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मेजर चित्रेश ने जिंदगी में नहीं आने दी डर और चुनौती की अड़चन

मेजर चित्रेश ने अपनी जिंदगी में डर और चुनौती की अड़चन को कभी नहीं आने दिया। उनका जो मन करता था वे वही काम करते थे।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Tue, 19 Feb 2019 03:27 PM (IST)Updated: Tue, 19 Feb 2019 03:27 PM (IST)
मेजर चित्रेश ने जिंदगी में नहीं आने दी डर और चुनौती की अड़चन
मेजर चित्रेश ने जिंदगी में नहीं आने दी डर और चुनौती की अड़चन

देहरादून, जेएनएन। शहीद मेजर चित्रेश बिष्ट की दिलेरी की फेहरिस्त काफी लंबी है। बचपन से लेकर सेना में जाने तक चित्रेश कभी नहीं बदले। डर और चुनौती की अड़चन उन्होंने जीवन में कभी नहीं आने दी। जो मन किया, वह किया और हर काम को मुकाम तक पहुंचाया। पढ़ाई, खेल और ट्रेनिंग के दौरान जोखिम लेने पर दोस्तों को उन्हें रोकना पड़ता था। 

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शहीद चित्रेश बिष्ट के बचपन के दोस्त और सेना में उनके कोर्समेट रहे मेजर जितेंद्र रमोला घटना के बाद से ही बदहवास हैं। कहते हैं, 'दोस्त की शादी के लिए घर पहुंचा था, मगर यहां कुछ और ही सूचना मिल गई।' देहरादून के ही रहने वाले मेजर जितेंद्र अपने घर जाने की बजाय सीधे शहीद चित्रेश के घर पहुंचे और उनके माता-पिता को संभालने की कोशिश की। मगर, वहां का दृश्य देख खुद भी बिलख पड़े। 

बोले, 'चित्रेश के जाने का दुख जीवनभर खलता रहेगा। उनके जैसा साथी जीवन में दोबारा मिल पाएगा, मुमकिन नहीं है। चित्रेश के मन में उन्होंने कभी भी डर और चुनौती नहीं देखी। हर काम को सरल और सहजता से पूरा करने की तरकीब चित्रेश से सीखने को मिलती थी।' मेजर रमोला बताते हैं कि वह दोनों एक साथ पास आउट हुए। ट्रेनिंग भी साथ की। खेल, ट्रेनिंग और नौकरी के दौरान चित्रेश जब भी जोखिम उठाते, हम उन्हें रोकते थे। तब चित्रेश का जवाब होता, 'मैं कर लूंगा।' वतन के लिए इतनी जल्दी हमारा दोस्त कुर्बान होगा, यह कभी सोचा भी नहीं था। अब हमारे साथ सिर्फ दोस्त की जिंदादिली की यादें रहेंगी। 

चित्रेश पहले ही बन गए थे टाइगर 

शहीद मेजर चित्रेश बिष्ट को उनके सीनियर और जूनियर 'टाइगर' नाम से पुकारते थे। मेजर रमोला बताते हैं कि अक्सर सेना में सीओ बनने के बाद अफसर को टाइगर कहकर पुकारा जाता है। लेकिन, अपना चित्रेश तो पहले ही टाइगर बन गया था। 

माता-पिता को संभालते छलक पड़े आंसू 

मेजर जितेंद्र रमोला दो दिन से शहीद चित्रेश के माता-पिता को संभालने में लगे थे। सोमवार को शहीद का पार्थिव शरीर उनके घर लाया गया तो जितेंद्र सुबह से ही वर्दी पहनकर दोस्त को अंतिम सलामी देने की तैयारी में थे। मगर, इसी बीच जब जितेंद्र शहीद चित्रेश के माता-पिता के पास गए तो वह उन्हें गले लगाते हुए जोर-जोर से रोने लगे। यह दृश्य देख जितेंद्र के नेत्र भी सजल हो गए। 

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