GSI के पूर्व अपर महानिदेशक डॉ. टीएस पांगती बोले, बांध सुरक्षा समिति को पुनर्जीवित किया जाए
ऋषिगंगा कैचमेंट क्षेत्र से निकली जलप्रलय के बाद उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पनबिजली परियोजनाओं के उचित ढंग से निर्माण को लेकर बहस छिड़ गई है। परियोजनाओं के निर्माण लेकर विभिन्न वैज्ञानिक एजेंसी भी अलग-अलग तर्क दे रही हैं।
जागरण संवाददाता, देहरादून। ऋषिगंगा कैचमेंट क्षेत्र से निकली जलप्रलय के बाद उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पनबिजली परियोजनाओं के उचित ढंग से निर्माण को लेकर बहस छिड़ गई है। परियोजनाओं के निर्माण लेकर विभिन्न वैज्ञानिक एजेंसी अलग-अलग तर्क दे रही हैं। मगर, इन सब में एक बात समान है कि परियोजनाओं के निर्माण से पहले उचित अध्ययन जरूरी है। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआइ) के पूर्व अपर महानिदेशक डॉ. टीएस पांगती ने अपनी 37 साल की सेवा के अनुभव साझा करते हुए कहा कि जिन बिजली परियोजनाओं में उचित भूवैज्ञानिक अध्ययन नहीं कराया गया, उन्हें ऋषिगंगा जैसी आपदा में भारी नुकसान पहुंचा है।
'जागरण' से बातचीत में डॉ. टीएस पांगती ने कहा कि केंद्र सरकार के अधीन नेशनल कमेटी ऑन डैम सेफ्टी (राष्ट्रीय बांध सुरक्षा समिति एवं उपसमितियां) का गठन किया गया था। अब यह समिति लगभग निष्क्रिय हो चुकी है। इसे पुनर्जीवित करने की जरूरत है। ताकि बिजली परियोजनाओं के निर्माण में सुरक्षा मानकों का सौ फीसद पालन करवाया जा सके। उन्होंने बताया कि तपोवन विष्णुगाड परियोजना के निर्माण के शुरुआती समय में जीएसआइ की तरफ से दो साल तक वह अध्ययन का हिस्सा रही। वर्तमान की आपदा में परियोजना के बैराज सुरक्षित हैं और सिर्फ इसके गेट को क्षति पहुंची है।
इससे इतर ऋषिगंगा परियोजना पूरी तरह तबाह हो गई। लिहाजा, परियोजनाओं के निर्माण में जीएसआइ और इसके समक्ष किसी एजेंसी के विशेषज्ञों को अनिवार्य रूप में शामिल किया जाना चाहिए। भाखड़ा नागल बांध को सौ वर्ष से अधिक का समय हो गया है। यह बांध भी प्रतिकूल भौगोलिक परिस्थितियों में बना है। इसके सुरक्षित रहने के पीछे सिर्फ यही वजह है कि निर्माण के समय सभी सुरक्षा मानकों का पालन किया गया था।
यह भी पढ़ें- ऋषिगंगा नदी पर मलबा जमा होने से बनी झील का 150 मीटर भाग महज पांच मीटर चौड़ा
Uttarakhand Flood Disaster: चमोली हादसे से संबंधित सभी सामग्री पढ़ने के लिए क्लिक करें