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आदर्श विद्यालयों को लेकर खींचतान तेज, विधायक लगा रहे उम्‍मीद; जानिए क्‍या है पूरा मामला

आदर्श विद्यालय योजना तैयार कर इसका नामकरण अटलजी के नाम पर किया गया। हर ब्लॉक में दो-दो आदर्श विद्यालय बनाने का फैसला हुआ है। शिक्षा महकमा कई दिनों की मशक्कत के बाद 174 आदर्श विद्यालयों का चयन कर पाया है। कुल 95 ब्लॉकों में 190 विद्यालय चयनित किए जाने हैं।

By Sumit KumarEdited By: Published: Thu, 08 Oct 2020 01:30 PM (IST)Updated: Thu, 08 Oct 2020 01:30 PM (IST)
उत्तराखंड में अटल नाम चुनावी नैया खेवनहार है। प्रदेश भाजपा ही नहीं, मुख्यमंत्री और तमाम मंत्री इसे बखूबी समझते हैं।

देहरदून, जेएनएन। उत्तराखंड में अटल नाम चुनावी नैया खेवनहार है। प्रदेश भाजपा ही नहीं, मुख्यमंत्री और तमाम मंत्री इसे बखूबी समझते हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव में ज्यादा वक्त शेष नहीं रह गया। सरकार ने सोच-समझकर पोटली खंगाली। आदर्श विद्यालय योजना तैयार कर इसका नामकरण अटलजी के नाम पर किया गया। हर ब्लॉक में दो-दो आदर्श विद्यालय बनाने का फैसला हुआ है।

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शिक्षा महकमा कई दिनों की मशक्कत के बाद 174 आदर्श विद्यालयों का चयन कर पाया है। कुल 95 ब्लॉकों में 190 विद्यालय चयनित किए जाने हैं। अब भाजपा के ही विधायकों में ये होड़ लगी है कि उनके क्षेत्र के माध्यमिक विद्यालय का चयन इस योजना में हो जाए। शेष बचे 16 आदर्श विद्यालयों को लेकर खींचतान तेज है। विधायक उम्मीद लगाए हुए हैं। सरकार को 16 के इस आंकड़े से 99 के फेर में फंसने का डर सता रहा  है। डर से निपटने को होमवर्क शुरू हो चुका है।

आदर्श विद्यालयों पर सियासी प्रतिस्पर्धा

अटल आदर्श विद्यालय योजना के बहाने प्रदेश की भाजपा सरकार ने खुद को कांग्रेस के साथ प्रतिस्पर्धा में खड़ा कर दिया है। अब कोशिश यह की जा रही है कि भाजपा की मौजूदा सरकार की ओर से खींची गई लाइन कांग्रेस से ज्यादा लंबी तो नजर आए ही, सरकारी शिक्षा के प्रति आम जनता में भरोसा भी पैदा हो। कांग्रेस की पिछली सरकार ने भी विधानसभा चुनाव में जाने से पहले आदर्श विद्यालय योजना लांच की थी। प्रत्येक ब्लॉक में पांच-पांच सरकारी विद्यालयों को आदर्श बनाने का निर्णय लिया गया था। इनमें दो प्राथमिक, एक-एक उच्च प्राथमिक, हाईस्कूल व इंटर कॉलेज को शामिल किया गया था। यह तय किया कि आदर्श विद्यालयों में अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा दी जाएगी। योजना में चयनित विद्यालयों में संसाधन जुटाने की मुहिम तेज की गई, लेकिन शिक्षकों का बंदोबस्त करने में विभाग के पसीने छूट गए। असर दिखने से पहले सरकार बदल गई थी।

अनुदान की सियासत पर कहर

अनुदान सूची में शामिल अशासकीय विद्यालयों में खलबली मची है। सियासी रसूख के बूते अनुदान सूची में शामिल हो चुके विद्यालयों की फाइल मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के पास पहुंच गई है। कुछ अरसा पहले विभाग की समीक्षा बैठक में रेवडिय़ों की तरह अशासकीय विद्यालयों को बांटे गए अनुदान को लेकर मुख्यमंत्री भृकुटी चढ़ा चुके हैं। पिछली कांग्रेस सरकार ने पहले आंख मूंदकर 200 से ज्यादा अशासकीय विद्यालयों को अनुदान सूची  में शामिल किया था। फिर जाते-जाते अनुदान के बजाय प्रोत्साहन राशि ही अशासकीय विद्यालयों को देने का फरमान जारी कर दिया गया। यह फरमान अब भी लागू हैं। इसके बाद मौजूदा सरकार ने अनुदान बांटने पर सख्ती लागू रखी। बकौल शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय साढ़े तीन साल में एक भी विद्यालय को अनुदान सूची में नहीं लिया गया है। अनुदान सूची में शामिल किए गए करीब दो दर्जन विद्यालयों को बाहर का रास्ता दिखाने की सरकार की तैयारी है।

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कोरोना काल में डरे अभिभावक

कोरोना काल में भयभीत अभिभावकों और विद्याॢथयों की निजी स्कूलों ने घिग्घी बंधा दी है। कोरोना वायरस संक्रमण तेजी से फैल रहा है। अनलॉक-पांच के दौर में स्कूलों को 15 अक्टूबर से खोलने को केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने हरी झंडी दिखा दी, साथ में इस फैसले को लेने का जिम्मा राज्य सरकार पर छोड़ा है। अभिभावक अपने पाल्यों को असुरक्षित माहौल में स्कूलों को भेजने के पक्ष में नहीं हैं। वहीं केंद्र सरकार का रुख साफ होते ही निजी स्कूल संचालकों ने भी तुरंत पलटी मार ली। स्कूलों को सीमित तरीके से संचालित करने की पैरवी करने वाले स्कूल संचालक अब पहले सुरक्षा व्यवस्था चाहते हैं। अभिभावकों की सहमति के साथ स्कूलों में सैनिटाइजर समेत कोरोना से सुरक्षा के बंदोबस्त करने की मांग सरकार से की जा रही है। बच्चों की सुरक्षा को लेकर किसी भी मोर्चे पर जिम्मेदारी से बचने की निजी स्कूलों की कोशिशों से अभिभावक हैरान हैं।

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