तो गंगोत्री सीट को लेकर थे असहज, कांग्रेस के पास मजबूत दावेदार और आप की धमक ने बढ़ाई उलझन
संवैधानिक व्यवस्था का हवाला देकर भाजपा आलाकमान ने भले ही मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत की विदाई की पटकथा लिखी हो लेकिन सच यह भी है कि गंगोत्री सीट से उपचुनाव लड़ने के मामले में तीरथ के साथ ही भाजपा नेतृत्व उलझन में था।
राज्य ब्यूरो, देहरादून। संवैधानिक व्यवस्था का हवाला देकर भाजपा आलाकमान ने भले ही मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत की विदाई की पटकथा लिखी हो, लेकिन सच यह भी है कि गंगोत्री सीट से उपचुनाव लड़ने के मामले में तीरथ के साथ ही भाजपा नेतृत्व उलझन में था।
पिछली त्रिवेंद्र सरकार के कार्यकाल में गठित चारधाम देवस्थानम बोर्ड को लेकर गंगोत्री व यमुनोत्री में तीर्थ पुरोहितों में नाराजगी ने इसमें मुख्य भूमिका निभाई। साथ ही कांग्रेस के पास सशक्त दावेदार और फिर आम आदमी पार्टी (आप) की धमक को देखते हुए भाजपा ने जोखिम लेने से परहेज किया। तीरथ सिंह रावत गढ़वाल संसदीय सीट से सांसद हैं। माना जा रहा था कि वह गढ़वाल संसदीय क्षेत्रांतर्गत आने वाली विधानसभा की किसी सीट से उपचुनाव लड़ेंगे।
चौबट्टाखाल सीट को उनकी पसंदीदा सीटों में माना जाता है, लेकिन वहां से कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। हालांकि, कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत ने मुख्यमंत्री के लिए कोटद्वार सीट छोड़ने की पेशकश की थी। इस बीच भाजपा विधायक गोपाल सिंह रावत के निधन के कारण गंगोत्री सीट रिक्त हो गई। तब माना गया कि तीरथ गंगोत्री सीट से उपचुनाव लड़ सकते हैं, लेकिन इसे लेकर अधिक उत्सुक नहीं दिखे। वजह ये कि गंगोत्री सीट उनके लिए एकदम नई थी। साथ ही गंगोत्री व यमुनोत्री में तीर्थ पुरोहित देवस्थानम बोर्ड का निरंतर विरोध कर रहे हैं।
हालांकि, तीरथ ने बोर्ड के संबंध में पुनर्विचार की बात कही, लेकिन इस दिशा में कोई ठोस पहल नहीं हो पाई।इसके अलावा कांग्रेस के पास गंगोत्री सीट के लिए पूर्व विधायक विजयपाल सिंह सजवाण के तौर पर सशक्त दावेदार भी मौजूद है। यही नहीं, आम आदमी पार्टी की ओर से कर्नल अजय कोठियाल (सेनि) ने भी गंगोत्री से ताल ठोकने का एलान कर दिया गया। कर्नल कोठियाल का गंगोत्री क्षेत्र में अच्छा प्रभाव माना जाता है।
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