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यहां है संयुक्त परिवारों का बोलबाला, संस्कारों में जिंदा है लोकतंत्र

देहरादून जिले के जौनसार-बावर उत्तरकाशी जिले के रवाईं व बंगाण और टिहरी जिले के जौनपुर क्षेत्र में आज भी संयुक्त परिवारों का बोलबाला है।

By BhanuEdited By: Published: Tue, 26 Mar 2019 01:10 PM (IST)Updated: Tue, 26 Mar 2019 08:57 PM (IST)
यहां है संयुक्त परिवारों का बोलबाला, संस्कारों में जिंदा है लोकतंत्र
यहां है संयुक्त परिवारों का बोलबाला, संस्कारों में जिंदा है लोकतंत्र

देहरादून, कुंवर सिंह तोमर। लोकतंत्र के महासमर को लेकर टिहरी गढ़वाल संसदीय क्षेत्र के संयुक्त परिवारों में हमेशा की तरह इस बार भी खासा उत्साह है। यहां देहरादून जिले के जौनसार-बावर, उत्तरकाशी जिले के रवाईं व बंगाण और टिहरी जिले के जौनपुर क्षेत्र में आज भी संयुक्त परिवारों का बोलबाला है।

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एक छत के नीचे रहने व एक ही चूल्हे पर खाना बनाने वाले इन संयुक्त परिवारों के संस्कार और मान-मर्यादाएं इनकी सबसे बड़ी रीढ़ हैं, जो इन्हें एक सूत्र में बांधे रखने का काम करते हैं। साथ ही राजनीतिक सूझ-बूझ और अपने पसंद का नेता चुनने को लेकर भी संयुक्त परिवारों में लोकतंत्र साफ नजर आता है।

देहरादून जिले के चकराता ब्लॉक स्थित म्योंडा गांव निवासी 65-वर्षीय जयपाल सिंह चौहान कहते हैं कि उनके परिवार में कुल 28 सदस्य हैं, जिनमें 20 सदस्य मतदाता हैं। लोकसभा चुनाव में पूरा परिवार प्रत्याशी को नहीं देखता, बल्कि देश के विकास के लिए मतदान करता है। 

लोकसभा और विधानसभा चुनाव में किसी भी सदस्य पर मतदान को लेकर कोई बंदिश नहीं होती। हां! पंचायती चुनाव स्थितियां जरूर भिन्न होती हैं। क्योंकि, तब रिश्तेदार या परिवार के करीबी लोग चुनाव मैदान में होते हैं। ऐसे में परिवार के सदस्य एकमुश्त या फिर ग्रुप में बंटकर अपना वोट देते हैं। 

जयपाल कहते हैं कि उनके सात बेटे और दो बेटियां हैं, जिनमें से पांच बेटों की शादी हो चुकी है। जबकि उनके छोटे भाई लाखीराम चौहान की दो बेटियों हैं। कहते हैं, इस बार भी वे राष्ट्रीय मुद्दों को लेकर मतदान करेंगे।

जयपाल के बड़े पुत्र 44-वर्षीय चतर सिंह चौहान कहते हैं कि राजनीति में लोग अब स्वार्थ के लिए आ रहे हैं। जरूरत ऐसे लोगों की है, जो देश के विकास और जनता की खुशहाली के लिए सोचें। देहरादून से बीटेक कर रही लाखीराम चौहान की 24-वर्षीय बेटी दीक्षा चौहान कहती है कि राजनीतिक दलों की सोच और नीतियां, दोनों ही पुरानी पड़ चुकी हैं। 

राजनीति में योग्यता का भी कोई मानक नहीं है और न जनता को बेहतर विकल्प ही नजर आ रहा। ऐसी स्थिति में उसी को वोट देना पड़ता है, जिससे कुछ उम्मीद हो। 

उत्तरकाशी जिले मे पुरोला के 78-वर्षीय जगतराम थपलियाल का 48-सदस्यीय परिवार है। इस परिवार में मतदाताओं की संख्या 38 है और पूरा परिवार आज भी गांव में ही रहता है। उनके 12 बेटे हैं, जिनमें से नौ की शादी हो चुकी है। जगतराम बताते हैं कि अब देश एवं समाज के लिए सोचने वाले नेता गिनती के रह गए हैं। 

इसी कारण राजनीति में भी गिरावट आ रही है। फिर भी वे मतदान करने के लिए जरूर जाएंगे और देशहित के लिए जो प्रत्याशी उन्हें उचित नेता, उसी के पक्ष में मतदान करेंगे। 

जगतराम के पुत्र ओमप्रकाश थपलियाल कहते हैं कि लोकसभा व विधानसभा चुनाव में उनका परिवार राष्ट्रीय पार्टियों को ही वोट देता है। लेकिन पार्टी का चयन वे प्रत्याशी को देखकर करते हैं। जगतराम की 18-वर्षीय पोती दीपिका थपलियाल कहती है कि उन्हें अपने संयुक्त परिवार पर गर्व है। वह लोकसभा चुनाव में वह पहली बार मतदान करने जा रही हैं, इसलिए दादा-दादी के साथ ही पोलिंग बूथ पर जाएंगी। 

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