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इमरजेंसी ड्यूटी लगाने पर डॉक्‍टर ने रजिस्टर छीनकर फेंका, फिर किया यह काम...

दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल में जब चिकित्सा अधीक्षक ने एक सीनियर रेजीडेंट (डॉक्टर) की ड्यूटी इमरजेंसी में लगा दी। जिस पर डॉक्टर ने ड्यूटी रजिस्टर छीनकर एक तरफ फेंक दिया।

By sunil negiEdited By: Published: Fri, 14 Oct 2016 09:21 AM (IST)Updated: Sat, 15 Oct 2016 03:00 AM (IST)
इमरजेंसी ड्यूटी लगाने पर डॉक्‍टर ने रजिस्टर छीनकर फेंका, फिर किया यह काम...

देहरादून, [जेएनएन]: दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल में कुछ भी ठीक नहीं चल रहा। एक तरफ जहां अधिकारी व्यवस्थाएं दुरुस्त करने को जूझ रहे हैं, अधिनस्थ ही इसमें अड़चन पैदा कर रहे हैं। हद ये कि वह आदेश तक मानने को तैयार नहीं। ऐसा एक वाकया तब हुआ जब चिकित्सा अधीक्षक ने एक सीनियर रेजीडेंट (डॉक्टर) की ड्यूटी इमरजेंसी में लगा दी। जिस पर डॉक्टर ने न सिर्फ उनसे अभद्रता की, बल्कि ड्यूटी रजिस्टर छीनकर एक तरफ फेंक दिया। चिकित्सा अधीक्षक ने प्राचार्य व चिकित्सा शिक्षा निदेशक से इसकी लिखित शिकायत की है। जिसके बाद डॉक्टर ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।

अभी एक माह पूर्व ही चिकित्सा अधीक्षक की ओर से देरी से आने पर टोकने को लेकर एक डॉक्टर ने उनसे अभद्रता की थी। अब एक और नया मामला सामने आया है। चिकित्सा अधीक्षक डॉ. केके टम्टा ने अलग-अलग दिन कुछ डॉक्टरों की रोस्टर सिस्टम से ड्यूटी अस्पताल की इमरजेंसी वार्ड में लगाई। अन्य डॉक्टरों के साथ ही सीनियर रेजीडेंट ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ. अभिषेक की भी ड्यूटी लगाई गई थी। जिससे उन्होंने साफ इन्कार कर दिया और ड्यूटी रजिस्टर फेंक दिया।

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इसकी शिकायत प्राचार्य डॉ. प्रदीप भारती गुप्ता और निदेशक चिकित्सा शिक्षा डॉ. आशुतोष सयाना से की गई है। जिसके बाद डॉ. अभिषेक ने भी इस्तीफा दे दिया। प्राचार्य डॉ. गुप्ता ने बताया कि इस्तीफा उन्हें मिला है। उन्होंने उसे निदेशक चिकित्सा शिक्षा को प्रेषित कर दिया है।

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कॉलेज की बढ़ी मुश्किलें
मेडिकल कॉलेज की मुश्किलें कम होती नहीं दिख रही हैं। पिछले कुछ वक्त में तीन डॉक्टर (एक एसोसिएट व दो असिस्टेंट प्रोफेसर) कॉलेज को गुडबॉय कह चुके हैं। इसके अलावा सात जूनियर रेजीडेंट की लंबे वक्त अनुपस्थित रहने पर सेवाएं समाप्त कर दी गई थी। इनमें कुछ ने बिना बताए किसी अन्य अस्पताल में ज्वाइन कर लिया तो कुछ पीजी करने चले गए। वहीं अब सीनियर रेजीडेंट ने नौकरी छोड़ दी है। उधर, पैथोलॉजी का दबाव कम करने के लिए संविदा पर टेक्नीशियन लगाए गए, लेकिन योग्यता पर सवाल उठने पर यह सभी खुद बैकआउट कर गए।

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