इन्होंने फर्ज की खातिर स्कूटी से तय की 370 किमी की दूरी, लगी रहीं जनता की सेवा में
कोरोनाकाल में वैसे तो हर पुलिसकर्मी ने समर्पित भाव से अपनी ड्यूटी निभाई और जनता की सेवा की है लेकिन इनमें कुछ पुलिसकर्मी ऐसे भी हैं जिन्होंने सभी मुश्किलों से बढ़कर अपने फर्ज को समझा। ऐसी ही एक पुलिसकर्मी हैं चंपा मेहरा।
सोबन सिंह गुसांई, देहरादून। कोरोनाकाल में वैसे तो हर पुलिसकर्मी ने समर्पित भाव से अपनी ड्यूटी निभाई और जनता की सेवा की है, लेकिन इनमें कुछ पुलिसकर्मी ऐसे भी हैं, जिन्होंने सभी मुश्किलों से बढ़कर अपने फर्ज को समझा। ऐसी ही एक पुलिसकर्मी हैं चंपा मेहरा। पिता के नैनीताल में गंभीर हालत में होने के बावजूद चंपा मेहरा करीब 370 किलोमीटर की दूरी स्कूटी से तय कर देहरादून पहुंची और जनता की सेवा में लग गईं। ड्यूटी के प्रति उनके समर्पण को देख पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार ने 26 जनवरी को उन्हें पुलिस मेडल से सम्मानित किया।
कांस्टेबल चंपा मेहरा देहरादून में डायल 112 में तैनात हैं। यहां आने वाली जनता की समस्याओं के समाधान में वह अहम भूमिका निभाती हैं। चंपा मेहरा ने बताया कि उनके पिता की तबीयत बहुत खराब थी। शुगर अधिक होने के कारण उनकी किडडी खराब हो चुकी थीं, यहां तक कि डॉक्टरों ने जवाब भी दे दिया था। स्वजनों ने उन्हें इस बात की जानकारी दी तो वह 23 मार्च, 2020 को लालकुआं स्थित अपने घर चली गईं। 25 मार्च से पूरी तरह से लॉकडाउन लग गया, वाहनों की आवाजाही पूरी तरह से बंद हो गई। इसी बीच उन्हें पता लगा कि डायल 112 में ड्यूटी पर तैनात महिला पुलिसकर्मियों की संख्या कम है, तो उन्होंने तुरंत ड्यूटी पर आने का मन बना लिया।
30 मार्च, 2020 को सुबह सात बजे वह अकेली अपनी स्कूटी से घर से निकलीं और करीब 370 किमी की दूरी तय कर देहरादून पहुंचकर ड्यूटी पर उपस्थित हो गईं। बताया कि रास्ते में चेकिंग चल रही थी। उन्हें भी जगह-जगह रोका गया, लेकिन कारण बताने पर उन्हें जाने दिया गया। चंपा मेहरा ने बताया कि लॉकडाउन के कारण रास्ते में सभी दुकानें बंद थी। ऐसे में उन्होंने घर से दो बिस्कुट के पैकेट अपने बैग में रखे हुए थे। रास्ते में एक दो जगह रुककर उन्होंने बिस्कुट खाकर और पानी पीकर ही काम चलाया।
ड्यूटी के प्रति वफादारी भी जरूरी
कांस्टेबल चंपा मेहरा का कहना है कि ड्यूटी के प्रति वफादारी भी जरूरी है। पिताजी की सेहत बहुत खराब थी। ऐसी स्थिति में हर कोई चाहता है कि पिता के साथ रहें, लेकिन हमारे हाथ में कुछ नहीं है। कोरोना के कारण हालात बेहद खराब थे। अगर संकट की घड़ी में छुट्टी लेती तो खुद को ही यह बात परेशान करती कि मैं अपनी जिम्मेदारी से भाग रही हूं।
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