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'डबल इंजन' से जुड़े तार करंट का इंतजार

केंद्रीय ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल ने भाषणों के जरिये 'ऊर्जा प्रदेश' की उम्मीदों को पंख भी लगाए थे। लेकिन, स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया।

By Sunil NegiEdited By: Published: Sun, 31 Dec 2017 01:28 PM (IST)Updated: Sun, 31 Dec 2017 08:50 PM (IST)
'डबल इंजन' से जुड़े तार करंट का इंतजार
'डबल इंजन' से जुड़े तार करंट का इंतजार

देहरादून, [जेएनएन]: 17 साल का लंबा वक्फा गुजर गया, ऊर्जा प्रदेश बनाने का सपना देखते-देखते। आठ महीने पहले जब उत्तराखंड डबल इंजन से जुड़ा। यानी प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी और केंद्र पहले ही मोदी सरकार थी। तत्कालीन केंद्रीय ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल ने भाषणों के जरिये 'ऊर्जा प्रदेश' की उम्मीदों को पंख भी लगाए थे। लेकिन, स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया। पर्यावरणीय समेत विभिन्न कारणों से अभी तक 33 परियोजनाओं अटकी हैं। 

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इतना ही नहीं, यमुना घाटी में प्रस्तावित 300 मेगावाट की लखवाड़ बहुद्देश्यीय परियोजना का निर्माण भी केंद्र सरकार से वित्त की मंजूरी नहीं मिलने के कारण शुरू नहीं हुआ। साथ ही टौंस नदी पर प्रस्तावित किसाऊ परियोजना (660 मेगावाट) निर्माण के लिए भी अभी तक केंद्र से पैसा नहीं मिला है। खैर, ये साल तो गुजर गया। अब नए साल से अच्छे की उम्मीद करनी चाहिए। और नीति आयोग इस दिशा में प्रयास भी कर रहा है कि जल्द से जल्द कुछ परियोजनाओं के पेंच को सुलझा लिया जाए।

दरअसल, जून 2013 की आपदा के बाद भारतीय वन्य जीव संस्थान की संस्तुति पर सुप्रीम कोर्ट ने 24 परियोजनाओं पर रोक लगा दी थी। इनमें इको सेंसेटिव जोन एवं नेशनल गंगा रिवर बेसिन ऑथोरिटी में  फंसी 15 परियोजनाओं में से कुछ शामिल हैं। कई सालों से प्रयास चल रहे हैं। कई बार उम्मीदें परवान चढ़ी भी, पर कोई न कोई अड़चन से हर बार झटका ही लगा है।

दूसरों पर निर्भर

राज्य गठन के वक्त उत्तराखंड के पास अपनी जरूरत पूरी करने के बाद एक हजार मिलियन यूनिट सरपल्स बिजली थी, लेकिन आज जरूरतभर की बिजली के लिए भी दूसरों का मुंह ताकना पड़ रहा है। क्योंकि, बिजली की मांग 200 फीसद से ज्यादा बढ़ी, लेकिन बिजली उत्पादन में बमुश्किल 30 से 35 फीसद का ही इजाफा हुआ। राज्य की पनबिजली परियोजनाओं से खपत के सापेक्ष आधे से कम उत्पादन होता है। शेष बिजली का इंतजाम बाजार समेत अन्य माध्यमों से करना पड़ता है। 

जगी थी उम्मीद 

आई आपदा के बाद सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय वन्यजीव संस्थान की संस्तुति पर जिन 24 परियोजनाओं पर रोक लगाई थी, दो साल पहले सार्वजनिक उपक्रम की छह में से पांच परियोजनाओं से रोक हटाने के संबंध विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की। रिपोर्ट में केंद्र सरकार ने विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट में वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए अतिरिक्त उपाय और आपात प्रबंधन योजना की शर्त के साथ अनुमति देने की बात कही थी। 

822 मेगावाट क्षमता की इन परियोजनाओं में से 12.5 फीसद रॉयल्टी के हिसाब से 102.50 मेगावाट बिजली मिलती। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को हलफनामा देने के लिए कहा था। इसमें केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने तो पक्ष में हलफनामा दिया था। लेकिन जल संसाधन मंत्रालय ने अलग-अलग रिपोर्ट का हवाला देकर कहा था कि पनबिजली परियोजना नदियों की सेहत के साथ ही पर्यावरण के लिए भी नुकसानदेह है। 

इन परियोजनाओं पर जगी थी उम्मीद 

परियोजना: क्षमता: नदी

अलकनंदा: 300: अलकनंदा

लाता तपोवन: 171: धौलीगंगा

झेलम तमक: 128: धौलीगंगा

कोटलीभेल-1ए: 195-भागीरथी 

भ्यूंडार गंगा-24.3-भ्यूंडार गंगा

खिराब गंगा-04-खिराव गंगा 

 ये उम्मीद भी नहीं चढ़ी परवान 

केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने गौमुख से उत्तरकाशी तक भागीरथी नदी के संपूर्ण जल संभरण क्षेत्र को इको सेंसटिव जोन घोषित किया है। इससे 1734 मेगावाट की 15 जल विद्युत परियोजनाएं फंस गई। नेशनल गंगा रिवर बेसिन अथॉरिटी तीन बड़ी परियोजनाओं लोहारी नागपाला, पाला मनेरी और भैरोंघाटी को रद कर चुका है। 15 में से 25 मेगावाट से कम की 10 परियोजनाएं हैं। इनकी क्षमता 82.5 मेगावाट है। सितंबर, 2016 में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की एक्सपर्ट कमेटी ने इन दस परियोजनाओं के निर्माण की अनुमति पर विचार करने का आश्वासन दिया था। इससे उम्मीदें परवान चढ़ी थीं, लेकिन अब एक बार फिर झटका लगा है। केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय ने कहा है कि इको सेंसटिव जोन गंभीर मुद्दा है। इसलिए यहां परियोजना निर्माण को मंजूरी न दी जाए। 

ये हैं दस परियोजना 

परियोजना, क्षमता

असी गंगा, 1, 4.50

असी गंगा, 2, 4.50

काल्दीगाड़, 9.00

लिमचीगाड़, 3.50

स्वारीगाड़, 2.00

सोनगाड़, 7.50

पिलंगगाड़, 2, 4.00

जलंधरीगाड़, 24.00

काकोरागाड़, 12.50

स्यानगाड़,11.50

लखवाड़ परियोजना 30 साल, यह हाल

यमुना घाटी में प्रस्तावित बहुद्देश्यीय परियोजना लखवाड़ (300 मेगावाट) का 21 नवंबर, 2016 को तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने शिलान्यास तो कर दिया, लेकिन केंद्र से वित्तीय मंजूरी नहीं मिली है। उम्मीद है कि नए साल में यह मंजूरी मिल जाएगी और निर्माण शुरू हो सकेगा। लखवाड़ परियोजना उत्तराखंड के साथ पांच राज्यों के लिए महत्वपूर्ण है। उत्तराखंड, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश को परियोजना से जलापूर्ति होगी, जबकि बिजली पर उत्तराखंड का अधिकार होगा। 

पेंच ये भी है कि राजस्थान नहरों के निर्माण के लिए पैसा मांग रहा है। अगर राजस्थान पानी लेने से इन्कार करता है तो उत्तराखंड पानी लेने को तैयार है। बता दें कि परियोजना का निर्माण 1987 में शुरू हुआ था, लेकिन धन की कमी से 1992 में काम रुक गया था। तब 30 फीसद काम ही हुआ था। इसके बाद से परियोजना अटकी ही है। कई बार प्रयास भी हुआ, लेकिन सफलता नहीं मिली। 2013 में उत्तराखंड में आई आपदा के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद परियोजना पर रोक लग गई थी, जो बाद में हट गई। शिलान्यास के साथ उत्तराखंड जल विद्युत निगम ने टेंडर प्रक्रिया शुरू कर दी थी।

लेकिन, केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय ने टेंडर प्रक्रिया निरस्त करने के लिए कहा। निर्देश दिए कि केंद्रीय कैबिनेट से वित्तीय मंजूरी मिलने के बाद ही प्रक्रिया शुरू की जाए। परियोजना निर्माण के लिए पैसा इसी मंत्रालय से मिलना है। परियोजना निर्माण में 2600 करोड़ रुपये पावर और 1400 करोड़ रुपये वाटर कंपोनेंट पर खर्च होंगे। वाटर कंपोनेंट में 90 फीसद धनराशि केंद्र से मिलेगी और दस फीसद धनराशि लाभान्वित राज्य अपनी-अपनी हिस्सेदारी के अनुरूप खर्च करेंगे। जबकि, पावर कंपोनेंट का खर्च उत्तराखंड वहन करेगा। 

 किस राज्य को कितना पानी मिलेगा 

राज्य---------------प्रतिशत--------------- पानी

हरियाणा----------47.82---------------150.75

दिल्ली------------6.04------------------19.04

हिमाचल--------- 3.15------------------ 9.93

राजस्थान---------9.34-----------------29.44

यूपी-उत्तराखंड--- 33.75--------------- 106.08

(पानी की आपूर्ति मिलियन घन मीटर में)

ये है स्थिति 

  2001-02----------------------2017-18

उपभोक्ता-8.3 लाख------ 21 लाख (नवंबर तक)

बिजली मांग-3601------ 9997 (नवंबर  तक)

(नोट: बिजली मांग मिलियन यूनिट में)

 एक नजर में 

-पनबिजली परियोजना, 1284.85 मेगावाट क्षमता की 13 परियोजना हैं। 

-नवंबर तक राज्य की बिजली मांग 9997 एमयू रही, जबकि राज्य की परियोजनाओं से उत्पादन 3418 एमयू उत्पादन हुआ। 

ये मिली स्वीकृति 

-आठ दिसंबर को बिजली से वंचित उत्तरकाशी (मौरी) ब्लॉक के 17 गांवों में रोशनी पहुंचाने का रास्ता साफ हुआ।  केंद्रीय वन्यजीव परिषद ने सशर्त स्वीकृति दी। 

-जुलाई में केंद्र सरकार ने दीनदयाल उपायध्याय ग्राम ज्योति योजना के तहत एग्रीकल्चर फीडर अलग करने के मद की धनराशि बिजली से वंचित चार हजार से ज्यादा तोकों को रोशन करने में खर्च करने की स्वीकृति दी। वर्तमान में तोक रोशन करने का काम शुरू हो गया है। 

नियुक्ति 

-सात अप्रैल को उत्तराखंड पावर कार्पोरेशन लिमिटेड (यूपीसीएल) के प्रबंध निदेशक बीसीके मिश्रा बने 

-सात अप्रैल को संजय मित्तल पिटकुल के निदेशक परिचालन बने 

 घोटाले-गड़बड़ी 

-एक अप्रैल, 2017 को घटिया गुणवत्ता का ट्रांसफार्मर खरीदने के मामले में पावर ट्रांसमिशन कार्पोरेशन ऑफ उत्तराखंड लिमिटेड (पिटकुल) के मुख्य अभियंता समेत चार इंजीनियरों को निलंबित हुए।

-नवंबर, 2017 में यूपीसीएल में रिले ट्रिप खरीद में घोटाला सामने आया। इस मामले में जांच चल रही है। 

उपलब्धि 

-चार मई को बेहतर बिजली व्यवस्था में उत्तराखंड ने देश में दूसरा स्थान हासिल किया। जबकि बिजली वितरण कंपनी के रूप में उत्तराखंड पावर कार्पोरेशन लिमिटेड (यूपीसीएल) चौथे स्थान पर आया। हर साल पावर फाइनेंस कार्पोरेशन (पीएफसी) इंडियन क्रेडिट रेटिंग्स एजेंसी (आइसीआरए) और क्रेडिट एनालाइसिस एंड रिसर्च (सीएआरई) से देश की 41 बिजली वितरण कंपनियों की रेटिंग तय कराता है। 

'सौभाग्य' की उम्मीद 

केंद्र सरकार की हर घर को रोशन करने के लिए सौभाग्य योजना उत्तराखंड में जल्द शुरू होगी। इसके लिए ऊर्जा निगम डीपीआर बनाने में जुटा है। प्राथमिक गणना के आधार पर चार लाख से अधिक घरों में बिजली कनेक्शन नहीं है।  

बिजली संरक्षण पर फोकस

एलईडी बल्ब व अन्य ऊर्जा दक्ष उपकरणों को सस्ती दरों पर उपलब्ध कराने की कवायद पिछले दो सालों से चल रही है। दो साल पहले जब योजना शुरू हुई थी तो छह महीने में 53 लाख एलईडी बल्ब बांटने का लक्ष्य था और अभी तक भी करीब 41 लाख बल्ब ही बंटे हैं। क्योंकि, योजना हिचकौले खाती रही। हालांकि, इस योजना का जिम्मा केंद्र सरकार के उपक्रम ईईएसएल पर है। ऊर्जा सचिव ने अब एलईडी बल्ब वितरण का लक्ष्य बढ़ाकर एक करोड़ किया है। वर्तमान में डाकघरों के माध्यम से बल्ब व अन्य उपकरण मुहैया कराए जा रहे हैं। महिला स्वयं सहायता समूहों को भी इससे जोड़ा जा रहा है। 

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