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पुजारियों व श्रद्धालुओं का आपातकाल में दर्शन के लिए वर्चुअल विकल्प अपनाना धार्मिक सहिष्णुता का बनेगा उदाहरण

सरकार चार धाम के दर्शनाभिलाषियों के लिए वर्चुअल दर्शन की व्यवस्था करने जा रही है। श्रद्धालु अपने-अपने घर पर ही धामों के दर्शन कर पाएंगे। मंदिरों के गर्भ गृह को छोड़ कर शेष मंदिर के दर्शन के साथ ही आरती में आनलाइन शामिल हो सकेंगे।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 19 May 2021 12:03 PM (IST)Updated: Wed, 19 May 2021 12:04 PM (IST)
पुजारियों व श्रद्धालुओं का आपातकाल में दर्शन के लिए वर्चुअल विकल्प अपनाना धार्मिक सहिष्णुता का बनेगा उदाहरण
सरकार की तैयारियां अगर रंग लाती हैं तो यह आस्था को विज्ञान की अनुपम भेंट ही मानी जाएगी।

देहरादून, कुशल कोठियाल। उत्तराखंड में बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने के साथ ही चारों धामों में विधि-विधान के साथ पूजन का आरंभ हो गया। पिछले साल भी चार धाम यात्रा के प्रारंभ में ही कोविड का संक्रमण बढ़ने लगा था। इस बार भी चार धामों के कपाट कोविड के विकराल काल में ही खुल रहे हैं। प्रदेश सरकार ने इस बार बिना समय गंवाए चार धाम यात्रा को स्थगित कर दिया। हालांकि यह भी तथ्य है कि आपदा में जब विज्ञान समाधान नहीं देता तब आस्था ही समाज को संबल देती है। यात्रा भले स्थगित की गई हो, लेकिन इस विकट काल में तमाम भारतीय गंगोत्री, यमुनोत्री, बदरीनाथ और केदारनाथ से आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त कर कोरोना को परास्त करने के लिए मनोबल ऊंचा कर रहे हैं।

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14 मई से शुरू होने वाली चारधाम यात्रा को 29 अप्रैल को ही स्थगित करने का निर्णय ले लिया गया था। प्रदेश सरकार ने चार धाम यात्रा सही समय पर स्थगित कर उस तबके को निराश किया जो इसे भी हरिद्वार कुंभ की तरह देश-दुनिया में बदनाम करने का षड्यंत्र रच रहा था। कुंभ से संबंधित समस्त जमीनी तथ्यों को किनारे कर इसे सुपर स्प्रेडर करार देने वाले तत्व चार धाम यात्रा को भी इसी रंग में रंगने को आतुर थे। हरिद्वार कुंभ में जिस तरह हवाई विमर्श गढ़ा गया व नियोजित ढंग से इसे हवा दी गई थी, उसे भांपते हुए उत्तराखंड का समाज व सरकार काफी सतर्क दिखे। चारों धामों के कपाट खुलने की परंपरा रावल, तीर्थ पुरोहित व पुजारियों द्वारा निभाई गई, लेकिन वीआइपी उपस्थिति शून्य रही।

कोविड संक्रमण के इस दौर में कुंभ के स्नार्नािथयों व चार धाम के यात्रियों से हो सकने वाले खतरे में भी भारी अंतर है। कुंभ में आने वाले श्रद्धालु हरिद्वार में कुछ समय के लिए आते हैं व वापस लौट जाते हैं, जबकि चार धाम यात्री को भौगोलिक स्थिति के चलते राज्य के सीमांत क्षेत्रों में जाना पड़ता है। इस दौरान वे राज्य के कई क्षेत्रों से गुजरते हैं, रुकते हैं, घूमते हैं। कई यात्री तो तीर्थाटन के साथ ही पर्यटन की योजना भी बना कर आते है। सीधे वापस लौटने के बजाय उत्तराखंड में कुछ दिन और रुक कर प्राकृतिक सौंदर्य का भी आनंद लेते हैं। इस तरह एक चार धाम यात्री की संपर्क-परिधि कुंभ के एक स्नानार्थी से कहीं ज्यादा है। प्रदेश सरकार ने कोविड संक्रमण के परिप्रेक्ष्य में इसका सटीक आकलन किया है।

प्रदेश की आर्थिकी से जुड़ी चार धाम यात्रा को लगातार दूसरे साल भी स्थगित रखना, भले आम लोगों के लिए महज एक प्रशासनिक निर्णय हो, लेकिन यह वास्तव में प्रासंगिक होने के साथ सरकारी स्तर पर साहसिक निर्णय भी माना जाना चाहिए। इससे प्राप्त होने वाले राजस्व व रोजगार की भरपाई आसानी से होने वाली नहीं है। वर्ष 2019 में चारधाम यात्रा पर 32 लाख यात्री पहुंचे थे। इनमें से बदरीनाथ के दर्शनों को आए श्रद्धालुओं की संख्या ही 12 लाख थी। वर्ष 2020 में कोविड की पहली लहर के कारण यात्रा रोकनी पड़ी। परिणाम यह हुआ कि यात्रा के अंतिम चरण में चारों धामों में मात्र तीन लाख श्रद्धालु ही दर्शन कर सके। सामान्य काल में लाखों की संख्या में आने वाले ये यात्री प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से उत्तराखंड की आर्थिकी में खासा योगदान देते हैं। व्यापक हितों में लिए गए इस निर्णय का प्रदेश में कहीं भी किसी भी स्तर पर विरोध न होना भी हिंदू समाज की उदारता व सहिष्णुता को ही प्रमाणित करता है। वर्तमान परिस्थितियों में चारधाम यात्रा को स्थगित रखना देश व देशवासियों के हित में है, इस सत्य को सनातनी आस्था पर वरीयता देना, समय व समाज की मांग है। इस मांग को समग्रता में स्वीकारा गया है। धर्म का देश व समाज के साथ तारतम्य का यह अनुपम और अनुकरणीय उदाहरण है।

सरकार चार धाम के दर्शनाभिलाषियों के लिए वर्चुअल दर्शन की व्यवस्था करने जा रही है। श्रद्धालु अपने-अपने घर पर ही धामों के दर्शन कर पाएंगे। मंदिरों के गर्भ गृह को छोड़ कर शेष मंदिर के दर्शन के साथ ही आरती में आनलाइन शामिल हो सकेंगे। सरकार की तैयारियां अगर रंग लाती हैं तो यह आस्था को विज्ञान की अनुपम भेंट ही मानी जाएगी। पुजारियों व श्रद्धालुओं का आपातकाल में दर्शन के लिए वर्चुअल विकल्प अपनाना भी धार्मिक सहिष्णुता व स्वीकार्यता का उदाहरण बनेगा।

[राज्य संपादक, उत्तराखंड]

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