कांग्रेस की एका से रोचक हुई थराली उपचुनाव की जंग
पार्टी हाई कमान के निर्देश पर एकदूसरे के कार्यक्रमों में शामिल होने से गुरेज कर रहे तमाम कांग्रेसी क्षत्रप थराली में एकजुट होकर पार्टी प्रत्याशी के पक्ष में लामबंद हो गए हैं।
देहरादून, [राज्य ब्यूरो]: कर्नाटक में सरकार बनाने से उत्साहित कांग्रेस ने थराली सुरक्षित सीट के उपचुनाव की प्रतिष्ठापूर्ण जंग में पूरी ताकत झोंक दी है। पार्टी हाईकमान इस चुनाव में पार्टी के भीतर किसी भी तरह की धड़ेबंदी का असर देखने के मूड में नहीं है। इसी का नतीजा है कि एकदूसरे के कार्यक्रमों में शामिल होने से गुरेज कर रहे तमाम क्षत्रप एकजुट होकर पार्टी प्रत्याशी के पक्ष में लामबंद हो गए हैं। विपक्ष के इस शक्ति प्रदर्शन ने सरकार और सत्तारूढ़ भाजपा के लिए चुनावी जंग को रोचक बना दिया है।
उच्च हिमालयी क्षेत्र की थराली सीट पर हो रहे उपचुनाव को लेकर कांग्रेस किसी भी तरह की ढील देने को तैयार नहीं है। कर्नाटक में सरकार बनाने में मिली कामयाबी के बाद विपक्षी पार्टी के हौसले बुलंद नजर आ रहे हैं। पार्टी यह मान रही है कि चुस्त रणनीति और मेहनत के बूते उसे कामयाबी मिल सकती है।
इस संबंध में कांग्रेस हाईकमान की ओर से भी उपचुनाव में किसी भी स्तर पर हीलाहवाली नहीं बरतने के साफ निर्देश बताए जाते हैं। चुनाव के अंतिम हफ्ते में प्रदेश प्रभारी अनुग्रह नारायण सिंह ने थराली में डेरा डाल लिया है। कांग्रेस के दिग्गज नेताओं की चुनाव में सक्रियता पर सीधी निगाह रखी जा रही है। नतीजतन दिग्गज पिछले कई मौकों पर गाहे-बगाहे खींचतान के बावजूद थराली की जंग में एकजुट नजर आ रहे हैं।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय, सांसद प्रदीप टम्टा, पूर्व मंत्री राजेंद्र भंडारी व सुरेंद्र नेगी के साथ ही भगवानपुर सुरक्षित सीट से विधायक ममता राकेश, विधायक गोविंद सिंह कुंजवाल समेत तमाम दिग्गजों ने थराली उपचुनाव में ऐड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं।
ये दिग्गज नेता गांव-गांव, गली-गली जाकर चुनाव प्रचार में कसर नहीं छोड़ रहे हैं। दरअसल, माना जा रहा है कि उपचुनाव के नतीजे यदि कांग्रेस के पक्ष में रहते हैं तो पार्टी को देशभर में मोदी लहर और भाजपा की काट के तौर पर प्रचारित करने का मौका मिल सकेगा। साथ ही आगे होने वाले निकाय चुनाव और आम चुनाव के लिए भी ये नतीजे कांग्रेस के लिए संजीवनी साबित हो सकते हैं।
कांग्रेस उत्तराखंड में पहले लोकसभा चुनाव और फिर विधानसभा चुनाव में करारी हार झेल चुकी है। उपचुनाव के जरिये कांग्रेस खुद को मनोवैज्ञानिक तरीके से मजबूत करने में भी जुटी है।
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