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Chamoli Glacier Burst: रिमखिम नाले से हुआ हिमस्खलन, कई एवलॉन्च शूट मौजूद

Chamoli Glacier Burst चमोली जिले के धौली गंगा कैचमेंट क्षेत्र में जो तबाही हुई उसकी वजह बना है रिमखिम नाले का एवलॉन्च शूट। इसी नाले से भारी मात्रा में बर्फ के बड़े-बड़े टुकड़े टूटकर अपर सुमना क्षेत्र में जा गिरे।

By Raksha PanthriEdited By: Published: Sun, 25 Apr 2021 11:30 AM (IST)Updated: Sun, 25 Apr 2021 01:52 PM (IST)
Chamoli Glacier Burst: रिमखिम नाले से हुआ हिमस्खलन, कई एवलॉन्च शूट मौजूद
सेटेलाइट से लिया गया ये चित्र अपर सुमना क्षेत्र का है, एवलॉन्च टूटने से यहीं तबाही हुई।

सुमन सेमवाल, देहरादून। Chamoli Glacier Burst चमोली जिले के धौली गंगा कैचमेंट क्षेत्र में जो तबाही हुई, उसकी वजह बना है रिमखिम नाले का एवलॉन्च शूट। इसी नाले से भारी मात्रा में बर्फ के बड़े-बड़े टुकड़े टूटकर अपर सुमना क्षेत्र में जा गिरे। सुमना क्षेत्र में जहां आइटीबीपी व बीआरओ का कैंप है, वहां खतरा बरकरार है, क्योंकि इस क्षेत्र में रिमखिम नाले के साथ कियोगाड का एवलॉन्च शूट (जहां से हिमस्खलन की घटना होती है) भी है। उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसैक) ने सेटेलाइट चित्रों के अध्ययन ने सुमना क्षेत्र की स्थिति का आकलन किया।

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यूसैक निदेशक डॉ. एमपीएस बिष्ट के मुताबिक यह पूरा कैचमेंट क्षेत्र धौली गंगा नदी है। प्राकृतिक आपदा के लिहाज से दशकों से यह क्षेत्र बेहद संवेदनशील बना है। इसकी वजह है जलवायु परिवर्तन। क्योंकि एक समय में यह पूरा इलाका रेन शेडो जोन कहलाता था। यहां बारिश ना के बराबर होती थी। जिसके चलते इस क्षेत्र में ग्लेशियर नहीं हैं। हालांकि, अब यहां बारिश होने लगी तो रिमखिम नाले, कियोगाड आदि क्षेत्र में बर्फ जमा होने लगी। जब बर्फ भारी मात्रा में जमा होती है और उसके बाद तेज धूम पड़ती है तो एवलॉन्च (हिमस्खलन) की घटना होती रहती है। इसके चलते यहां एक्टिव एवलॉन्च जोन हैं। शुक्रवार रात की घटना भी ऐसे ही एवलॉन्च शूट की देन है। यूसैक निदेशक डॉ. बिष्ट का कहना है कि इस तरह की पर्यावरणीय घटनाओं को रोका नहीं जाता सकता, लेकिन इस तरह के संवेदनशील क्षेत्रों पर निरंतर निगरानी की जरूरत है।

जोशीमठ से सुमना तक जमा है ग्लेशियर मलबा

यूसैक निदेशक डॉ. एमपीएस बिष्ट ने बताया कि लास्ट ग्लेशियल मैग्जमा के दौर में जब ग्लेशियर पीछे खिसके, तब वह अपने पीछे भारी मात्रा में मलबा छोड़ गए। जोशीमठ से सुमना तक इस तरह के मलबे के दर्जनों प्रमाण हैं। मलबे का क्षेत्र 200 मीटर तक फैला है। ऐसे में प्राकृतिक आपदा के दौरान यह मलबा भारी तबाही का कारण बन सकता है। लिहाजा, उत्तराखंड में इस तरह का संस्थान होना जरूरी है, जो सिर्फ ग्लेशियरों पर अध्ययन के लिए समर्पित हो।

चार नदी/गाड क्षेत्र और सभी जगह एवलॉन्च जोन

यूसैक निदेशक डॉ. बिष्ट के मुताबिक धौली गंगा चार अलग-अलग नदी/गाड से मिलकर बनी हैं। इसमें गणेश गंगा, घ्रिती गंगा, रिमखम नाला व कियोगाड का पानी आती है। इनका संगम सुमना व मलारी के बीच है और इसके बाद नदी धौली गंगा बन जाती है। इस पूरे क्षेत्र को धौलीगंगा कैचमेंट भी कहा जाता है।

सबसे गंभीर बात यह कि सभी नदी क्षेत्र में एवलॉन्च जोन हैं और इनके चलते कई भी कृत्रिम झील का निर्माण हो सकता है या भारी मलबा बहकर निचले क्षेत्रों में जा सकता है। धौली गंगा आगे जाकर ऋषि गंगा से मिलकर विष्णुगाड बनती है और फिर अलकनंदा। देवप्रयाग में अलकनंदा नदी भागीरथी से मिलकर गंगा बन जाती है।

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