उत्तराखंड की मिट्टी में बोरोन की मात्रा कम, 40 सैंपल में कार्बन भी मिला कम
मिट्टी की सेहत जैसी होगी हमारी कृषि उपज भी वैसी ही होगी। लिहाजा यह जानना भी जरूरी है कि मिट्टी में पर्याप्त पोषक तत्व हैं या नहीं। उत्तराखंड के लिहाज से यह स्थिति चिंताजनक है कि हमारी मिट्टी में बोरोन की मात्रा कम है।
जागरण संवाददाता, देहरादून: मिट्टी की सेहत जैसी होगी, हमारी कृषि उपज भी वैसी ही होगी। लिहाजा, यह जानना भी जरूरी है कि मिट्टी में पर्याप्त पोषक तत्व हैं या नहीं। उत्तराखंड के लिहाज से यह स्थिति चिंताजनक है कि हमारी मिट्टी में बोरोन की मात्रा कम है। बोरोन पौधों में फूल व फल बनाने में मदद करता है। बोरोन की कमी सर्वाधिक पर्वतीय क्षेत्रों के खेतों में पाई गई है।
भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान के वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. डीवी सिंह के मुताबिक, उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों में मिट्टी के 250 सैंपल लिए गए थे। इनकी जांच में पता चला कि सभी नमूनों में बोरोन की मात्रा कम है। पर्वतीय क्षेत्रों के सैंपल में यह मात्रा मैदानी क्षेत्रों से बेहद कम पाई गई। वहीं, मैदानी क्षेत्रों में 40 सैंपल ऐसे मिले, जिनमें कार्बन की मात्रा कम थी। डॉ. डीवी सिंह के मुताबिक, मैदानी क्षेत्रों में उर्वरकों का अधिक प्रयोग किए जाने के चलते कार्बन की मात्रा घट रही है। कार्बन एक ऐसा उपयोगी तत्व है, जिसके आधार पर मिट्टी की क्षमता तय होती है। यह मिट्टी में पोषण का स्तर बनाए रखने के साथ ही पानी को सोखने में भी मदद करता है। मैदानी क्षेत्रों में कार्बन की कमी के चलते धान की फसल में खैरा रोग देखने को मिल रहा है।
इसके अलावा नमूनों की जांच में नाइट्रोजन की मात्रा मध्यम स्तर की पाई गई। हालांकि, फासफोरस, पोटेशियम, सल्फर, जिंक, आयरन व मैग्नीज की मात्रा पर्याप्त है। डॉ. सिंह के अनुसार, तुलनात्मक रूप से मिट्टी की सेहत ठीक है, लेकिन जो तत्व कम हैं, उनके लिए ऑर्गेनिक (गोबर व वनस्पतियों के अवशेष) के साथ इनॉर्गेनिक खाद (उर्वरक) का प्रयोग किया जाना जरूरी है।
इस तरह दूर करें बोरोन की कमी
जैविक नियंत्रण: गोबर आदि जैसी जैविक खाद का भरपूर प्रयोग किया जाए। खेत में पानी की उचित मात्रा रहनी चाहिए।
रासायनिक नियंत्रण: बोरोन (बी) युक्त उर्वरकों का प्रयोग करें। पत्तियों पर छिड़काव के लिए डाइसोडियम ऑक्टाबोरेट टेट्रहाइड्रेट (बोरोना 20 फीसद) की जरूरत पड़ती है।
कार्बन की कमी इस तरह होगी दूर
कार्बन की कमी दूर करने के लिए रासायनिक विकल्पों की जगह गोबर की खाद का प्रयोग जरूरी है।
इन फसलों पर पड़ता है प्रभाव
गेहूं, धान, सेब, केला, जौ, सेम, पत्तागोभी, कैनोला, फूलगोभी, चेरी, काबुली चना, खीरा, बैंगन, लहसुन, काला और हरा चना, अंगूर, मक्का, आम, खरबूज, बाजरा, भिंडी, प्याज, पपीता, मटर, आड़ू, मूंगफली, नाशपाती, शिमला मिर्च, तुअर दाल, आलू, कद्दू, ज्वार, सोयाबीन आदि।
मिट्टी की सेहत ठीक तो समाज रहेगा स्वस्थ
यदि मिट्टी की सेहत ठीक है तो समाज की सेहत भी ठीक रहेगी। यह बात विश्व मृदा दिवस के उपलक्ष्य पर आयोजित कार्यक्रम में भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान के वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. डीवी सिंह ने कही।
शनिवार को रायपुर, डोईवाला, सहसपुर, विकासनगर व कालसी ब्लॉक में किसान मेलों का आयोजन किया गया। 542 किसान इसका हिस्सा बने और तमाम किसान संगठनों ने विभिन्न उत्पादों की 28 प्रदर्शनी लगाईं। इस अवसर पर वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. सिंह ने कहा कि मिट्टी की स्थिति का पता लगाने के लिए सभी कृषकों को सॉयल हेल्थ कार्ड बनवाना जरूरी है। पहले व दूसरे चरण के (2.5 से 10 हेक्टेयर तक) किसानों के खेतों की मिट्टी के हेल्थ कार्ड बन चुके हैं। अब तीसरे चरण में सभी तरह के किसान हेल्थ कार्ड बना सकते हैं। इस अवसर पर संस्थान के वरिष्ठ विज्ञानी एनके शर्मा, मृदा परीक्षण प्रयोगशाला देहरादून के प्रभारी डॉ. आनंद सिंह रावत, कृषि एवं भूमि संरक्षण अधिकारी शशि जुयाल, पशु चिकित्साधिकारी डॉ. मनीष पटेल आदि उपस्थित रहे।
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