डायट प्रशिक्षितों की इच्छा पूरी, एनआइओएस के डीएलएड प्रशिक्षितों को भर्ती प्रक्रिया से बाहर रखने का फरमान
प्रदेश में एनआइओएस से डीएलएड प्रशिक्षण लेने वालों को झटका लगने जा रहा है। एनसीटीई ने इस प्रशिक्षण कोर्स को मान्यता देने के बाद सभी राज्यों को इस संबंध में दिशा-निर्देश जारी किए थे। शासन ने भी आनन-फानन में इन निर्देशों पर अमल कर दिया।
रविंद्र बड़थ्वाल, देहरादून। प्रदेश में एनआइओएस से डीएलएड प्रशिक्षण लेने वालों को झटका लगने जा रहा है। एनसीटीई ने इस प्रशिक्षण कोर्स को मान्यता देने के बाद सभी राज्यों को इस संबंध में दिशा-निर्देश जारी किए थे। शासन ने भी आनन-फानन में इन निर्देशों पर अमल कर दिया। एनसीटीई का फरमान आने से पहले ही प्रदेश में प्राथमिक शिक्षकों की जिलेवार भर्ती प्रक्रिया प्रारंभ हो चुकी है। भर्ती के बीच में एनआइओएस के डीएलएड प्रशिक्षितों को भी शामिल किए जाने का जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान से दो वर्षीय डीएलएड का प्रशिक्षण ले चुके अभ्यर्थी विरोध कर रहे हैं। उनका तर्क है कि एनआइओएस का प्रशिक्षण डेढ़ वर्षीय है। साथ में मौजूदा विभागीय नियमावली में भी इस नए कोर्स को शामिल करने के लिए संशोधन नहीं किया गया है। विरोध का असर हुआ। शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय ने एनआइओएस के डीएलएड प्रशिक्षितों को भर्ती प्रक्रिया से बाहर रखने का फरमान सुना दिया है।
नहीं खेलने देंगे पबजी गेम
प्रदेश के सभी डिग्री कालेजों को वाई-फाई सेवा से लैस करने की कवायद चल रही है। कोरोना संकट काल में आनलाइन पढ़ाई का दबाव बढ़ने के बाद सरकार ने इसे मुहिम के रूप में लेकर अच्छी शुरुआत की है। पहले लक्ष्य रखा गया था कि राज्य स्थापना दिवस यानी नौ नवंबर तक यह कार्य पूरा किया जाएगा। अब कहा जा रहा है कि आगामी मार्च तक सभी 105 डिग्री कालेजों में ये सुविधा उपलब्ध होगी। फिलहाल विभाग को कालेजों में वाई-फाई का दुरुपयोग होने की चिंता सताने लगी है। छात्र-छात्राएं इस मुफ्त सेवा का लाभ पबजी गेम और फिल्मों की वेबसाइट चलाने के लिए न करें, इसके लिए उच्च शिक्षा राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) धन सिंह रावत ने रुख साफ किया। कालेजों में पबजी व इसतरह के खेल और फिल्मों की वेबसाइट चलाने पर पाबंदी लगाई जाएगी। देखने वाली बात ये होगी कि पाबंदी की ये कसरत कहां तक कामयाब होगी।
अदालत का चल रहा चाबुक
शिक्षा विभाग अदालतों में चल रहे मुकदमों से परेशान है। आदतन सुस्त इस विभाग को हाईकोर्ट जब-तब लताड़ लगा रहा है। नियुक्ति, पदोन्नति, तैनाती के साथ ही निलंबन और बर्खास्तगी के मामलों में विभाग अदालतों के चक्कर काटने को मजबूर है। इसीतरह अनुदान ले रहे अशासकीय विद्यालयों में लंबे अरसे से नियुक्तियां नहीं होने पर शासन ने बीते नवंबर महीने में आदेश जारी कर विभाग को नियुक्तियां करने के लिए दो महीने की मोहलत दी थी। आदेश जारी होने के बाद दो माह कब बीत गए, पता ही नहीं चला। नींद तब खुली जब हाईकोर्ट ने नियुक्तियां नहीं होने पर सख्त रुख अपनाते हुए सरकार को निर्देश दिए। इससे खफा शिक्षा सचिव आर मीनाक्षी सुंदरम ने इन विद्यालयों में रिक्त पदों पर नियुक्तियां करने के लिए विभागीय अधिकारियों की जवाबदेही तय कर दी है। अब उन्हें तीन महीने के भीतर ये काम निबटाना होगा। अन्यथा अनुशासनात्मक कार्रवाई का चाबुक चलेगा।
वित्तीय प्रकरणों में लगा अड़ंगा
वित्तीय मामलों का समाधान नहीं होने से शिक्षक परेशान हैं। प्राथमिक से लेकर माध्यमिक तक शिक्षक सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के मुताबिक अन्य कर्मचारियों की भांति चयन और प्रोन्नत वेतनमान में एक वेतन वृद्धि की मांग लंबे अरसे से कर रहे हैं। इसका निराकरण नहीं हो रहा है। वित्त की मंजूरी नहीं मिल रही है। सातवें वेतनमान में शिक्षकों को केंद्र के समान वित्तीय लाभ दिए गए हैं। ऐसे में चयन और प्रोन्नत वेतनमान में एक वेतन वृद्धि देने में अड़चनें लग रही हैं। शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय ने एक बार फिर विभागीय बैठक ली, लेकिन ये मांग जस की तस रह गई। वित्तीय मामलों में हाथ बंधने की वजह से मंत्रीजी भी कसमसा कर रह जा रहे हैं। वित्त के आला अधिकारियों के साथ बैठक करने में विभागीय अधिकारियों की हिचक साफ दिखाई देती है। ऐसे में मंत्रीजी के निर्देशों पर भी अमल नहीं हो पा रहा है।
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