तक सुधार हो सकता है। 

नदी के बीच में डाल दी सीवर लाइन 

रिस्पना नदी को न केवल आम लोगों ने अतिक्रमण कर बदरंग किया, बल्कि सरकारी विभागों ने भी यहां नियम विरुद्ध कब्जे कराए हैं। नदी के बीचोंबीच सीवर लाइन डालकर नियमों की धज्जियां उड़ाई गई। इसी तरह, ऊर्जा निगम ने यहां बिजली के पोल खड़े कर दिए। बरसात में सीवर और बिजली के पोल पर मलबा अटक जाता है, जो बाढ़ का कारण बनता है। 

नदी के बीच चलता टैक्सी स्टैंड 

रिस्पना नदी के बीचोंबीच टैक्सी स्टैंड भी चलता है। रिस्पना के पास दो सौ से ज्यादा वाहन हर दिन रिस्पना नदी के बीच में पार्क किए जाते हैं। दून गढ़वाल टैक्सी यूनियन यहां वर्षों से पार्किंग का उपयोग कर रही है। 

चौड़ाई पर नहीं हुआ निर्णय 

रिस्पना नदी शिखरफॉल से दौड़वाला तक अलग-अलग चौड़ाई में बहती है। यहां कुछ हिस्से में तो आज भी नदी पुराने स्वरूप में दिखती है। कुछ इलाकों में नदी पर बस्तियां बसने से नाले के रूप में आ गई है। इसे लेकर नगर निगम और एमडीडीए ने कई बार बैठकें कर चौड़ाई तय करने की बात कही। मगर इस पर निर्णय नहीं हो सका। 

आदेश मिलने के बाद होगी कार्रवाई 

अपर मुख्य सचिव ओम प्रकाश के मुताबिक, हाईकोर्ट का आदेश अभी मिला नहीं है। आदेश मिलने के बाद इस पर आगे की कार्रवाई की जाएगी। अतिक्रमण के खिलाफ पहले से अभियान चल रहे हैं। 

13 किमी लंबी बिंदाल नदी पर 10 हजार कब्जे

दून में बिंदाल नदी की दशा भी रिस्पना से जुदा नहीं है। राज्य गठन से पहले इस नदी की चौड़ाई 50 मीटर तक थी, जबकि आज यह नाले के रूप में नजर आती है। इसकी वजह सिर्फ यह है कि नदी के दोनों छोर अतिक्रमण की भेंट चढ़ते गए। एक मोटे अनुमान के मुताबिक मालसी से लेकर सुसवा (रिस्पना-बिंदाल का संगम स्थल) तक इस नदी पर 10 हजार के करीब कब्जे हो चुके हैं।

सरकारी रिकॉर्ड की ही बात करें तो वर्ष 2005 में सिंचाई विभाग, नगर निगम व जिला प्रशासन के संयुक्त सर्वे में ही बिंदाल व रिस्पना नदी पर 10700 अतिक्रमण चिह्नित किए गए थे। इसमें करीब 6000 अतिक्रमण बिंदाल नदी पर पाए गए थे। तब से लेकर अब तक करीब 14 साल हो गए हैं और ऐसा भी नहीं रहा कि कभी अतिक्रमण के खिलाफ कोई प्रभावी कार्रवाई की गई हो। सफेदपोशों की शह और अधिकारियों की नाक के नीचे नदी भूमि पर निरंतर कब्जे होते रहे। नदी भूमि पर कच्चे भवनों से लेकर पक्के निर्माण भी धड़ल्ले से किए जाते रहे। 

दूसरी तरफ इस नदी से जुड़े करीब एक दर्जन बड़े नालों पर भी जमकर अतिक्रमण किया गया है। हाईकोर्ट के आदेश के बाद एक बार फिर नदियों के अतिक्रमणमुक्त होने की उम्मीद बढ़ी है, मगर देखने वाली बात है कि सरकार इसका पालन कितनी जल्दी और किस रूप में करती है। क्योंकि इससे पहले भी जब हाईकोर्ट ने दोनों नदियों के अतिक्रमण (मलिन बस्तियों) पर कार्रवाई के लिए कहा तो सरकार इनके बचाव में अध्यादेश ले आई।

प्रशासन के सर्वे में नदी भूमि का जिक्र नहीं

पिछले साल हाईकोर्ट के एक आदेश में कहा गया है कि नदी-नालों, तालाब आदि की भूमि का उपयोग परिवर्तित नहीं किया जा सकता है। इस भूमि को आवंटित भी नहीं किया जा सकता है और ऐसे किसी भी आवंटन को कोर्ट ने निरस्त करने का आदेश दिया था। इस मामले में सरकार के समय मांगने पर अब 30 जून की तारीख तय की गई है। हालांकि, इसके क्रम में राजस्व विभाग नदी भूमि पर आवंटन का सर्वे कर रहा है, मगर इसमें रिस्पना-बिंदाल नदी के अतिक्रमण को शामिल नहीं किया जा रहा है।

रिस्पना-बिंदाल में मानक से 76 गुना प्रदूषण

जिस रिस्पना नदी के पुनर्जीवीकरण को लेकर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत खुद बेहद सक्रिय हैं, उसके और बिंदाल नदी के संगम स्थल सुसवा के पानी में टोटल कॉलीफार्म (विभिन्न हानिकारक तत्वों का मिश्रण) की मात्रा 76 गुना है। दूसरी तरफ, यहां के पानी में एमपीएन (मोस्ट प्रोबेबल नंबर) की मात्रा 3800 प्रति 100 एमएल (मिलीलीटर) है, जबकि पीने योग्य पानी में यह पात्रा एमपीएन 50 से अधिक नहीं होनी चाहिए। 

यहां तक कि जिस फीकल कॉलीफार्म की मात्रा शून्य होनी चाहिए, उसकी दर 1460 एमपीएन/100 एमएल पाई गई। स्पैक्स की ओर से यहां के पानी की जांच में प्रदूषण का यह स्तर सामने आया है। 

इसके अलावा, नदी के पानी में जहां घुलित ऑक्सीजन (डीओ) की मात्रा मानक से बेहद कम पाई गई, वहीं बॉयकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) की मात्रा बेहद अधिक है। तमाम अन्य हानिकारक तत्वों की मात्रा भी सीमा से कोसों अधिक रेकॉर्ड की गई। 

जांच में प्रदूषण की ऐसी स्थिति देखने के बाद पूर्व में मानवाधिकार आयोग ने नगर निगम, पेयजल निगम व जल संस्थान को नोटिस जारी कर नदी के संरक्षण व संवर्धन के निर्देश जारी किए थे। यह बात और है कि सरकारी मशीनरी ने इस ओर भी ध्यान नहीं दिया। यही कारण है कि अब इस मामले को याचिका के रूप में हाईकोर्ट में भी उठाया गया है। 

रिस्पना नदी का पानी इतना दूषित हो चुका है कि उससे भूजल में भी हानिकारक रसायनों का स्तर बढ़ सकता है। दूसरी तरफ, मोथरोवाला के पास रिस्पना व बिंदाल नदी के पानी के संगम से सुसवा नदी बनती है और यह पानी वन क्षेत्र से होकर गुजरता है। ऐसे में वन्य प्राणियों की सेहत भी खतरे में पड़ गई है। 

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