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जनाब चुनाव भी तो लड़ना है, इसलिए लिया गया यह फैसला

कोरोना के कारण विधायक निधि दो साल के लिए पूरी तरह स्थगित करने की बजाए सरकार ने इसमें हर साल एक-एक करोड़ की धनराशि की कटौती करने का फैसला किया।

By Sunil NegiEdited By: Published: Mon, 13 Apr 2020 08:36 AM (IST)Updated: Mon, 13 Apr 2020 08:36 AM (IST)
जनाब चुनाव भी तो लड़ना है, इसलिए लिया गया यह फैसला
जनाब चुनाव भी तो लड़ना है, इसलिए लिया गया यह फैसला

देहरादून, विकास धूलिया। कोरोना के कारण लॉकडाउन के बीच हाल ही में केंद्र सरकार ने मंत्रियों व सांसदों के वेतन-भत्तों में 30 फीसद तक कटौती के साथ ही सांसद निधि दो साल तक स्थगित रखने का निर्णय लिया। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की भाजपा सरकार ने तुरंत इसे अपने यहां भी लागू करने का फैसला कर डाला, लेकिन उत्तराखंड सरकार ने इस मामले में थोड़ा हटकर रास्ता पकड़ा। विधायक निधि दो साल के लिए पूरी तरह स्थगित करने की बजाए सरकार ने इसमें हर साल एक-एक करोड़ की धनराशि की कटौती करने का फैसला किया। उत्तराखंड में प्रत्येक विधायक को हर साल 3.75 करोड़ रुपये विधायक निधि के रूप में मिलते हैं। यानी, अब भी प्रत्येक विधायक को 2.75 करोड़ रुपये हर साल मिलेंगे। पता नहीं कितनी सच है या गलत, अब सियासी गलियारों में चर्चा है कि ऐसा सरकार को दो साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव के कारण करना पड़ा है।

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खामोश मंत्रीजी काम में बिजी हैं

मुख्यमंत्री ने कोरोना संक्रमण से निबटने के लिए सभी मंत्रियों को अलग-अलग जिलों का प्रभार सौंपा। इन्हें जिम्मेदारी दी गई जिलों में आम जनता को राहत देने को किए जा रहे कार्यो की मॉनीटरिंग की। कुछ ने इसे खासी गंभीरता से लिया, लेकिन कुछ इस चक्कर में ओवर एक्सपोजर के शिकार हो गए। जनजागरण के नाम पर ऐसे काम करते हुए सोशल मीडिया में दिखे कि हंसी के पात्र बन गए। उधर, कुछ ऐसे भी रहे, जिन्होंने घर से निकलना तक गवारा नहीं किया। सरकार के एक अच्छे प्रयास को पलीता लगते देर नहीं लगी। नतीजतन, इसके बाद फरमान जारी करना पड़ा कि मंत्री अब अपने घरों से ही प्रभार वाले जिलों में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग या ऐसे ही ऑनलाइन निगरानी रखेंगे। यानी, सुरक्षित शारीरिक दूरी कायम रखते हुए अपना काम करेंगे। इससे मंत्रीजी ने तो राहत की सांस ली ही है, साथ ही सरकार भी असहज हालात से बच गई।

हाशिये पर खड़े नेताजी का दर्द

अर्से से हाशिये पर चल रहे नेताजी इन दिनों परेशान हैं। इसकी ताजा वजह है लॉकडाउन, जिस कारण वह जंगलों पर अधिकार को लेकर शुरू किए आंदोलन की वर्षगांठ नहीं मना पाए। इसका उन्हें कितना मलाल रहा, यह इससे साबित होता है कि सोशल मीडिया में खुद ही इंटरव्यू टाइप पोस्ट डाल दी। सही समझे आप, यह नेताजी हैं कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय। सात अप्रैल 2018 को उन्हें वन विश्रमगृह में बैठकर याद आया कि अरण्यजनों को उनके अधिकार दिलाने को संघर्ष किया जाना चाहिए। हालांकि, यह बात अलग है कि उनका यह आंदोलन सिर्फ जुबानी बात तक ही सीमित है। इसी के बूते वह अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की जिद्दोजहद में जुटे हैं। असल में 2017 में उन्हें अपनों ने ही हाशिये पर धकेलने में कसर नहीं छोड़ी। इससे उबरने को वनाधिकार आंदोलन की शुरुआत की, लेकिन इसमें भी अपनों का साथ नहीं मिल पाया है।

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ऐसे भी हैं कोरोना के योद्धा

इन दिनों पूरा देश कोविड 19 से लड़ रहा है। इसके लिए सरकार को मदद देने के लिए तमाम लोग आगे आ रहे हैं। इस सबके बीच सूबे के पर्वतीय जिले चमोली की बुजुर्ग देवकी भंडारी ने इन सबसे आगे निकल कर कुछ ऐसा किया कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद तक ने उनकी सराहना की। देवकी भंडारी ने अपने पूरी जीवन की जमा पूंजी 10 लाख रुपये पीएम केयर्स फंड में दान कर दी। उधर, एक अन्य दिलचस्प वाकया भी सामने आया। प्रदेश सरकार द्वारा महत्वपूर्ण पद पर नियुक्त एक दायित्वधारी ने अपने दो महीने का वेतन तो मुख्यमंत्री राहत कोष में देने का एलान किया और इस अवधि के वेतन भत्ते पीएम केयर्स फंड में। अब आप इसे नेताजी की चतुराई कहें, या कुछ और, लेकिन उन्हें जानने वाले इससे चकित हैं। आखिर कैबिनेट मंत्री के दर्जे के पद पर आसीन व्यक्ति से उम्मीद कुछ ज्यादा ही होती है न।

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