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जलवायु परिवर्तन के संकट से जूझ रहा हिमालय, गड़बड़ा गया है वर्षा का चक्र

विश्व की जलवायु को बचाने वाला हिमालय आज स्वयं जलवायु परिवर्तन के गंभीर संकट से जूझ रहा है। जलवायु में अप्रत्याशित परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं।

By Sunil NegiEdited By: Published: Mon, 10 Sep 2018 10:08 AM (IST)Updated: Fri, 14 Sep 2018 02:04 PM (IST)
जलवायु परिवर्तन के संकट से जूझ रहा हिमालय, गड़बड़ा गया है वर्षा का चक्र
जलवायु परिवर्तन के संकट से जूझ रहा हिमालय, गड़बड़ा गया है वर्षा का चक्र

देहरादून, [जेएनएन]: हिमालय दिवस पर दून में विभिन्न संगठनों ने हिमालय की सुरक्षा पर मंथन किया और इसके संभावित खतरों पर चर्चा करते हुए संरक्षण की राह भी सुझाई। रविवार को जोगीवाला चौक के पास स्थित एक स्कूल में उत्तरांचल उत्थान परिषद की ओर से 'हिमालय: चुनौतियां और समाधान' विषय पर विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। 

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गोष्ठी को संबोधित करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार वीरेंद्र पैन्यूली ने कहा कि विश्व की जलवायु को बचाने वाला हिमालय आज स्वयं जलवायु परिवर्तन के गंभीर संकट से जूझ रहा है। जलवायु में अप्रत्याशित परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं। वर्षा का चक्र गड़बड़ा गया है। ग्लेशियर लगातार पीछे खिसक रहे हैं और सैकड़ों ग्लेशियर झीलें टूटने के कगार पर आ गई हैं। उन्होंने कहा कि हिमालय के संरक्षण को इस पूरे क्षेत्र में जियो-कल्चरल प्लानिंग की आवश्यकता है। वहीं, शशि मोहन रावत ने अवैज्ञानिक तरीकों से किए जा रहे विकास कार्यों के चलते भूस्खलन की बढ़ती घटनाओं पर प्रकाश डाला। 

उन्होंने कहा कि हिमालय बेहद संवेदनशील है और तमाम कार्यों में पारंपरिक तरीका अपनाने की भी जरूरत है। विचार गोष्ठी में नीरज पोखरियाल ने उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पर्वतारोहण से बढ़ते प्रदूषण पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि प्लास्टिक कचरा आज उच्च हिमालयी क्षेत्रों में जगह-जगह पसर गया है। वहीं मानव दखल से ग्लेशियर भी प्रभावित हो रहे हैं। इसके लिए उन्होंने पर्वतारोहण की स्पष्ट नीति बनाने की मांग की। नवीन आनंद ने हिमालयी राज्यों के बीच एक नेटवर्क स्थापित कर सूचनाओं के आदान-प्रदान व आपसी सहयोग से काम करने पर बल दिया। 

अनूप नौटियाल ने जोर दिया कि उच्च हिमालयी क्षेत्रों में प्लास्टिक कचरे की समस्या के समाधान को रेगुलेटरी फ्रेमवर्क तैयार किया जाना चाहिए। गोष्ठी की अध्यक्ष करते हुए खाद्य निगम की सदस्य सचिव सुचिस्मिता सेनगुप्ता पांडेय ने स्वामी विवेकानंद का स्मरण करते हुए कहा कि उन्हों पांच बार हिमालयी क्षेत्रों में भ्रमण किया था और अपनी दूरदृष्टि से आज की आशंका को भांपते हुए तभी स्पष्ट कर दिया था कि यहां महिला शिक्षा, स्वावलंबन व स्वास्थ्य सुविधाओं की तरफ विशेष ध्यान देने की जरूरत है। इस अवसर पर परिषद के अध्यक्ष प्रेम बड़ाकोटी, राम प्रकाश पैन्यूली, जयमल नेगी, डॉ. माधव मैठाणी, सीआर गोस्वामी आदि उपस्थित रहे।

उत्तराखंड में पॉलीथिन पर लगेगी शत-प्रतिशत रोक

राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने कहा कि हिमालय से निकलने वाली गंगा नदी का संरक्षण हमारी प्राथमिकता होना चाहिए। साथ ही उत्तराखंड में पॉलीथिन पर पूरी तरह रोक प्रतिबंध लगवाना उनकी प्राथमिकता है। इसके लिए मुख्यमंत्री से बात की जाएगी और प्रधानमंत्री को भी पत्र लिखा जाएगा। परमार्थ निकेतन ऋषिकेश में गंगा एक्शन परिवार, हैस्को और उत्तराखंड शासन की ओर से आयोजित हिमालय चिंतन-मंथन शिखर सम्मेलन में राज्यपाल ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम में सभी धर्मों के संत एक मंच पर है, जाहिर है भारत का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। 

कहा कि हिमालय से निकलने वाली गंगा जल, विद्युत व सिंचाई के रूप में ही जीवन नहीं दे रही, वह मोक्ष का भी पर्याय है। इसलिए गंगा का संरक्षण हमारा मुख्य ध्येय होना चाहिए। राज्यपाल ने कहा कि उन्हें उत्तराखंड में आने के बाद पता चला कि भारत वास्तव में सोने की चिड़िया है। यहां जड़ी-बूटी और संपदा का अपार भंडार है। कहा कि उन्हें हिमालय की सेवा करने का अवसर मिला है और वह पूरे मनोयोग से इस जिम्मेदारी को निभाएंगी। उन्होंने आह्वान किया कि प्रत्येक व्यक्ति हिमालय की सेवा में जीवन के कुछ घंटे समर्पित करें। 

क्योंकि, कर्म ही मनुष्य के साथ जाते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि उत्तराखंड में पॉलीथिन पर शत-प्रतिशत रोक लगाई जाएगी। इसके लिए संबंधित अधिकारी कुछ ऐसी व्यवस्था करें कि जिस हाथ में भी पॉलीथिन नजर आए, उससे उसे वापस लेकर तुरंत थैला थमाया जाए। कहा कि हिमालय के लिए नुकसानदायी हर चीज वापस ली जानी चाहिए। परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि उत्तराखंड शक्ति और भक्ति की धरती है। 

गंगा और यमुना के प्रति राज्यपाल का समर्पण भाव रहा है और हमें भी जल प्रतिज्ञा के माध्यम से जल संरक्षण का संकल्प लेना होगा। हिमालय को भारत की आन, बान, शान बताते हुए उन्होंने कहा कि इसके संरक्षण के लिए सरकार, सेना, संत, समाज और संस्थाओं को मिलकर काम करना होगा। हैस्को के निदेशक एवं पद्मश्री डॉ. अनिल जोशी ने कहा कि हिमालय पर्वत श्रृंखला करोड़ों लोगों को पालती है, इसीलिए 2010 में हिमालय दिवस की शुरुआत हुई। हिमालय हमारी जीवन रेखा है और इसके विकास का केंद्र आध्यात्मिक होना चाहिए। 

सम्मेलन में प्रदेश के पेयजल मंत्री प्रकाश पंत, जीवा की अंतरराष्ट्रीय महासचिव साध्वी भगवती सरस्वती, परमार्थ निकेतन के महामंडलेश्वर स्वामी असंगानंद सरस्वती, जयराम आश्रम के अध्यक्ष ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी, सुन्नी धर्मगुरु इमाम उमर अहमद इलियासी, शिया नेता मौलाना कोकब मुजताबजी, प्रियंका कोठारी, महामंडलेश्वर स्वामी हरिचेतनानंद, स्वामी ऋषिश्वरानंद हठयोगी आदि ने शिरकत की। बाद में राज्यपाल और सभी धर्मगुरु गंगा आरती में शामिल हुए और हिमालय के संरक्षण का संकल्प लिया। 

एंबुलेंस को सबसे पहले रास्ता दें परमार्थ निकेतन में आयोजित हिमालय शिखर सम्मलेन में राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति सड़क पर गुजरने वाली एंबुलेंस को सबसे पहले रास्ता दे। नागरिक का यह कार्य बीमार को जीवन देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। सुन्नी धर्मगुरु इमाम उमर अहमद इलियासी ने भी यह बात रखी।

हिमालय को विश्व धरोहर घोषित करे यूनेस्को

हिमालय दिवस पर परमार्थ निकेतन में आयोजित हिमालय चिंतन-मंथन शिखर सम्मेलन में हिमालयी घोषणा पत्र जारी किया गया। शिखर सम्मेलन में सभी ने एक स्वर में जल स्त्रोतों को भविष्य की पीढ़ि‍यों लिए संरक्षित करने के लिए यूनेस्को से हिमालय को विश्व धरोहर स्थल घोषित किए जाने व संयुक्त राष्ट्र से हिमालय दिवस को अतंरराष्ट्रीय दिवस के रूप में मान्यता देने की मांग की। 

रविवार को परमार्थ निकेतन में आयोजित हिमालय चिंतन-मंथन शिखर सम्मेलन का महत्वपूर्ण सार हिमालयी घोषणा पत्र के रूप में सामने आया। हिमालयी घोषणा पत्र में कहा गया कि हिमालय लाखों लोगों की जीवन रेखा है। इसके संरक्षण का मुद्दा करोड़ों लोगों की जीवन रेखा से जुड़ा विषय है। हिमालय सबका है और हमेशा से देश दुनिया की अनवरत सेवा में लीन है, ऐसे में हिमालय की सामूहिक चिंता की जानी चाहिए। हिमालय देश की पानी, मिट्टी और हवा का केंद्र है, इसलिए हिमालय का संरक्षण इन्हीं से जुड़ा है और इस पर ही देश के पर्यावरणीय मुद्दे भी टिके हैं। 

हिमालयी वन इन सब उत्पादों के केंद्र हैं, इसलिए वन रक्षा नियम स्थानीय समुदाय के साथ जोड़कर तय करने चाहिए। क्योंकि वे ही इस संपदा के सबसे पहले अधिकारी हैं। हिमालय की विकास योजनाएं पारिस्थितिकी केंद्रित होनी चाहिए। देश का पारिस्थितिकी केंद्र भी हिमालय है, इसलिए पारिस्थितिकी संरक्षण ही यहां के रोजगार का हिस्सा होना चाहिए। हिमालय में ऊर्जा उत्पादन व संरक्षण को मद्देनजर रखते हुए हिमालय ऊर्जा मै¨पग कर अन्य संसाधनों को भी तलाशना चाहिए। 

बड़े बांधों के एवज में छोटी जल विद्युत योजनाएं पारिस्थितिकी नियंत्रण में बेहतर भूमिका अदा कर सकती है। पीएम की अध्यक्षता में गठित हो समिति हिमालय चिंतन-मंथन शिखर सम्मेलन में हिमालय की पारिस्थितिकी पर चर्चा व कार्ययोजना के लिए एक समिति के गठन का प्रस्ताव भी रखा गया। हिमालयी घोषणा पत्र में इस बिंदु को शामिल करते हुए इस समिति का स्वरूप भी तय किया गया। घोषणा पत्र में सुझाव दिया गया कि प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में समिति का गठन किया जाए और समय-समय पर हिमालय की पारिस्थितिकी पर चर्चा की जाए। साथ ही इस समिति में हिमालयी राज्यों के मुख्यमंत्री व प्रमुख कार्यकर्ताओं को सदस्य बनाने का सुझाव दिया गया।

हिमालय के लोगों को मिले वनवासी का दर्जा

हिमालय चिंतन-मनन शिखर सम्मेलन के प्रथम सत्र में पर्यावरण विशेषज्ञों, वैज्ञानिकों व नागरिकों ने महत्वपूर्ण सुझाव रखे। इस सत्र में हिमालय नीति व हिमालयी पर्यावरण पर वृहद चर्चा हुई। पर्यावरणविद् डॉ. अनिल जोशी की अध्यक्षता में आयोजित इस सत्र में कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने हिमालय से निकलने वाली गंगा समेत अन्य नदियों के अस्तित्व पर मंडरा रहे संकट को लेकर कारगर नीति तैयार करने, उत्तराखंड में वन अधिकार अधिनियम-2006 लागू कर उसे वन प्रदेश घोषित करने और यहां के नागरिकों को वनवासी का दर्जा देने का सुझाव रखा। उन्होंने हिमालयी क्षेत्रों में पैदा होने वाली जड़ी-बूटियों के दोहन का अधिकार स्थानीय समुदायों को देने की मांग भी उठाई। इस दौरान राज्यमंत्री डॉ. धन सिंह रावत, कर्नल प्रकाश तिवारी, डॉ. जीएस रावत, डॉ. एन. खजूरिया, डॉ. बीके बहुगुणा, डॉ. सुभाष नौटियाल, डॉ. प्रकाश नौटियाल आदि ने भी सुझाव दिए।

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