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फर्जी बीमा प्रकरण में पुलिस और परिवहन विभाग आमने-सामने Dehradun News

राजधानी देहरादून में फर्जी बीमा प्रकरण को लेकर अब पुलिस और परिवहन विभाग आमने-सामने आ गए हैं।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Sun, 16 Feb 2020 05:31 PM (IST)Updated: Sun, 16 Feb 2020 05:31 PM (IST)
फर्जी बीमा प्रकरण में पुलिस और परिवहन विभाग आमने-सामने Dehradun News
फर्जी बीमा प्रकरण में पुलिस और परिवहन विभाग आमने-सामने Dehradun News

देहरादून, जेएनएन। वाहनों के फर्जी बीमा प्रकरण में पुलिस और परिवहन विभाग आमने-सामने आ गए हैं। पुलिस ने हालिया प्रकरण में एक निजी व्यक्ति द्वारा दी तहरीर पर तो मुकदमा दर्ज कर लिया, मगर सरकारी एजेंसी परिवहन विभाग की ओर से दो माह पहले दी गई तहरीर को मुकदमे के बिना ही ठंडे बस्ते में डाल दिया। आरटीओ दिनेश चंद्र पठोई ने शनिवार को बताया कि फर्जी बीमा प्रकरण में एआरटीओ की तरफ से बीस दिसंबर को हाथीबड़कला चौकी में तहरीर दी गई थी, लेकिन उस पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई। वहीं, डीआइजी अरुण मोहन जोशी ने इस मामले में स्पेशल इंवेस्टीगेशन टीम (एसआइटी) बनाकर पूरे प्रकरण की गहनता से जांच के आदेश दिए हैं। 

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फर्जी बीमा प्रकरण में पुलिस को परिवहन अधिकारियों-कर्मचारियों की भूमिका संदेह के घेरे में लग रही, वहीं परिवहन अधिकारी पुलिस अधिकारियों की भूमिका पर सवाल उठा रहे। शनिवार को आरटीओ दिनेश चंद्र पठोई ने बताया कि फर्जी बीमे का मामला दिसंबर में विजिलेंस की कार्रवाई से पूर्व ही सामने आ चुका है। उसमें भी ट्रैक्टर का ही मामला पकड़ा गया था। उस समय वाहन स्वामी परविंदर सिंह थापा द्वारा 13 दिसंबर को हाथीबड़कला पुलिस चौकी में तहरीर दी थी कि आरटीओ के बाहर किसी व्यक्ति ने उसके वाहन का फर्जी बीमा किया। 

इसी मामले में 20 दिसंबर को एआरटीओ ने भी हाथीबड़कला पुलिस चौकी में तहरीर भेजी कि फर्जी बीमा प्रकरण में कानूनी कार्रवाई की जाए। आरटीओ ने बताया कि सरकारी विभाग की तरफ से भेजी तहरीर पुलिस ने दर्ज ही नहीं की। अब एक व्यक्ति की ओर से ताजा मामले में दी गई तहरीर मुकदमे में दर्ज कर ली गई, जबकि आरटीओ दफ्तर से उक्त व्यक्ति को तहरीर देने से पहले नोटिस भी भेजा जा चुका था। आरटीओ ने बताया कि वे शासन को भी पूरी रिपोर्ट देंगे। 

सीओ को दी एसआइटी की कमान 

डीआइजी अरुण मोहन जोशी ने मामलेे की जांच करने के लिए सीओ डालनवाला विवेक कुमार के निर्देशन में चार सदस्यीय टीम गठित की है। टीम में इंस्पेक्टर एमपी पुरवाल, एसआइ विजय सिंह और राकेश भट्ट शामिल हैं। सीओ को आदेश दिए गए हैं कि वे मामले की जांच प्रगति रिपोर्ट हर सप्ताह डीआइजी को सौंपेंगे। 

यह है पूरा घटनाक्रम 

बीती 21 नवंबर को अधोईवाला निवासी जुल्फिकार अहमद ने विजिलेंस में शिकायत कराई थी कि ट्रैक्टर कृषि से व्यवसायिक में बदलने को आरटीओ दफ्तर में रिश्वत मांगी जा रही है। विजिलेंस ने आरटीओ में छापा मारकर दलाल संदीप कुमार उर्फ मोनू और प्रदीप सिंह को रिश्वत लेते हुए पकड़ा था। रिश्वत मुख्य सहायक यशबीर सिंह बिष्ट की कुर्सी पर बैठा दलाल संदीप ले रहा था। विजिलेंस ने बाद में यशबीर को भी मामले में गिरफ्तार किया था। गत दिनों आरटीओ ने शिकायतकर्ता को नोटिस भेज सूचना दी कि उसके ट्रैक्टर का बीमा फर्जी पाया गया है।

इस पर जुल्फिकार ने डालनवाला थाने में शिकायत दी कि आरटीओ के बाहर एक साइबर कैफे के एजेंट सिद्धांत ने उसने बीमा कराया था। पुलिस ने सिद्धांत से पूछताछ के बाद शुक्रवार को सिद्धांत और अन्य अज्ञात आरोपितों पर मुकदमा दर्ज कर लिया। साथ ही बयान जारी किया कि आरटीओ कर्मियों की भूमिका संदिग्ध है। इसके बाद से दोनों महकमे आमने-सामने आ गए हैं। 

कागजात फर्जी, तो वाहन स्वामी दोषी 

एमवी एक्ट के अनुसार अगर परिवहन से जुड़े किसी कार्य में अपने कोई कागज फर्जी लगाया है, तो सबसे पहले आप ही आरोपी हैं। परिवहन विभाग के पास दस्तावेजों का सत्यापन कराने की व्यवस्था नहीं है। अगर लाइसेंस के लिए आप आधार कार्ड, वोटर आइडी, पासपोर्ट, पैनकार्ड, 10वीं का प्रमाण पत्र जैसे कोई भी दस्तावेज फर्जी देते हैं तो आरोपी आप ही माने जाएंगे।

आरटीओ के मुताबिक आवेदन फार्म में अंतिम लाइन में आवेदक के साइन होते हैं कि उसने जो भी दस्तावेज दिए हैं और नाम-पता दिया है वे असली हैं। इसी तरह वाहन से जुड़े किसी कार्य के लिए अगर बीमा, परमिट, फिटनेस आदि के फर्जी कागज लगाए जाते हैं तो भी आवेदक ही दोषी माना जाएगा। हां, अगर फर्जी कागज की जानकारी होने के बाद भी कार्य किया जाता है तो आरटीओ कर्मचारी पर आरोप बनते हैं। 

फर्जी बीमे के पीछे रैकेट 

आरटीओ के बाहर फर्जी बीमा उपलब्ध कराने का बड़ा रैकेट चल रहा है। गुरुवार को परिवहन उपायुक्त सुधांशु गर्ग ने भी एक डिलीवरी वैन पकड़ी थी, जिसका बीमा भी फर्जी निकला था। यह बीमा भी आरटीओ के बाहर से कराया गया था। 

तीन महीने के बीमे की जांच 

फर्जी बीमा प्रकरण में आरटीओ ने बीते तीन महीने में जिन वाहनों के कार्य हुए हैं, उन सभी के बीमे की जांच करने के आदेश दिए हैं। खासकर उन वाहनों के जो किसी दूसरे के नाम पर ट्रांसफर हुए हैं, या जिनमें श्रेणी बदली गई।  

बीमा कंपनियां होंगी ब्लैकलिस्टेड 

आरटीओ ने परिवहन मुख्यालय को पत्र भेजकर उन बीमा कंपनियों को ब्लैकलिस्ट करने की संस्तुति की है, जो अब तक केंद्र सरकार के वाहन-4 सॉफ्टवेयर से जुड़ी ही नहीं हैं। जो कंपनियां सॉफ्टवेयर से जुड़ी हैं उनसे वाहन का बीमा कराते ही, 48 घंटे के भीतर सॉफ्टवेयर पर जानकारी खुद अपडेट हो जाती है। आरटीओ ने बताया कि मौजूदा समय में 90 फीसद कंपनियां सॉफ्टवेयर से जुड़ी हुई हैं, लेकिन जो 10 फीसद कंपनियां हैं उनके जरिए ही गड़बड़ी की जा रही। ऐसे में इन कंपनियों को ब्लैकलिस्ट करने से यह फर्जीवाड़ा रुक सकता है। 

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आरटीओ दिनेश चंद्र पठोई का कहना है कि सरकारी विभाग की तहरीर पर दो माह बाद भी मुकदमा न होना, न कोई कार्रवाई करना अचंभे की बात है। निजी व्यक्ति की तहरीर पर एकदम मुकदमा दर्ज कर लिया गया। कानून सबके लिए समान है। 

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डीआइजी अरुण मोहन जोशी ने बताया कि वाहनों का फर्जी बीमा प्रकरण बेहद बड़ा मामला लग रहा है। इसमें एसआइटी गठित कर दी गई है, ताकि बारीकी से पड़ताल की जा सके। आरटीओ की तरफ से जो तहरीर दी गई थी, उस पर मामला दर्ज क्यों नहीं किया गया, इसकी जांच भी एसआइटी ही करेगी। मामले में चाहे आरटीओ दफ्तर के कर्मचारी हों या पुलिस के कर्मचारी, सभी की भूमिका की जांच की जाएगी।

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