Uttarakhand election 2022: भाजपा ने पहली सूची में 20 नए चेहरों को दी जगह, जानिए किसने मारी टिकट की बाजी
Uttarakhand Vidhan Sabha Election 2022 भाजपा ने पहली सूची में उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के लिए 59 प्रत्याशियों के नामों का एलान किया है। इन 59 प्रत्याशियों में 20 नए चेहरे हैं। पार्टी ने कई बिंदुओं की कसौटी पर परखने के बाद ही इन्हें अवसर प्रदान किया है।
राज्य ब्यूरो, देहरादून। विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा ने जिन 59 सीटों पर प्रत्याशियों के नाम का एलान किया है, उनमें लंबे समय से चल रहे होमवर्क की झलक भी दिखी है। भाजपा की पहली सूची पर गौर करें तो इसमें इस बार 20 चेहरे नए हैं। क्षेत्र में जनाधार, सक्रियता, क्षेत्रीय व जातीय समीकरण, जिताऊ समेत अन्य बिंदुओं की कसौटी पर परखने के बाद ही पार्टी ने उन्हें अवसर दिया है। यानी, पार्टी ने पूरी कुंडली खंगालने के बाद ही नए सूरमाओं को मैदान में उतारा है।
प्रत्याशी चयन के मद्देनजर भाजपा लंबे समय से कसरत कर रही थी। विधानसभा क्षेत्रों से निरंतर फीडबैक लिया गया और फिर सभी पहलुओं पर गौर करने के बाद सूची को अंतिम रूप दिया गया। इनमें जीत की संभावनाएं तलाशी गईं। इसीलिए भाजपा नेतृत्व ने गहन होमवर्क और मंथन के पश्चात 39 पुराने व 20 नए चेहरों पर मुहर लगाई। क्षेत्र में अच्छी पकड़ और सक्रियता का लाभ नए चेहरों को मिला है। इनमें पुरोला से प्रत्याशी बनाए गए दुर्गेश्वर लाल भी शामिल हैं। यद्यपि, वह लंबे समय से भाजपा के संपर्क में थे, लेकिन विधिवत रूप से वह गुरुवार सुबह पार्टी में शामिल हुए और दोपहर में उन्हें टिकट दे दिया गया।
यही नहीं, पार्टी ने कुछ समय पहले घर वापसी करने वाले रामशरण नौटियाल व अनिल नौटियाल के साथ ही कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुई महिला कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष रही सरिता आर्य, यमकेश्वर की पूर्व ब्लाक प्रमुख रेणु बिष्ट, पूर्व विधायक प्रीतम सिंह पंवार व राम सिंह कैड़ा भी हैं, जिन पर पार्टी ने विश्वास जताया है। कुछ अन्य सीटों पर पार्टी ने नए चेहरों पर दांव खेला है, जिनमें कुछ पूर्व में विधानसभा चुनावों में अपना दमखम भी दिखा चुके हैं। पार्टी ने टिकट वितरण में अनुभव और युवा जोश का भी बेहतर ढंग से समन्वय बनाया।
कैंची चलाई, पर संभलकर
पहली सूची में पार्टी ने कई सीटों पर चेहरे बदले, लेकिन कदम संभल कर बढ़ाए। विधानसभा चुनाव की घोषणा से पहले भाजपा ने अपने सभी विधायकों के कामकाज की परख की। मंडल स्तर तक के पदाधिकारियों के अलावा क्षेत्रीय जनता से फीडबैक लिया गया। कई दौर के सर्वे भी हुए। इसमें चेहरे ऐसे भी थे, जो कमजोर बताए जा रहे थे। फिर भी पार्टी ने उनमें से कुछ पर विश्वास जताते हुए टिकट दिया है। जो जितना चल सकता था, उसे चलाया गया है। अब इसे व्यवहारिक मजबूरी कहें या फिर असंतोष के सुर पनपने का भय, बात चाहे जो भी रही हो, लेकिन पार्टी ने बेहद संभलकर ही टिकटों पर कैंची चलाई।