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सत्ता के गलियारे से : उम्र ढल गई, अब बस दशरथ का किरदार

नेताजी यूं तो तीन दशक से सियासत में सक्रिय हैं लेकिन इनका एक शौक ऐसा है कि विपक्ष भी कुछ कहने से पहले सौ बार सोचता है। बात हो रही है भाजपा के सूबाई संगठन के मुखिया बंशीधर भगत की।25 सालों से रामलीला में किरदार निभाते आ रहे हैं।

By Sunil NegiEdited By: Published: Mon, 02 Nov 2020 07:52 AM (IST)Updated: Mon, 02 Nov 2020 07:52 AM (IST)
सत्ता के गलियारे से  : उम्र ढल गई, अब बस दशरथ का किरदार
भाजपा के सूबाई संगठन के मुखिया बंशीधर भगत 25 से ज्यादा सालों से रामलीला में किरदार निभाते आ रहे हैं।

देहरादून, विकास धूलिया। नेताजी यूं तो तीन दशक से सियासत में सक्रिय हैं, लेकिन इनका एक शौक ऐसा है, कि विपक्ष भी कुछ कहने से पहले सौ बार सोचता है। बात हो रही है भाजपा के सूबाई संगठन के मुखिया बंशीधर भगत की। पिछले 25 से ज्यादा सालों से रामलीला में किरदार निभाते आ रहे हैं। दशरथ का इनका किरदार सबसे ज्यादा लोकप्रिय रहा है। हालांकि इस बार कोविड के कारण रामलीला का आयोजन हुआ नहीं। मिले तो पूछ लिया, भगतजी, दशरथ का ही रोल क्यों आपको पसंद है। जवाब ऐसा मिला कि सब लाजवाब हो गए। भगत बोले, दशरथ बुजुर्ग हैं, कुछ न भी बोलें तो यह किरदार पर सूट करता है। उस पर, दशरथ बनता हूं तो पूरे दो दिन मीडिया में कवरेज मिलती है। पहले दिन, 'आज भगत बनेंगे दशरथ' और अगले दिन, 'भगत ने निभाया दशरथ का किरदार'। अब राजनीति में हूं तो भला इससे ज्यादा और क्या चाहिए।

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हमको तो हरदा के चेहरे पर ही एतबार

सूबे में कांग्रेस इन दिनों सबसे कठिन दौर से गुजर रही है। खैर, अब राहुल बाबा ने नए प्रदेश प्रभारी नियुक्त कर उन्हें उत्तराखंड में पार्टी को संजीवनी देने का जिम्मा सौंपा है। देवेंद्र यादव नाम है इनका, हाल में तीन दिनी प्रवास पर देहरादून पहुंचे। खूब जोश भर गए कांग्रेसियों में। एकता की घुट्टी पिलाई और रवाना हो गए दिल्ली। अभी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर ट्रेन पहुंची भी नहीं थी, कि एक सांसद बोल पड़े, अगले चुनाव के लिए तो पार्टी के पास एक ही चेहरा है, हरदा जिंदाबाद। हरदा, यानी पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत। सबके सीने पर सांप लोटना ही था। जब जानना चाहा कि क्या अन्य कांग्रेसी दिग्गज भी सांसद प्रदीप टम्टा की राय से सहमत हैं, तो सब मुंह में दही जमा बैठ गए। जितने भी नामलेवा हैं कांग्रेस के, बोले, भाई माफ करो, अब क्यों हमें फंसाते हो। आगे आप खुद ही फैसला कर लें।

डेढ़ दिन का मुददा, टारगेट 2022 का चुनाव

सूबे में टीम 11 के तमगे के साथ साढ़े तीन साल से भाजपा सरकार से जूझ रही कांग्रेस को एक मुददा मिला, तो सारे नेता छाती ठोक कर मोर्चे पर आ डटे। राजभवन कूच किया ही था, कि खबर मिली कि बम तो फुस्स हो गया। अब जब सड़क पर निकले हैं तो भला कैसे मुंह छिपाकर वापस लौटें। लिहाजा दाग दिए तमाम तरह के आरोप। हरीश रावत 2016 में स्टिंग के कारण अपनी सत्ता गंवाते बस बाल-बाल ही बचे थे, उन्हें बात कुछ ज्यादा ही चुभ गई। रोज इंटरनेट मीडिया पर दिल की बात पोस्ट कर रहे हैं। दरअसल, मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र ने बस एक सवाल पूछा था, रावतजी चार साल पहले जिसने आपका स्टिंग किया, उससे अब आप क्यों और कैसा भाईचारा निभा रहे हैं। हालांकि हरदा ने इसका भी जवाब दिया, मगर बात हजम नहीं हुई। अब आप कुछ भी बोलिए, पब्लिक तो सब जानती ही है न।

रूठे रूठे से हरक, अंखिया मिलाएं तो कैसे

हरक सिंह रावत, ऐसे सियासतदां, जिन्हें हर दल का गहरा तजुर्बा है। तीन दशक पहले भाजपा से शुरू हुआ सफर अब भी भाजपा में जारी है। यह बात दीगर है कि इस बीच हरक बसपा के हाथी पर सवारी का लुत्फ लेने के बाद 18 साल कांग्रेस का हाथ भी थामे रहेे। चार साल पहले इन्हें कमल भाने लगा, तो सब तामझाम समेट लौट लिए पुराने घर। इन्हें पूरा सम्मान भी मिला, कैबिनेट मंत्री बनाए गए, मगर अचानक साढ़े तीन साल बाद पता नहीं किसकी नजर लगी, एक के बाद एक किले ढहने लगे। उस पर हद तो तब हो गई, जब मुखियाजी भी नजर ए इनायत करने को तैयार नहीं। लगता है अब 31 साल की सियासत के बाद इन्हें ब्रह्मज्ञान मिल ही गया। बोले, राजनीति में कोई दोस्त या दुश्मन नहीं होता। नेताजी, अगर आप ये बात जानते हैं, तो भला शिकवा या शिकायत किससे है और क्यों।

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