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अब प्लास्टिक कचरे से बनेगा डीजल, यहां लगेगा प्लांट; जानिए

उत्तराखंड में अब प्लास्टिक कचरे से डीजल बनाया जाएगा। इसके लिए एक भारतीय पेट्रोलियम संस्थान में प्रयोगशाला स्तर का प्लांट भी लगाया गया है।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Wed, 24 Oct 2018 08:26 PM (IST)Updated: Thu, 25 Oct 2018 05:00 AM (IST)
अब प्लास्टिक कचरे से बनेगा डीजल, यहां लगेगा प्लांट; जानिए
अब प्लास्टिक कचरे से बनेगा डीजल, यहां लगेगा प्लांट; जानिए

देहरादून, [सुमन सेमवाल]: दून से रोजाना करीब एक हजार किलो प्लास्टिक कचरा उठाने का न सिर्फ इंतजाम हो गया है, बल्कि इससे प्रतिदिन 800 लीटर डीजल भी तैयार किया जाएगा। यह सब हो पाएगा भारतीय पेट्रोलियम संस्थान (आइआइपी) की तकनीक से। इसके लिए गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया लि. (गेल) ने संस्थान को करीब 13 करोड़ रुपये की वित्तीय मदद भी की है।

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आइआइपी के निदेशक डॉ. अंजन रे के मुताबिक प्लास्टिक कचरे से ईंधन बनाने की तकनीक करीब पांच साल पहले इजाद कर ली गई थी। इस तकनीक से न सिर्फ डीजल, बल्कि पेट्रोल व एलपीजी भी तैयार किया जा सकता है। इसके लिए संस्थान में प्रयोगशाला स्तर का प्लांट भी लगाया गया है। हालांकि बड़े स्तर पर करीब एक टन क्षमता के प्लांट से डीजल तैयार किया जाएगा। अगले साल जनवरी में प्लांट से उत्पादन भी शुरू कर दिया जाएगा। शुरुआत देहरादून के प्लास्टिक कचरे से की जाएगी। इसके बाद डिमांड बढ़ने पर केंद्र सरकार के स्तर से तमाम शहरों में इस पहल को आगे बढ़ाया जाएगा।

50 रुपये प्रति लीटर होगा दाम

आइआइपी वैज्ञानिक डॉ. सनत कुमार के अनुसार एक टन के प्लांट में जो डीजल तैयार किया जाएगा, उसकी दर करीब 50 रुपये प्रति लीटर बैठेगी, जबकि अभी डीजल की दर प्रति लीटर 73 रुपये से अधिक है। अगर प्लांट की क्षमता पांच टन तक बढ़ाई जाती है तो दर और भी कम करीब 35 रुपये प्रति लीटर आ सकती है।

प्लास्टिक कचरा निस्तारण में आ सकती है क्रांति

केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार देश के प्रमुख 60 शहरों में प्रतिदिन 15 हजार टन प्लास्टिक कचरा निकलता है। इसमें से छह हजार टन कचरा यूं ही पड़ा रहता है। हालांकि आइआइपी की तकनीक के सफल प्रयोग के बाद तमाम नगर निकाय अपने स्तर पर भी ईंधन बनाने के प्लांट लगा सकते हैं। यदि ऐसा हो पाया तो यह प्लास्टिक कचरे के निस्तारण में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है।

इस तरह तैयार होता है ईंधन

प्लास्टिक कचरे को पहले सुखाया जाता है। इसके बाद इसे सीलबंद भट्टी में डालकर ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में तेज आंच में पकाया जाता है। जिससे प्लास्टिक भाप में परिवर्तित हो जाता है। इस भट्टी से एक पाइप जुड़ा होता है, जो एक वाटर टैंक में जाता है और भाप को इसमें स्टोर किया जाता है। इस टैंक की सतह में जमा पानी को छूते हुए भाप को एक अन्य टैंक में भेजा जाता है। इस प्रक्रिया में भाप ईंधन बन जाती है। इसे रिफाइन कर पेट्रोल या डीजल बनाया जा सकता है। हालांकि पूरी भाप तरल अवस्था में नहीं आ पाती है और वाटर टैंक के ऊपरी हिस्से में जमा हो जाती है। इसका प्रयोग एलपीजी बनाने में किया जाता है।

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