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हाईकमान का 'तीरथ' फार्मूला हर खांचे में फिट, सियासी रथ के राजतिलक के मंच तक पहुंचने के मौजूद हैं कई कारक

सक्रिय राजनीति में होते हुए भी इस छाप से परे सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में ज्यादा पहचान। यही वे प्रमुख कारक हैं जिन्होंने पौड़ी के छोटे से गांव सीरों में जन्मे तीरथ सिंह रावत को सूबे का सरताज बनवाने में अहम भूमिका निभाई।

By Sumit KumarEdited By: Published: Thu, 11 Mar 2021 03:30 AM (IST)Updated: Thu, 11 Mar 2021 03:30 AM (IST)
हाईकमान का 'तीरथ' फार्मूला हर खांचे में फिट, सियासी रथ के राजतिलक के मंच तक पहुंचने के मौजूद हैं कई कारक
कई प्रमुख कारक ने पौड़ी में जन्मे तीरथ सिंह रावत को सूबे का 'सरताज ' बनवाने में अहम भूमिका निभाई।

देवेंद्र सती, देहरादून: चेहरे पर सादगी, स्वभाव में विनम्रता, संगठन में निष्ठा और जातीय व क्षेत्रीय संतुलन के सांचे में एकदम फिट। यही नहीं, सक्रिय राजनीति में होते हुए भी इस छाप से परे सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में ज्यादा पहचान। यही वे प्रमुख कारक हैं, जिन्होंने पौड़ी के छोटे से गांव सीरों में जन्मे तीरथ सिंह रावत को सूबे का 'सरताज ' बनवाने में अहम भूमिका निभाई। 

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त्रिवेंद्र सिंह रावत के इस्तीफे के बाद से उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद के लिए सियासी फिजा में यूं तो कई नाम तैर रहे थे, पर भाजपा हाईकमान ने संगठननिष्ठा और सादगी को तरजीह दी। इसी का नतीजा है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत के उत्तराधिकारी के रूप में तीरथ सिंह रावत का चयन बगैर किसी बाधा के पार्टी में सर्वस्वीकार्य हो गया। दरअसल, तीरथ को नए चेहरे के रूप में सामने लाकर पार्टी हाईकमान ने न केवल आम कार्यकर्ता के बीच सकारात्मक संदेश दिया, बल्कि उनका भरोसा भी कायम रखा। आइए नजर डालते हैं उन कारकों पर, जिनके बूते तीरथ सियासी रथ पर सवार होकर राजतिलक के मंच तक पहुंचे। 

संघ और संगठन निष्ठा 

किसान परिवार में जन्मे तीरथ सिंह रावत की गिनती संघ और संगठननिष्ठों में की जाती है। पार्टी के प्रति उनके अनुशासन को लेकर उनकी शायद ही कभी कोई शिकायत रही हो। यद्यपि, वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में टिकट न मिलने पर उन्होंने अपनी नाराजगी जाहिर की, लेकिन पार्टी के अनुशासन को पूरा ख्याल रखा।

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निर्गुट और निर्विवाद

तीरथ की एक खासियत यह भी कि मौजूदा दौर में उनका भाजपा के किसी भी गुट में सीधा वास्ता नहीं है। एक समय में उनकी पहचान पूर्व मुख्यमंत्री बीसी खंडूड़ी के शिष्य के रूप में जरूर थी। लेकिन, वर्तमान में खंडूड़ी गुट एक प्रकार से प्रभावहीन है। पार्टी संगठन के बाकी क्षत्रपों के साथ न तो तीरथ की कोई नाराजगी है और न ही घनिष्ठता। 

सांगठनिक अनुभव

तीरथ छात्रजीवन से ही राजनीति में सक्रिय रहे। उस कालखंड में उन्होंने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता के रूप में गढ़वाल विवि छात्रसंघ अध्यक्ष का दायित्व निभाया। इसके बाद विद्यार्थी परिषद की प्रांतीय इकाई में महत्वपूर्ण पदों की जिम्मेदारी बखूबी निभाई। इसका इनाम उन्हें आरएसएस में प्रचारक और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष पद पर ताजपोशी के रूप में भी मिला। उत्तर प्रदेश से विभाजन के बाद बनी अंतरिम सरकार में तीरथ ने शिक्षा जैसे बड़े महकमे की कमान भी संभाली। 

जातीय और क्षेत्रीय संतुलन

उत्तराखंड की यह रवायत रही है कि यहां सरकार भाजपा की रही हो कांग्रेस की, सभी ने जातीय और क्षेत्रीय संतुलन साधा। सामान्य कार्यकर्ता से सीएम की कुर्सी तक पहुंचने वाले तीरथ सिंह सूरतेहाल जातीय और क्षेत्रीय संतुलन दोनों में में फिट बैठे। चूंकि संगठन के मुखिया बंशीधर भगत ब्राह्म्ण कोटे से आते हैं, इसलिए मुख्यमंत्री पद पर ठाकुर चेहरा ही लाया जाना था।  तीरथ इस फार्मूले पर भी खरे उतरे। 

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हाईकमान के प्रति समर्पित

तीरथ को पार्टी का अनुशासित सिपाही ही नहीं, अपितु केंद्रीय नेतृत्व के प्रति समर्पित भाव से कार्य करने वाला माना जाता है। अभी तक के राजनीति सफर में केंद्र के स्तर पर प्रदेश के भीतर और बाहर जब कभी भी जो जिम्मेदारी सौंपी गई, उसे उन्होंने ईमानदारी से पूरा करने का प्रयास किया। उनका ट्रेक रिकार्ड इसकी तस्दीक करता है। 

त्रिवेंद्र के लिए भी सहज

सियासी परिदृश्य पर निगाह दौड़ाए तो निवर्तमान सीएम त्रिवेंद्र रावत के लिए भी तीरथ का नेतृत्व स्वीकारना अपेक्षाकृत सहज होगा। चूंकि, तीरथ तटस्थ तो हैं ही, साथ ही त्रिवेंद्र की अपनी कैबिनेट के बाहर का चेहरा भी हैं। एक रोज पहले तक सीएम पद के लिए जिन बाकी नेताओं के नाम चर्चा में थे, अगर उनमें से किसी को उत्तराधिकारी बनाते तो त्रिवेंद्र के लिए असहज हालात बन सकते थे। 

साफ सुथरी छवि

तीरथ को अपनी साफ सुथरी छवि का इनाम भी मिला है। वह संगठन से लेकर सरकार तक कई जिम्मेदारियां निभा चुके हैं। स्वच्छ छवि के बूते उन्होंने इस मिशन को पूरा कर पार्टी की मजबूती में योगदान किया। 

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