सही जानकारी और प्रबंधन से बढ़ सकता है गेहूं उत्पादन
आमतौर पर किसान पुराने तौर तरीकों से ही खेती करते चले आ रहे हैं जिस कारण मनमाफिक उत्पादन नहीं मिल रहा। यदि किसान वैज्ञानिक तकनीकों की जानकारी हासिल करके खेती के कार्यों को अंजाम दें तो फसल के उत्पादन को तीस प्रतिशत तक बढ़ाया जा सकता है।
संवाद सहयोगी, विकासनगर। पारंपरिक रूप से की जाने वाली खेती व तकनीकी आधार पर की जाने वाली खेती एक दूसरे से बिल्कुल भिन्न हैं। आमतौर पर किसान पुराने तौर तरीकों से ही खेती करते चले आ रहे हैं, जिस कारण मनमाफिक उत्पादन नहीं मिल रहा। यदि किसान वैज्ञानिक तकनीकों की जानकारी हासिल करके खेती के कार्यों को अंजाम दें तो फसल के उत्पादन को तीस प्रतिशत तक बढ़ाया जा सकता है। यह जानकारी कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने किसानों को दी।
इन दिनों गेहूं की बुवाई का कार्य चल रहा है। काफी स्थानों पर बुवाई को पूर्ण कर लिया गया है, जबकि काफी किसान गेहूं बुवाई कर रहे हैं। कृषि विज्ञान केंद्र ढकरानी के वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि किसान तकनीकी जानकारी लेकर गेहूं की बुवाई के काम को अंजाम दें तो उन्हें काफी लाभ मिल सकता है। बताते चलें कि पछवादून व जौनसार बावर क्षेत्र में लगभग दस हजार हैक्टेयर में गेहूं की खेती की जाती है। अधिकतर किसान पारंपरिक ढंग से ही खेती करते चले आ रहे हैं। क्षेत्र में गेहूं की बुवाई धान की फसल काटने के तुरंत बाद करने का प्रचलन है, लेकिन धान के खेतों में गेहूं की बुवाई करने से इनमें पहले से मौजूद खरपतवार फसल को प्रभावित करते हैं।
कृषि वैज्ञानिक डॉ. संजय कुमार का कहना है कि इस प्रकार की खेती में पच्चीस से लेकर पचास प्रतिशत तक नुकसान होने की आशंका रहती है। उनका कहना है कि यदि किसान गेहूं की बुवाई के दौरान तकनीकि जानकारियों के आधार पर खरपतवार की पहचान व इसकी रोकथाम के लिए उपाय नहीं करते हैं, तो फसलों पर इसके दुष्प्रभाव होना स्वभाविक है। उनका कहना है कि खेतों की निराई-गुड़ाई से लेकर सिंचाई की सही समय पर व्यवस्था करना, आवश्यक दवाईयों व गोबर की तैयार खाद का प्रयोग करने से फसल के उत्पादन को तीस प्रतिशत तक बढ़ाया जा सकता है। उन्होंने कहा क्षेत्र के कई प्रगतिशील किसान कृषि विज्ञान केंद्र के माध्यम से वैज्ञानिक जानकारी लेकर खेती में काफी अच्छा काम भी कर रहे हैं।