नोटबंदी के दौरान जमा राशि से रडार पर आए 87 फीसद खातों में कालाधन
नोटबंदी के दौरान बैंक खातों में जमा राशि से आयकर विभाग के रडार पर आए 87 फीसद खातों में कालाधन पाया गया। इन खाताधारकों ने विभाग को स्पष्ट जवाब नहीं दिया था।
देहरादून, [जेएनएन]: आयकर विभाग ने नोटबंदी के दौरान 500 व 1000 रुपये के पुराने नोटों के रूप में बड़ी रकम जमा कराने वाले, जिन लोगों के बैंक खातों को रडार में लिया था, उनमें से 87 फीसद खातों में कालाधन पाया गया। इसकी अंतिम रिपोर्ट सीबीडीटी (केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड) को भेज दी गई है।
पत्रकारों से बातचीत में मुख्य आयकर आयुक्त पीके गुप्ता ने बताया कि उत्तराखंड में कुल 3255 खातों की जांच की गई थी। इनमें 414 खाते ऐसे थे, जिनमें एक करोड़ रुपये से अधिक की रकम जमा की गई, जबकि 600 खातों में 50 लाख रुपये व इससे अधिक की रकम जमा कराई गई।
शेष खातों में 2.5 लाख रुपये से 50 लाख रुपये के बीच रकम जमा कराई गई। मुख्य आयकर आयुक्त ने बताया कि जांच में 418 खातों में जमा की गई रकम का संबंधित खाताधारकों ने प्रमाण दे दिया और इसका उल्लेख उनके रिटर्न में भी पाया गया। हालांकि, शेष खातों में जमा रकम को लेकर खाताधारक स्पष्ट जवाब नहीं दे पाए। इससे साफ है कि इनमें कालाधन जमा कराया गया है।
करदाताओं की बढ़ोतरी में अग्रणी
मुख्य आयकर आयुक्त के मुताबिक उत्तराखंड में करदाताओं की संख्या में पिछले एक साल में 1.31 लाख की बढ़ोतरी हुई है। इसके साथ ही कुल करदाताओं की संख्या 6.5 लाख हो गई है। यह बढ़ोतरी आठ फीसद की दर से हुई, इस लिहाज से उत्तराखंड का स्थान देशभर में टॉप फाइव में रहा।
ओएनजीसी से मिले 6000 करोड़
उत्तराखंड में बीते वित्तीय वर्ष में करीब 11 हजार करोड़ रुपये का आयकर जमा किया गया। इसमें ओएनजीसी की हिस्सेदारी छह हजार करोड़ रुपये रही। हालांकि यह हिस्सेदारी पिछले कुछ वर्षों के मुकाबले अपेक्षाकृत कम रही।
उत्तराखंड में आइएएस क्लब को नहीं मिली आयकर से छूट
आला अधिकारियों ने राजपुर स्थित फाइव स्टार क्लब (सिविल सर्विसेज इंस्टीट्यूट) को आयकर छूट देने से आयकर विभाग ने इंकार कर दिया है। आयकर आयुक्त (अपील) ने क्लब की उस अपील को खारिज कर दिया, जिसमें क्लब ने खुद को गैर लाभकारी संस्था बताते हुए आयकर से बाहर बताया था।
यह अपील संस्थान ने आयकर विभाग के असेसमेंट के बाद 02 करोड़ 39 लाख 34 हजार 440 रुपये जमा करने के आदेश के खिलाफ की थी। मुख्य आयकर आयुक्त पीके गुप्ता ने आयकर आयुक्त अपील के निर्णय को उचित बताते हुए कहा कि सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए यह आदेश जारी किया गया है।
सिविल सर्विसेज इंस्टीट्यूट ने अपने रिटर्न में खुद को छूट की श्रेणी में बताते हुए आयकर देयता शून्य बताई थी। जबकि रिटर्न में जिन मदों में खर्च दिखाया गया था। रिटर्न व खर्चों में मेल न होने पर आयकर विभाग के 'कंप्यूटर असिस्टेड स्क्रूटनी सलेक्शन' (कास) ने सीएसआइ को लिमिटेड स्क्रूटनी के लिए चिह्नित कर दिया था।
विभाग के स्तर पर कराई गई कंपलीट स्क्रूटनी में पता चला कि क्लब को सेवार्थ कार्यों के मकसद से शुरू किया गया था। इसके लिए भूमि सरकार ने मुहैया कराई थी। संस्थान के निर्माण आदि के लिए पांच करोड़ रुपये भी मुहैया कराए गए थे।
जबकि, संस्थान फाइव स्टार क्लब के रूप में काम करता पाया गया। यहां स्वीमिंग पूल है, बार-रेस्तरां है और मनोरंजन के तमाम साधन उपलब्ध हैं। हर सेवा के लिए संस्थान की ओर से निर्धारित राशि भी तय की गई है।
आयकर विभाग ने सीएसआइ को वित्त वर्ष 2014-15 (असेसमेंट वर्ष 2015-16) में प्राप्त पांच करोड़ रुपये और इस पर प्राप्त ब्याज भी कर के दायरे में है। इस आधार पर संस्थान पर दो करोड़ 39 लाख 34 हजार 440 रुपये का आयकर लगाया गया।
क्लब ने 47 लाख रुपये प्रारंभिक तौर पर जमा तो किए, मगर साथ ही इसकी अपील भी कर दी। इस पर दोनों पक्षों ने अपने-अपने तर्क रखे। आयकर आयुक्त अपील ने क्लब की अपील को खारिज करते हुए आयकर जमा कराने को कहा है।
सिविल सर्विसेज संस्थान के पास पात्रता नहीं
आयकर में छूट उन्हीं संस्थाओं को मिलती है, जिन्होंने इसके लिए आयकर विभाग में आयकर अधिनियम 12-ए के तहत पंजीकरण कराया हो। यह पंजीकरण आयकर आयुक्त (छूट) के स्तर से जारी होती है। साथ ही दान में प्राप्त राशि को आयकर के दायरे से बाहर रखने के लिए अधिनियम की धारा 80-जी का प्रमाण पत्र भी प्राप्त करना होता है।
इसके लिए विभिन्न स्तर भौतिक व दस्तावेजी जांच भी कराई जाती है। इस प्रकरण में सीएसआइ के पास छूट संबंधी कोई प्रमाण पत्र नहीं मिले।
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