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उत्तराखंड में भाजपा के नए प्रदेश अध्यक्ष के सामने होंगी कई चुनौतियां

प्रदेश भाजपा का नया अध्यक्ष कौन होगा इसे लेकर 16 जनवरी को तस्वीर साफ हो जाएगी लेकिन नए अध्यक्ष के सामने चुनौतियां भी कम नहीं होंगी।

By Edited By: Published: Tue, 14 Jan 2020 09:52 PM (IST)Updated: Wed, 15 Jan 2020 11:24 AM (IST)
उत्तराखंड में भाजपा के नए प्रदेश अध्यक्ष के सामने होंगी कई चुनौतियां
उत्तराखंड में भाजपा के नए प्रदेश अध्यक्ष के सामने होंगी कई चुनौतियां

देहरादून, राज्य ब्यूरो । उत्तराखंड भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव के लिए प्रदेश चुनाव अधिकारी बलवंत सिंह भोंर्याल ने अधिसूचना जारी कर दी। इसके साथ ही अब दावेदार प्रदेश कार्यालय से नामांकन ले सकते हैं। केंद्रीय पर्यवेक्षक शिव राज सिंह चौहान और अर्जुन राम मेघवाल की उपस्थिति में गुरुवार को चुनाव होगा।

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प्रदेश भाजपा का नया अध्यक्ष कौन होगा, इसे लेकर 16 जनवरी को तस्वीर साफ हो जाएगी, लेकिन नए अध्यक्ष के सामने चुनौतियां भी कम नहीं होंगी। क्षेत्रीय संतुलन साधने के साथ ही सरकार व संगठन के मध्य तालमेल बैठाना चुनौती होगा। इसके अलावा सबको साथ लेकर 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर फील्डिंग सजाना भी चुनौतीपूर्ण कार्य होगा। 

यह किसी से छिपा नहीं है कि 2014 के लोकसभा चुनाव से लेकर अब तक के चुनावों में राज्य में भाजपा विजयरथ पर सवार है। ऐसे में भाजपा के नए प्रदेश अध्यक्ष को यह टैंपो बनाए रखने के लिए पूरी मुस्तैदी से जुटना होगा। सरकार से संगठन के बेहतर तालमेल के साथ ही कार्यकर्ताओं को प्रदेश संगठन में एडजस्ट करना भी चुनौती से कम नहीं होगा। सबसे बड़ी चुनौती 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव की है। इसके लिए बूथ से लेकर प्रदेश स्तर तक जिम्मेदारियां इसी हिसाब से सौंपनी होंगी। 

बढ़ गई अध्यक्ष पद के दावेदारों की कतार 

प्रदेश में 26 लाख से ज्यादा की सदस्य संख्या वाले भाजपा के नए प्रदेश अध्यक्ष पद के चुनाव की उल्टी गिनती शुरू होने के साथ ही इसके लिए लॉबिंग भी तेज हो चली है। यही वजह भी है कि पार्टी के तमाम दिग्गज इस दौड़ में हैं। इनमें पूर्व मंत्री बंशीधर भगत, पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं सांसद अजय टम्टा, विधायक नवीन चंद्र दुम्का व पुष्कर धामी, वरिष्ठ उपाध्यक्ष केदार जोशी, प्रदेश मंत्री कैलाश पंत समेत दावेदारों की लंबी कतार है।

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पार्टी की रीति-नीति के अनुसार चुनाव सर्वानुमति से होना है। ऐसे में जो भी दावेदार संतुलन साधने में सफल रहेगा, उसका मुखिया बनना तय है। यही नहीं, केंद्रीय पर्यवेक्षक भी दावेदारों को तमाम कसौटियों पर परखेंगे। इस परिदृश्य के बीच प्रदेश अध्यक्ष पद का सेहरा किसके सिर सजता है या फिर किसी अन्य को यह जिम्मेदारी सौंपी जाती है, इसे पर सभी की नजर टिकी हुई है।

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